Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘आंखें निकाल लूंगा’, बिजनौर पुलिस पर बच्चों ने लगाए यातना के आरोप

‘आंखें निकाल लूंगा’, बिजनौर पुलिस पर बच्चों ने लगाए यातना के आरोप

यह 13 साल के आलम की कहानी है, जिसे CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शन की शाम 20 दिसंबर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था.

ऐश्वर्या एस अय्यर
भारत
Updated:
बिजनौर में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पकड़े गए नाबालिगों ने सुनाई पुलिसिया यातना की कहानी 
i
बिजनौर में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पकड़े गए नाबालिगों ने सुनाई पुलिसिया यातना की कहानी 
(फोटोः Altered By Quint)

advertisement

जब नींद आने लगी तो पुलिस वाले डराने लगे. बोले कि, सोओगे क्या तुम? सोओगे तो आंखों के डिल्ले निकाल दूंगा मैं.’

यह 13 साल के आलम* की कहानी है, जिसे CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शन की शाम 20 दिसंबर को पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिजनौर के नगीना में पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. पुलिस के हत्थे चढ़ा यह अकेला नाबालिग नहीं है, इसके साथ 21 लड़के पकड़े गए थे.

20 दिसंबर को शुक्रवार की नमाज के बाद नगीना की जामा मस्जिद. मस्जिद के इमाम ने भीड़ को तितर-बितर होने के लिए कहा था और ज्यादातर लोगों ने ऐसा ही किया. लेकिन लगभग 100 युवकों और नाबालिगों ने विरोध करना जारी रखा. (फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट)

पूर्वी यूपी में द क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट की कड़ी में इस संवाददाता ने बिजनौर जिले के नगीना शहर में शाहजहीर मोहल्ले का दौरा किया और 21 में से 3 लड़कों से बातचीत की.

20 दिसंबर को क्या हुआ?

यह नगीना में गांधी चौक है, जिस स्थान पर विरोध प्रदर्शन (फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट) 

नगीना में पिछले कुछ दिनों से लगातार प्रदर्शन के लिए अपीलें की जा रही थीं लेकिन बड़े-बूढ़ों को प्रदर्शन के दौरान हिंसा का डर सता रहा था. इसलिए जुमे की नमाज के बाद नगीना की जामा मस्जिद के इमाम ने लोगों को प्रदर्शन के लिए मना किया और घर लौटने को कहा.

ज्यादातर लोग चले गए लेकिन 13 से 25 साल के करीब 100-150 युवक और बच्चों ने देश भर में प्रदर्शन कर रहे लोगों का साथ देने की भावना से गांधी चौक तक पैदल मार्च का फैसला लिया. लेकिन मस्जिद के बाहर ही भीड़ भड़क उठी – कार्रवाई में पुलिस ने लाठीचार्ज किया और प्रदर्शनकारियों ने पत्थर फेंके.

कई लोग एसबीआई बैंक की छत की तरफ भागे (नीचे देखिए) और पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

चश्मदीदों के मुताबिक इस इमारत की छत पर कम से कम 100 लोग थे. उन्होंने दूसरी तरफ कूदने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. (फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट) 

पुलिस ने उन लोगों को बिल्डिंग में बंद कर दिया और एक घंटे बाद उन्हें मिनी बस में भरकर ले गए.

इनमें से 21 नाबालिग लड़के थे, जिन्हें तीन दिन बाद छोड़ दिया गया. बाकी 83 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.

द क्विंट ने तीन नाबालिगों से बात की जिन्होंने पुलिस हिरासत के दौरान यातना की पूरी कहानी बताई, उनके माता-पिता इतने भयभीत थे कि वो उनके बारे में जानने के लिए थाने तक नहीं जा सके.

13 साल का लड़का तो मुश्किल से बोल पा रहा था

नगीना की सड़कों पर प्रदर्शन के इतने दिनों बाद भी पुलिस की गश्त जारी है, इलाके में धारा 144 लगी है.
आलम के परिजन फोटो खींचे जाने से डर रहे थे. आलम की बड़ी बहन ने कहा, “हम आपसे बात करेंगे लेकिन मैं आपको अपने भाई का फोटो नहीं लेने दूंगी.”(फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट) 

चौराहों पर मौजूद यह पुलिस बल आते-जाते लोगों पर नजर रख रहे हैं. जिन तीन लड़कों से हमने बात की उनमें सबसे छोटा, आलम, मुश्किल से बोल पा रहा था.

“जबसे लौटा है इसने ना तो खाया और नहाया है, ना ही यहां से हिला है. जब भी कोई दरवाजे पर आता है, यह डर से कांपने लगता है. अब यह सिर्फ पानी मांगता है,’ आलम की बड़ी बहन और मां ने उसकी तरफ इशारा करते हुए हमें बताया. वह कमरे के बीच मोटी रजाई में सिमटा हुआ था.

आलम की प्यास बुझ नहीं रही थी और इसकी एक वजह थी – उसकी बड़ी बहन, जिससे वह सबसे ज्यादा करीब था, ने हमें वो बताया जो आलम ने लौटने के बाद रोते हुए उसे बताया था – ‘इसने कहा पुलिस इन लोगों को पीने के लिए पानी देती थी, और जब यह लोग बाथरूम जाते तो इन्हें लाठियों से पीटा जाता था. यह लड़के पिटाई से बचने के लिए प्यासे रहते थे.’

आलम के चेहरे पर खौफ साफ नजर आ रहा था. परिवारवालों के मुताबिक वह अपने छोटे भाई को ढूंढने के लिए बाहर निकला था जब भीड़ के साथ उसे भी पकड़ लिया गया.

17 साल के आतिफ* की कहानी भी ऐसी ही है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

‘पैर, पीठ, कमर, उंगलियों और जांघों पर जख्म के निशान’

अपने पैर पर बने जख्म को दिखाते हुए आतिफ(फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट)

अपने पैर पर बने जख्म को दिखाते हुए आतिफ ने अपनी यातना की पूरी कहानी बताई. ‘हमें पहले बिजनौर पुलिस लाइंस ले जाया गया, सारे पुलिसवाले ने एक-एक को मारा. फिर सबको इकट्ठा करके सिविल लाइन्स में फिर से मारा. थोड़ी देर बैठाया, पानी पिलाया, फिर मारा. कुछ खिलाया, फिर मारा.’

आतिफ के पैर, पीठ, कमर, उंगलियों और जांघों पर चोट के निशान थे. जैसा कि आलम ने पानी के बारे में अपनी बहन को बताया था, आतिफ ने भी आरोप लगाते हुए कहा, ‘पुलिसवाले जबरदस्ती पानी पिला रहे थे, फिर पेशाब करवाने ले जाते और जोर-जोर से मारते.’

‘हमें रात भर सोने नहीं दिया गया’

17 साल का मुराद जुमे की नमाज के लिए मस्जिद गया था, जहां हिंसा भड़की वहां से वह कुछ दूर था.

मुराद के माता-पिता दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं(फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट)
“उन्होंने रात भर हमें सोने नहीं दिया. वो कहते थे ‘जब हमलोग जाग रहे हैं, तुम कैसे सो सकते हो?’ वो हमें धमकाते रहे कि अगर हम सोए तो हमारी पिटाई होगी. हमारी आंखें फट रही थी, ठंड के मारे हमारा दर्द और बढ़ता जा रहा था, लेकिन लाठी के डर से हम जागते रहे,’’ 
मुराद जुमे

सभी 21 नाबालिग बच्चे तीन दिन बाद दो बैच में छोड़ दिए गए. पहले, 22 दिसंबर को करीब 4 बजे सुबह आठ बच्चों को छोड़ा गया. फिर, 22 दिसंबर की देर रात 12-13 बच्चों को छोड़ा गया.

तीन दिनों में इनमें से किसी के माता-पिता, जो कि दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं, अपने बच्चों के बारे में पता करने जेल नहीं गए.

नगीना अभी भी तनाव से भरा है. पुलिस कर्मियों की भारी तैनाती से वाकिफ, स्थानीय लोग पुलिस पकड़े जाने, हिरासत में लेने और / या गिरफ्तार किए जाने के डर में रहते हैं.(फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट)

‘माता-पिता को डर था कि उन्हें भी पकड़ लिया जाएगा’

‘हमें लोग बता रहे थे कि जो भी पुलिस स्टेशन जा रहा था उसे हिरासत में ले लिया जा रहा था. हर तरफ डर और भय का माहौल था. जो लोग वहां गए थे उन्होंने बताया कि उन्हें गालियां और धमकी दी गई,’ आलम के पिता ने दावा किया. आतिफ और मुराद के परिवारवालों ने भी यही दोहराया.

‘कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलना चाहता था. मैं पुलिस स्टेशन जाने की हिम्मत कैसे जुटा पाता? मेरी मजबूरी को समझिए - मेरा बेटा जेल में था’
मुराद के पिता 
2015 में बने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (सेक्शन 10, चैप्टर 4) में इस बात का जिक्र है कि कानून के उल्लंघन के मामले में नाबालिगों के साथ कैसा सलूक किया जाए. उन गाइडलाइंस के मुताबिक, ‘जैसे ही कानून तोड़ने के आरोप में किसी बच्चे को पकड़ा जाता है, उसे बिना समय बर्बाद किए, चौबीस घंटे के अंदर, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने पेश किया जाना चाहिए.’

लेकिन इन बच्चों ने जो खुलासा किया उसके मुताबिक इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.

नगीना पुलिस स्टेशन. द क्विंट को पुलिस की प्रतिक्रिया का इंतजार है.(फोटो:ऐश्वर्या एस अय्यर/क्विंट)

इस कानून में यह भी लिखा है कि ‘किसी भी नाबालिग बच्चे को पुलिस हिरासत या जेल में नहीं रखा जा सकता’ – पुलिस ने इस नियम की भी धज्जियां उड़ा दी.

हमने बिजनौर के एसपी संजीव त्यागी और सर्किल ऑफिसर अर्चना सिंह से बात कर उनकी राय जानने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. हमने ईमेल के जरिए इन आरोपों पर पुलिस का पक्ष जानने की कोशिश की है, जैसे ही कोई जवाब मिलता है, हम इस स्टोरी को अपडेट करेंगे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 27 Dec 2019,10:25 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT