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कोरोना वायरस संकट की वजह से इस साल शीत सत्र में संसद में कामकाज नहीं होगा, केंद्र सरकार ने ये जानकारी दी है. सरकार ने बताया है कि ये फैसला लेने के पहले सभी पार्टियों से चर्चा की गई थी. लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि राज्यसभा में विपक्षी दलों के नेता को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि शीत सत्र में संसद में कार्यवाही नहीं होगी.
सरकार का ये फैसला तब प्रकाश में आया जब कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने मांग की थी कि नए कृषि बिलों पर संसद में चर्चा होनी चाहिए. इसका लिखित जवाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने शीत सत्र नहीं बुलाए जाने की जानकारी दी.
पत्र में आगे प्रहलाद जोशी ने लिखा- "अभी हम दिसंबर के बीचों-बीच हैं और कोरोना वायरस वैक्सीन अब जल्द ही आने वाली है. इस संबंध में मैंने अनौपचारिक तौर से अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं से बात की. इस दौरान नेताओं ने कोरोना को लेकर उनकी चिंताओं का जिक्र किया."
उन्होंने कहा कि सरकार जल्द से जल्द अगला संसदीय सत्र बुलाना चाहती है. अब 2021 का बजट सत्र ही अगल संसदीय सत्र होगा. ये फैसला कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों के मद्दनजर लिया गया है.
इसी बीच कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि न तो लोकसभा के विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, दोनों से ही सत्र न बुलाई जाने के बारे में चर्चा नहीं की गई.
कर्नाटक कांग्रेस नेता श्रीवत्स ने #TooMuchDemocracy के साथ करारा तंज कसा. उन्होंने लिखा कि "संसद सत्र नहीं बुलाया जा सकता क्यों कि बहुत ज्यादा लोकतंत्र है. पीएम प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते, क्यों कि बहुत ज्यादा लोकतंत्र है. सुप्रीम कोर्ट 370 पर सुनवाई नहीं करती, क्यों कि बहुत ज्यादा लोकतंत्र है. कैग ऑडिट नहीं करती, क्यों कि बहुत ज्यादा लोकतंत्र है. मीडिया मोदी से सवाल नहीं करती, क्यों कि बहुत ज्यादा लोकतंत्र है. बहुत ज्यादा लोकतंत्र का मतलब है, बहुत ज्यादा निरंकुशता"
आम आदमी पार्टी ने भी अपने ट्विटर हैंडल से तंज कसा.
शिवसेना प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी पर ट्वीट करके बीजेपी की मंशा पर सवाल खड़ा किया है.
महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता सचिन सावंत ने बीजेपी के नेताओं के दोहरे चरित्र का हवाला देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के बीजेपी नेता महाराष्ट्र में सदन का सत्र छोटा किए जाने पर हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन उन्हें मोदी सरकार के पूरे के पूरे सत्र के रद्द करने पर क्या कहना है?
संविधान के मुताबिक संसद के दो सत्रों के बीच 6 महीनों से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए. आमतौर पर संसद सत्र साल में 3 बार बुलाए जाते हैं, एक बजट सत्र, दूसरा मॉनसून सत्र और तीसरा शीत सत्र.
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