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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला ने मामले की सुनवाई कर रही जजों की समिति पर सवाल खड़े किए हैं. महिला ने समिति पर यौन उत्पीड़न अधिनियम के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. साथ ही महिला ने अब समिति के सामने पेश नहीं होने का फैसला किया है.
महिला का कहना है कि जिस तरह से मामले की सुनवाई की जा रही है, उससे नहीं लगता कि उसे न्याय मिल पाएगा, साथ ही उसे ‘डर’ भी लगता है.
महिला ने कहा है कि अब वह इस मामले में सुनवाई के लिए आतंरिक समिति के सामने पेश नहीं हो पाएगी, क्योंकि उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है. महिला ने कहा-
महिला ने कहा, ‘26 और 29 अप्रैल को मैं एक भरोसे के साथ आंतरिक समिति के सामने पेश हुई थी. मुझे उम्मीद थी कि समिति मामले की गंभीरता को समझते हुए निष्पक्ष सुनवाई करेगी. मुझे उम्मीद थी कि ये समिति मेरी तकलीफों को सुनेगी और आखिर में मुझे और मेरे परिवार को न्याय मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’
महिला ने कहा, ‘19 अप्रैल को मैंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी. मैंने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को पत्र लिखकर सीनियर रिटायर्ड जजों की विशेष जांच समिति बनाए जाने की मांग की थी. मुझे नहीं लगता था कि कोई भी आंतरिक समिति मुझे न्याय दे पाएगी, क्योंकि जिस व्यक्ति के खिलाफ मैंने शिकायत की थी, वो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया थे.’
महिला ने कहा, ‘26 अप्रैल 2019 को समिति ने मुझे बताया कि ना तो ये आंतरिक समिति की सुनवाई है और ना ही ये सुनवाई विशाखा गाइडलाइंस के तहत सुनवाई है, ये एक अनौपचारिक सुनवाई थी. मुझे पूरी घटना बताने के लिए कहा गया, मैं तीन जजों के सामने काफी डरी और सहमी हुई थी, इसके बावजूद मैंने उन्हें पूरा घटनाक्रम बताया. मुझे कोई वकील या सहयोगी भी नहीं दिया गया. मैंने समिति को ये भी बताया कि भारी तनाव की वजह से मैं एक कान से सुनने की क्षमता खो चुकी हूं, जिसका इलाज चल रहा है. इस वजह से कई मौकों पर मैं वो नहीं सुन पा रही थी, जो जस्टिस बोबडे कह रहे थे. इसके अलावा समिति की कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग के मेरे अनुरोध को भी ठुकरा दिया गया.’
महिला ने कहा,
महिला ने कहा, ‘मुझे मौखिक तौर पर ये निर्देश दिए गए कि मैं मीडिया के सामने समिति की सुनवाई से संबंधित कोई बात ना रखूं और ना ही इसके बारे में मेरे वकील वृंदा ग्रोवर को कुछ बताऊं.’
महिला ने दावा किया, ‘पहली सुनवाई के दौरान मैंने समिति को प्रार्थनापत्र देकर इस मामले से संबंधित दो मोबाइल नंबरों की कॉल रिकॉर्ड और व्हाट्सऐप कॉल और चैट के रिकॉर्ड मंगाए जाने की मांग की. हालांकि, पहली सुनवाई के दौरान समिति ने मेरा प्रार्थनापत्र स्वीकार नहीं किया. बाद में, इसी प्रार्थनापत्र को 30 अप्रैल की सुनवाई के वक्त तब लिया गया, जब मैंने दुखी होकर समिति की सुनवाई में शामिल होने से इंकार कर दिया था.’
महिला ने चिट्ठी में दावा किया कि सुनवाई के दौरान बाइकर्स उसका पीछा करते थे, जिससे उसकी जान को खतरा बना हुआ है. महिला ने कहा, ‘समिति के सामने पहली सुनवाई के बाद जब मैं वहां से निकली, तो मैंने देखा कि जिस कार में मैं सफर कर रही थी, उसका दो लोग मोटरसाइकिल से पीछा कर रहे थे. मैं उस मोटरसाइकिल का आधा-अधूरा नंबर ही नोट कर सकी.’
महिला ने कहा, ‘अगली सुनवाई से पहले मैंने समिति के सदस्यों को इस पूरी घटना के बारे में पत्र लिखकर अवगत कराया. साथ ही मैंने समिति की सुनवाई को औपचारिक सुनवाई के तौर पर किए जाने की मांग की. लेकिन 29 अप्रैल को अगली सुनवाई के दौरान भी मुझे वकील के साथ पेश होने की इजाजत नहीं दी गई.’
महिला का कहना है कि समिति ने बार-बार उससे एक ही सवाल किया कि उसने यौन उत्पीड़न की शिकायत इतनी देरी से क्यों की. महिला ने कहा, ‘मैंने पाया कि समिति का माहौल भयावह होता जा रहा था और मैं बिना वकील के सुप्रीम कोर्ट के तीनों जजों का सामना करने में काफी नर्वस महसूस कर रही थी. सुनने की कम क्षमता की वजह से भी मुझे परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. इसके अलावा मुझे ये भी नहीं दिखाया जा रहा था कि मेरा क्या बयान रिकॉर्ड किया जा रहा था. मुझे 26 औऱ 29 अप्रैल को रिकॉर्ड किए गए बयान की भी कॉपी नहीं दी गई.’
महिला ने समिति से कहा है, 'अगर मुझे वकील के साथ आने की अनुमति नहीं मिलती है, तो अब मेरे लिए सुनवाई में शामिल होना संभव नहीं होगा.'
महिला का दावा है कि इसके बाद भी समिति ने उसके निवेदन को ठुकरा दिया. महिला ने कहा कि समिति ने मुझसे कहा कि अगर मैं कोई गवाह पेश करना चाहूं तो कर सकती हूं. इस पर मैंने उन्हें कहा कि लगभग सभी गवाह सुप्रीम कोर्ट में ही काम करते हैं, ऐसे में उनमें से कोई भी सामने नहीं आना चाहेगा.
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