Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जानिये,क्यों मां बनना कामकाजी महिलाओं के करियर पर लगा रहा ब्रेक?

जानिये,क्यों मां बनना कामकाजी महिलाओं के करियर पर लगा रहा ब्रेक?

2004 से 2011 के बीच 2 करोड़ कामकाजी महिलाओं की संख्या कम हो गई

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
मां बनने के बाद कामकाजी महिलाओं के वर्कप्लेस में लौटने की संभावनाएं कम होती जा रही हैं
i
मां बनने के बाद कामकाजी महिलाओं के वर्कप्लेस में लौटने की संभावनाएं कम होती जा रही हैं
(फोटो: iStock)

advertisement

हिंदुस्तान में कामकाजी महिलाओं को बड़े पैमाने पर घरेलू काम की जिम्मेदारी निभाने और मां बनने की कीमत चुकानी पड़ रही है. इसमें कुछ हद तक हिंदुस्तान का कॉरपोरेट कल्चर और फैमिली लिगेसी जिम्मेदार है.

इंडिया स्पेंड में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जहां कॉरपोरेट में महिलाओं की एंट्री के लिए बहुत कम दरवाजे हैं, वहीं उनके बाहर जाने के लिए कई दरवाजे इंतजार करते हैं. इनमें प्रेगनेंसी, बच्चों की परवरिश, बुजुर्गों की देखभाल, परिवार का सपोर्ट न होना और अच्छे वर्किंग एनवायरनमेंट का न होना कुछ अहम कारण हैं.

इकनॉमिक सर्वे के मुताबिक भारत में केवल 24 फीसदी महिलाएं ही कामकाजी होती हैं. यह दक्षिण एशिया में सबसे घटिया आंकड़ा है.2004 से 2011 के बीच कामकाजी महिलाओं की संख्या में 2 करोड़ की कमी आ गई. इस बात का भी कोई संकेत नहीं है कि इस गिरावट में अब कोई कमी आ रही हो.

यह स्थिति अजीब है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब महिलाओं में शिक्षा की स्थिति बेहतर हो रही है, जब प्रजनन और आर्थिक विकास में भी कमी आ रही है. स्थिति यह है कि सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिलाएं नौकरियां छोड़ रही हैं.

भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए सोशल सपोर्ट सिस्टम बेहद कमजोर है(फोटो; iStock)

इंडिया स्पेंड की एक स्टडी में इसके कई कारण सामने आए हैं. इसमें काम के लिए परिवार की परमिशन, महिलाओं के लिए समाज की ओर से तय किया जाना कि क्या अच्छा है क्या बुरा, देखभाल में दी गई एनर्जी और वक्त, सुरक्षा कारण और भरोसेमंद ट्रांसपोर्ट जैसे कारण शामिल हैं.

दुनिया के दूसरे देशों में भी बच्चों की देखभाल मां ही करती हैं. लेकिन हिंदुस्तान में मां की भूमिका को अलग स्तर पर ले जाया गया है. यहां मां से अपेक्षा की जाती है कि वे हर तरह के हितों को जिनमें उनके खुद के हित भी शामिल हैं, को बच्चे से नीचे रखें.

जिन बच्चों की परवरिश के लिए मां उन्हें डे केयर में रखती हैं, घरेलू नौकरों की सहायता लेती है या खुद के करियर को साथ लेकर चलती हैं, उन्हें परिवार के अंदर-बाहर सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है.

जैसे-जैसे ज्वाइंट फैमली खत्म हुई हैं, बच्चों की परवरिश मुश्किल होती जा रही है. स्टडी में पता चला है कि एक छोटा बच्चा होने से महिलाओं के रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ता है. वहीं किसी बड़ी महिला के परिवार में होने से कामकाजी महिलाओं के काम करने के आसार बढ़ जाते हैं.

पेड मेटरनिटी लीव में फेरबदल कर जाहिर तौर पर सरकार मामले में कुछ कर सकती है. मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट 2016 के जरिए प्रेग्नेंसी के दौरान छुट्टियों को 12 हफ्ते से बढ़ाकर 26 हफ्ते किया गया है.

लेकिन इससे महिलाओं के रोजगार की स्थिति में और खराबी आ गई है. ह्यूमन रिसोर्स सर्विस कंपनी टीम लीज की स्टडी में सामने आया है कि इस एक्ट के चलते करीब 1.20 लाख नौकरियां खतरे मे हैं. दरअसल मेटरनिटी लीव के बढ़ते दबाव के कारण कंपनियां महिलाओं को भर्ती करने में गुरेज करती हैं.

बड़ी कंपनियां इस मामले में सकारात्मक रुख अपनाती हैं. वे एक्ट से हुए बदलाव का समर्थन करते हुए महिलाओं की भर्ती में कोई कमी नहीं करतीं.

लेकिन असली दिक्कत छोटी और मीडियम कंपनियों से है. इन कंपनियों में महिलाओं की सैलरी कम करने जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं. या महिलाओं की हायरिंग ही कम कर दी जाती है.

महिलाओं की इन तमाम दिक्कतों से निपटने में घर और ऑफिस में अच्छा सपोर्ट सिस्टम मदद कर सकता है. अगर मेंटर वीमेन हों तो इन दिक्कतों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है.

लेकिन इस दौर में पिता भी तेजी से बदल रहे हैं. उनको मालूम है कि दो कमाने वाले होंगे तो एक बेहतर लाइफ स्टाइल हो सकती है. इसलिए अब वे अपनी पत्नी का सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन फिर भी जब तक रूढ़िवादी मानसिकता नहीं बदलेगी कुछ नहीं हो सकता.

इनपुट्स: इंडिया स्पेंड

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 04 Aug 2018,03:17 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT