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नारी शक्ति का जलवा: हैदराबाद मेट्रो में ड्राइवर सीट पर महिलाएं

Women loco pilot Hyderabad: यात्रियों की सुरक्षा से लेकर काम और परिवार को संभालने तक, ये लोको पायलट कभी नहीं रुकतीं

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>हैदराबाद मेट्रो में ड्राइवर सीट पर महिलाएं</p></div>
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हैदराबाद मेट्रो में ड्राइवर सीट पर महिलाएं

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

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महिलाएं विमान उड़ा रही हैं. पहाड़ों पर चढ़ाई कर रही हैं. लेकिन 'क्या वह वास्तव में ऐसा कर सकती हैं?', 'क्या उनके पास वह है जो इसके लिए जरूरी है?' हैदराबाद मेट्रो रेल (HMR) की महिला लोको पायलटों के पास इस तरह के सवालों के लिए समय नहीं है. रोजाना हजारों यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने से लेकर काम और परिवार को संभालने तक, वे कभी नहीं रुकती हैं. एचएमआर में कम से कम 80 महिला लोको पायलट और बड़ी संख्या में महिला तकनीकी कर्मचारी हैं. इस महिला दिवस, द क्विंट ने उनमें से कुछ से बात की और जानने की कोशिश की कि उन्हें कैसा लगता है?

हैदराबाद मेट्रो रेल (HMR) की महिला लोको पायलट.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

लक्ष्मी अनुषा 2017 में लोको पायलट के रूप में मेट्रो में शामिल हुईं. अब वह ट्रेन क्रू कंट्रोलर हैं. "मेरे माता-पिता शुरू में मेरे इस काम को लेकर बहुत आशंकित थे. क्योंकि मैं एक महिला हूं. लेकिन मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मैं इसके लिए सक्षम हूं".वो बताती हैं "एक यात्री एक दिन ट्रेन और प्लेटफॉर्म के बीच में गिर गया और वह मदद करने में सक्षम थी. आमतौर पर ऐसा तब होता है जब इतनी भीड़ होती है," वह कहती हैं, इसके लिए उन्होंने एक पुरस्कार भी जीता है.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

शगुफ्ता नाज़ हैदराबाद की 21 वर्षीय लोको पायलट हैं. वह कहती हैं कि इंजीनियरिंग स्नातक होने के नाते, "महिलाओं को अक्सर ऐसा लगता है कि सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग जैसी सॉफ्ट जॉब करना ज्यादा सुरक्षित है. लेकिन मुझे एक अनोखा पेशा चुनने का अवसर मिला. हां, लोग अभी भी पूछते हैं क्या हम वास्तव में मेट्रो ट्रेन की सवारी कर सकते हैं. तब हम उन्हें बताते हैं कि महिलाएं पुरुषों की तरह ही सब कुछ कर सकती हैं. शगुफ्ता कहती हैं कि उनके परिवार को उन पर गर्व है, यह याद करते हुए कि कैसे उनके माता-पिता ने सुनिश्चित किया कि वे शगुफ्ता के काम पर पहले दिन मेट्रो में ही थे.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

एचएमआर में साढ़े 6 साल से काम कर रहीं सिस्टम इंजीनियर सौचन्या कहती हैं, "मैंने फैसला किया है कि मैं कभी शादी नहीं करूंगी क्योंकि मुझे अपने परिवार का ख्याल रखना है". अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली होने के नाते,सौचन्या को अपने माता-पिता और अपनी बहन के बच्चों की देखभाल करनी होगी. वो बताती हैं उनके पिता सेवानिवृत्त हैं और माँ काम नहीं करती हैं. उन्हें सब कुछ करना है, चाहे उनके स्वास्थ्य का मुद्दा हो या कोई और काम हो. बहुत दबाव होता है, लेकिन मैं सुनिश्चित करती हूं कि वे इसे न देखें". मैं अपनी सारी चिंताएं घर के बाहर छोड़ देती हूं.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

लेकिन सौचन्या का कहना है कि वह अपने काम का आनंद लेती हैं. "मैं सिस्टम इंजीनियर बनने से पहले कई वर्षों तक सिस्टम मेंटेनर थी. 50-70 पुरुषों की मेरी टीम में मैं अकेली महिला थी. लेकिन मैंने जल्दी से सीख लिया और मुझे पता है कि मैं वह सब कुछ कर सकती हूं जो वे कर सकते हैं.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

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एचएमआर के रखरखाव विभाग में सिस्टम एनालिस्ट 34 वर्षीय लक्ष्मी काव्याश्री अपनी सात सदस्यीय टीम में अकेली महिला हैं. एचएमआर में सात साल से काम कर रही काव्याश्री कहती हैं, ''शुरुआत में, मुझे चीजों को समझने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैं इससे बाहर निकल गई.'' उनकी मां सिंगल पैरेंट हैं और काव्याश्री कहती हैं कि उनका बचपन आसान नहीं था. "समाज ने मेरी माँ को स्वीकार नहीं किया. लोग मुझसे मेरे पिता के बारे में पूछते रहते थे. स्कूल में, मुझे इस तरह के मुद्दों का सामना करना पड़ा है, और मैं रोते हुए घर वापस चली आती थी. मेरे कुछ रिश्तेदारों ने सोचा कि मैं किसी काम की नहीं हूं. लेकिन ये सब चुनौतियों ने ही मुझे और मजबूत बनाया है".

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

श्वेता, जो एक साल से अधिक समय से एचएमआर में काम कर रही हैं, कहती हैं कि काम और परिवार के बीच तालमेल बिठाना कोई आसान काम नहीं है. "मेरी हाल ही में शादी हुई है, और मुझे खाना बनाना नहीं आता था. मैं इससे पहले 11 साल तक एक छात्रावास में रही. मुझे आमतौर पर सुबह की शिफ्ट मिलती है, लेकिन मेरे लिए घर के सारे काम करना और काम पर आना मुश्किल होता है. इसलिए , मैंने अपने मैनेजर से दोपहर की शिफ्ट के लिए अनुरोध किया. मेरी शिफ्ट पूरी होने के बाद, मुझे घर जाना है और अधिक काम करना है. मुझे यह सब मैनेज करना है क्योंकि मेरे माता-पिता ने मुझे सिखाया है कि एक महिला के लिए आर्थिक रूप से स्वतंत्रऔर सक्षम होना महत्वपूर्ण है. श्वेता कहती हैं, जो तेलंगाना के निज़ामाबाद की रहने वाली हैं.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

चौबीस वर्षीय ऋषिकाश्री, जो तेलंगाना के वारंगल से हैं, 2020 में एचएमआर में लोको पायलट (या ट्रेन ऑपरेटर) के रूप में शामिल हुईं. वो बताती हैं "ट्रेन ऑपरेटर होने की सबसे बड़ी चुनौती इसका तकनीकी पहलू नहीं है, बल्कि यात्रियों के साथ व्यवहार करना है. संकट की स्थिति में मान लीजिए, जब ट्रेन बीच में ही रुक जाती है. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे घबराएं नहीं,". ऋषिकाश्री कहती हैं कि जब उन्होंने पहली बार इसके लिए आवेदन किया था तो उन्हें यकीन नहीं था कि वह नौकरी कर पाएंगी. आगे वो बताती हैं" लेकिन मेरे पास एक अच्छा सपोर्ट सिस्टम है. मेरे पिता मेरे नंबर 1 फैन हैं. उन्होंने हमेशा मुझसे कहा कि मैं यह कर सकती हूं".

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

हैदराबाद की रहने वाली 21 वर्षीय विजी मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद एचएमआर में शामिल हुईं. वह कहती हैं, "मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने मुझसे पूछा कि मैंने यह नौकरी क्यों ली, मैं सॉफ्टवेयर की नौकरी क्यों नहीं कर रही हूं. मैं उन्हें बताती हूं कि मैं आईटी की नौकरी से ज्यादा कुछ कर सकती हूं".

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

ऋषिकाश्री, शगुफ्ता और विजी हैदराबाद मेट्रो रेल में सबसे कम उम्र की लोको पायलट हैं.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

24 साल की हरिका सिग्नलिंग मेंटेनर के तौर पर काम करती हैं. वह अपनी टीम की अकेली महिला हैं. उसने कॉलेज के ठीक एक साल पहले यह नौकरी ली थी. "मुझे कुछ नहीं पता था, मुझे स्क्रैच से शुरू करना था". हरिका हर दिन काम पर जाने के लिए 25-30 किमी तक का सफर तय करती है. "मैं सुबह 4:30 बजे उठती हूं और अपने और अपने पति के लिए खाना बनाती हूं. मैं एक बस में बैठती हूं, जिसमें आमतौर पर बहुत भीड़ होती है, और मुझे अक्सर भीड़ के कारण फुटबोर्ड पर यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. हम सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं". मेट्रो में हमारे यात्रियों के बारे में, लेकिन हम अपने लिए ऐसा नहीं कह सकते!"

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

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