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भारतीय अदालतों में महिला जज ना के बराबर,SC में सिर्फ 1, HC में 11%

लोअर कोर्ट में भी महिलाओं की हिस्सेदारी कम

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लोअर कोर्ट में भी महिलाओं की हिस्सेदारी कम
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लोअर कोर्ट में भी महिलाओं की हिस्सेदारी कम
(प्रतीकात्मक फोटो: iStock) 

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"सिर्फ उच्च हाईकोर्ट ही क्यों, हमें लगता है कि वक्त आ गया है जब भारत की मुख्य न्यायाधीश एक महिला होनी चाहिए". CJI एस ए बोडबे ने यह बात गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर्स एसोसिएशन(SCWLA) की तरफ से दायर याचिका की सुनवाई में कही. गुरुवार को CJI बोडबे,न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तीन सदस्यीय बेंच उच्च न्यायालयों में महिला जजों की और ज्यादा नियुक्ति की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

बेंच ने कहा कि “हमें महिलाओं के हितों का ख्याल है. इसके लिए किसी विशेष ‘चेंज ऑफ एटीट्यूड’ की जरूरत नहीं है. उम्मीद करते हैं कि वे (महिला जज) नियुक्त होंगी”.  

सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए एडवोकेट स्नेहा कलिता ने बेंच को बताया कि उच्च न्यायालयों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 11.04% है. याचिका के आंकड़ों के अनुसार स्वीकृत 1080 जजों (स्थायी और एडिशनल जजों को मिलाकर) में से 661 जज नियुक्त हैं. उनमे महिला जजों की संख्या मात्र 73 है. साथ ही आजादी से अब तक सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त 247 जजों में से महिला जज की संख्या मात्र 8 है.

SCWLA की तरफ से ही पक्ष रखते हुए एडवोकेट शोभा गुप्ता ने बेंच से इस मामले में हस्तक्षेप के लिए नोटिस जारी करने की अपील की. हालांकि बेंच ने यह कहते हुए सरकार को नोटिस जारी करने से इंकार कर दिया कि वे 'स्थिति को जटिल' बनाना नहीं चाहते.

सुनवाई के बीच CJI बोडबे ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “मुझे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों ने बताया है कि कई महिला वकील उच्च न्यायालय में जज के रूप में नियुक्ति से घरेलू उत्तरदायित्वों, जैसे बच्चों की 12वीं की पढ़ाई, के कारण इंकार कर देती हैं. CJI की इस टिप्पणी के विरोध में दिल्ली हाईकोर्ट वुमन लॉयर्स फोरम ने ट्वीट करते हुए कहा कि “हम तैयार हैं ,अत्यधिक प्रसन्न हैं इस उत्तरदायित्व को निभाने के लिए और इस संस्था में सेवा देने के लिए”.
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हाईकोर्ट और महिलाओं का प्रतिनिधित्व

जनसंख्या में लगभग आधी हिस्सेदारी के बावजूद उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में महिला जजों की संख्या अधिक कम है. 2019 में भारत की हालत पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट (US) की जज सबरीना मैकेना ने इसे 'टोकन रिप्रेजेंटेशन' कहा था.

  • 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आने के बाद से सुप्रीम कोर्ट में अब तक 247 जजों की नियुक्ति हुई, जिसमें महिला जजों की संख्या मात्र 8 रही है .वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ इंदिरा बनर्जी ही एकमात्र सिटिंग महिला जज है.
  • उसी तरह वर्तमान के उच्च न्यायालय के 661 जजों में से सिर्फ 73 महिला जज है.इस तरह उनका प्रतिनिधित्व उच्च न्यायालयों में भी मात्र 11.04% है.
  • जम्मू - कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल के 8 दिसंबर 2020 को रिटायरमेंट के बाद वर्तमान में किसी भी उच्च न्यायालय में महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं है.
  • वर्तमान में मणिपुर ,त्रिपुरा, मेघालय ,तेलंगना ,पटना और उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक भी महिला जज नहीं है
दरअसल उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति के लिए बनने वाले कोलेजियम में ही उन्हें स्थान नहीं मिलता. अब तक सिर्फ 2 महिला जज-न्यायमूर्ति रूमा पाल और आर. बनुमथी- ही कोलेजियम का हिस्सा रहीं हैं.  

लोअर कोर्ट- यहां भी हिस्सेदारी कम

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा 12 फरवरी 2018 को जारी Tilting the Scale: Gender imbalance in the lower judiciary नामक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश के लोअर कोर्टस् में नियुक्त 15806 जजों में से सिर्फ 4409 महिला जज थी .इस तरह लोअर कोर्ट में भी उनके हिस्सेदारी मात्र 27.9% थी.

नियुक्ति में आरक्षण के बावजूद बिहार में उनकी हिस्सेदारी मात्र 11.5% थी जो देश में सबसे न्यूनतम थी. वही दूसरी तरफ सबसे ज्यादा हिस्सेदारी मेघालय (73.8% ) थी.

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