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"सिर्फ उच्च हाईकोर्ट ही क्यों, हमें लगता है कि वक्त आ गया है जब भारत की मुख्य न्यायाधीश एक महिला होनी चाहिए". CJI एस ए बोडबे ने यह बात गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर्स एसोसिएशन(SCWLA) की तरफ से दायर याचिका की सुनवाई में कही. गुरुवार को CJI बोडबे,न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तीन सदस्यीय बेंच उच्च न्यायालयों में महिला जजों की और ज्यादा नियुक्ति की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
सुप्रीम कोर्ट वुमन लॉयर्स एसोसिएशन की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए एडवोकेट स्नेहा कलिता ने बेंच को बताया कि उच्च न्यायालयों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 11.04% है. याचिका के आंकड़ों के अनुसार स्वीकृत 1080 जजों (स्थायी और एडिशनल जजों को मिलाकर) में से 661 जज नियुक्त हैं. उनमे महिला जजों की संख्या मात्र 73 है. साथ ही आजादी से अब तक सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त 247 जजों में से महिला जज की संख्या मात्र 8 है.
SCWLA की तरफ से ही पक्ष रखते हुए एडवोकेट शोभा गुप्ता ने बेंच से इस मामले में हस्तक्षेप के लिए नोटिस जारी करने की अपील की. हालांकि बेंच ने यह कहते हुए सरकार को नोटिस जारी करने से इंकार कर दिया कि वे 'स्थिति को जटिल' बनाना नहीं चाहते.
जनसंख्या में लगभग आधी हिस्सेदारी के बावजूद उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में महिला जजों की संख्या अधिक कम है. 2019 में भारत की हालत पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट (US) की जज सबरीना मैकेना ने इसे 'टोकन रिप्रेजेंटेशन' कहा था.
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा 12 फरवरी 2018 को जारी Tilting the Scale: Gender imbalance in the lower judiciary नामक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश के लोअर कोर्टस् में नियुक्त 15806 जजों में से सिर्फ 4409 महिला जज थी .इस तरह लोअर कोर्ट में भी उनके हिस्सेदारी मात्र 27.9% थी.
नियुक्ति में आरक्षण के बावजूद बिहार में उनकी हिस्सेदारी मात्र 11.5% थी जो देश में सबसे न्यूनतम थी. वही दूसरी तरफ सबसे ज्यादा हिस्सेदारी मेघालय (73.8% ) थी.
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