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आज विश्व पर्यावरण दिवस है. कुछ दिन पहले ही चीन का इनोवेटिव प्रोजेक्ट “आर्टिफिशियल सन” यानी कृत्रिम सूरज सुर्खियों में रहा था. बताया जा रहा है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर की सहायता से यह सूर्य के तापमान से 10 गुना ज्यादा तापमान बना सकता है. इसे क्लीन एनर्जी की दिशा में बड़ा कदम भी माना जा रहा है. आइए इस World Environment Day पर ऐसी कुछ क्लीन एनर्जी के इनोवेटिव प्रोजेक्टस को जानते हैं...
डेली मेल के मुताबिक, चीन ने जो आर्टिफिशियल सूरज तैयार किया है, उसने नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. चीन के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर ने 100 सेकेंड्स तक 120 मिलियन डिग्री का तापमान बनाए रखा. वहीं अपने पीक के दौरान रिएक्टर ने 10 सेकेंड्स के लिए 160 डिग्री सेल्सियस का आंकड़ा भी छू लिया था.
चीनी वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि 'एक्सपेरिमेंटल एंडवांस सुपरकंडक्टिंग टोकामक (EAST)' बीजिंग में असीमित क्लीन पावर के लिए ग्रीन एनर्जी का एक ताकवर सोर्स साबित हो सकता है. क्योंकि यह मशीन उसी तरह ऊर्जा का उत्पादन करती है जैसे प्राकृतिक तौर पर सूर्य और तारे करते हैं. इस प्रोजेक्ट पिछले साल शुरू हुआ था इसका अगला लक्ष्य एक सप्ताह तक तापमान को नियंत्रित करके रखना है. यह डिवाइस चाइनीज अकादमी ऑफ साइंसेज के हेफेई इंस्टीट्यूट्स ऑफ फिजिकल साइंस में स्थापित की गई है.
फ्यूजन रिएक्शन में किसी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं होता है. बड़े स्तर पर अगर कार्बन मुक्त स्रोत के तौर पर यह प्रयोग सफल हुआ तो भविष्य में क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में दुनिया को अभूतपूर्व फायदा हो सकता है.
भौतिकी से जुड़ी वेबसाइट phys.org के मुताबिक कोरियाई वैज्ञानिकों ने 2020 में कोरिया सुपरकंडक्टिंग टोकामक एडवांस्ड रिसर्च (KSTAR) फ्यूजन रिएक्टर को 20 सेकंड्स तक चलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था. वह उपलब्धि खास थी, क्योंकि तब तक किसी भी देश के वैज्ञानिक इस असीमित ऊर्जा के भंडार को नियंत्रित नहीं कर सके थे. वैज्ञानिकों का यह प्रोजेक्ट परमाणु संलयन ऊर्जा की प्रौद्योगिकी की प्रगति और अनुसंधान में एक बड़ा सुधार है. अंतर्रराष्ट्रीय फिजिक्स ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार कोरिया ने अपने ‘कृत्रिम सूर्य' से 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की ऊर्जा उत्पादित की थी. यह परीक्षण नवंबर 2020 में किया गया था, जिसे कोरियाई वैज्ञानिकों ने 24 नवंबर को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया था. 2025 तक इस प्रोजेक्ट का चौथा स्टेज पूरा होना है. तब वैज्ञानिक 300 या इससे ज्यादा सेकेंड्स तक 30 या इससे ज्यादा मेगावाट तक की हीटिंग कैपिसिटी को हासिल करेंगे.
ग्रीन एनर्जी की तरफ स्विच होने की दिशा में डेनमार्क सरकार ने इसी साल फरवरी में एक अहम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है. यह प्रोजेक्ट दुनिया के पहले एनर्जी आईलैंड के निर्माण का है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार यह 1 लाख 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा क्षेत्र यानी 18 फुटबॉल पिच के बराबर रहेगा. यह आईलैंड 200 विशाल ऑफशोर विंड टर्बाइन यानी खुले समुद्र में लगने वाली टाइबाईन के हब के तौर पर काम करेगा. लगभग 34 बिलियन डॉलर का यह प्रोजेक्ट डेनमार्क के इतिहास का सबसे बड़ा कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट होगा. समुद्र तट के 80 किलोमीटर अंदर स्थित इस आईलैंड पर आधा हक सरकार का रहेगा लेकिन आंशिक तौर पर यह प्राइवेट सेक्टर के हाथों में होगा.
बाल्टिक सागर और उत्तरी सागर में तैयार हो रहे दो एनर्जी आईलैंड वाले प्रोजेक्ट से न केवल डेनमार्क को एनर्जी मिलेगी बल्कि यहां से जर्मनी, नीदरलैंड्स और बेल्जियम को भी पावर सप्लाई की जाएगी. इस प्रोजेक्ट के शुरू होने की उम्मीद 2030 से 2033 के बीच है.
यहां 260 मीटर ऊंचाईयों वाली विशालकाय विंड टर्बाइनों से 5GW गीगा बाइट ऊर्जा का उत्पादन होगा.
यह आईलैंड लगभग 10 मिलियन यूरोपीय घरों की बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हरित ऊर्जा का उत्पादन और भंडारण करेगा. यह सैकड़ों ऑफशोर विंड टर्बाइन से जुड़ा होगा और विमानन, शिपिंग, उद्योग और भारी परिवहन में उपयोग के लिए घरों और ग्रीन हाइड्रोजन को बिजली की आपूर्ति करेगा.
दुनिया के कई देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अलग-अलग इनोवेटिव प्रोजेक्टस पर काम भी चल रहा है. विंड और सोलर पावर के साथ-साथ हाईड्रोजन पावर के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं. क्लीन हाईड्रोजन एनर्जी के लिए एक पार्टनरशिप भी की गई है, इसमें चीन, अमेरिका, ब्रिट्रेन और यूरोपीय यूनियन जैसे दिग्गज सदस्य हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार इस क्लीन टेक रिसर्च प्रयास को मिशन इनोवेशन (MI) प्रोग्राम का नाम दिया गया है. अगले दशक यानी 2030 तक इसमें शीर्ष देशों द्वारा इसमें 248 मिलियन डॉलर के निवेश की उम्मीद है.
इस ग्रुप द्वारा मुख्य तौर पर हाईड्रोजन पावर, शिपिंग, लॉन्ग डिस्टेंस ट्रांसपोर्टेशन और वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड हटाने के क्षेत्र में फोकस किया जा रहा है.
इस ग्रुप के सभी सदस्यों में हाईड्रोजन वैली शुरू करने की सहमति बनी है. ये वैली इंडस्ट्रीज की क्लस्टर के तौर पर होंगी जो क्लीन हाईड्रोजन फ्यूल से संचालित होंगी.
फ्यूल सेल के इस ज्वॉइंट इनिशिएटिव में अब तक 36 हाईड्रोजन वैलियों पर सहमति बन चुकी है. इसमें 36741 M€ का कुल निवेश किया जा चुका है. इसमें 24 देश और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं.
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में 26 हजार मेगावॉट रिन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन की बात कही जा रही है. यह काम एशियन रिन्यूएबल एनर्जी हब द्वारा किया जाएगा. जब यह पूरी तरह से तैयार होगा तब इसमें 1600 विशालकाय विंड टर्बाइन और 75 वर्ग किलोमीटर में फैली सोलर प्लेट्स होंगी. गार्जियन की खबर के मुताबिक ऑस्टेलिया में कई रिन्यूएबल प्रोजेक्ट चल रहे हैं.
इन प्रोजेक्ट्स की बदौलत ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा रिन्यूएबल एनर्जी का पावर स्टेशन हो सकता है.
2014 में शुरु हुए इस प्रोजेक्ट ने अक्टूबर 2020 में 15000 मेगा वाट की पहली स्टेज को छू लिया है.
प्रोजेक्ट की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इससे 26000 मेगा वाट रेन्यूएबल एनर्जी जनरेट होगी.
इससे ग्रीन हाईड्रोजन प्रोड्यूस की जाएगी और उसे मार्केट में एक्सपोर्ट किया जाएगा.
इस प्रोजेक्ट द्वारा 2027-2028 में एक्सपोर्ट शुरु हो सकता है.
थाईलैंड भी नॉन फॉसिल फ्यूल्स में कमी लाने का काम कर रहा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार थाईलैंड दुनिया के सबसे बड़े फ्लोटिंग हाईड्रो-सोलर हाईब्रिड प्रोजेक्ट्स में से एक पर काम कर रहा है. अभी एक डैम में 300 एकड़ जलक्षेत्र को सोलर पैनल के द्वारा कवर किया गया है. जिसमें लगभग 1 लाख 44 हजार 417 सोलर पैनल लगाए गए हैं.
इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन अथॉरिटी ऑफ थाईलैंड (EGAT) का लक्ष्य है कि आने वाले 16 वर्षों में 8 और डैम तैयार किए जाएंगे.
प्रोजेक्ट अधिकारी के अनुसार जब सभी डैम के प्रोजेक्ट पूरे हो जाएंगे तो इससे 2725 मेगावाट की एनर्जी जनरेट होगी.
2037 तक थाईलैंड फॉसिल फ्यूल्स में 35 फीसदी की कमी करना चाहता है.
थाईलैंड अपने इस इनोवेटिव प्रोजेक्ट से कोल एनर्जी में निर्भरता कम करने के लिए प्रयासरत है.
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