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रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकल. प्लास्टिक प्रदूषण के प्रकोप से बचने के लिए स्कूलों में बच्चों को यही सिखाया जाता है लेकिन बड़े हैं कि मानने को तैयार नहीं. नतीजा ये है कि वायु और जल प्रदूषण की तरह प्लास्टिक पॉल्यूशन भी जानलेवा लेवल तक बढ़ गया है. प्लास्टिक पॉल्यूशन से खाना दूषित हो रहा है, पानी खराब हो रहा है, जमीन तो जमीन, समुद्री जीवों का जीना दुश्वार हो गया है. नौबत ये है कि प्लास्टिक पर देशों में झगड़ा हो रहा है.
सड़क किनारे, नालियों में, कचरे के ढेर में, घर से लेकर बाहर तक आज प्लास्टिक ही नजर आता है. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार देश में हर दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है. ये कचरा देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. ये हाल तब है कि जब एक औसत भारतीय हर साल सिर्फ 11 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है, जबकि एक औसत अमेरिकी 109 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है.
प्लास्टिक की परेशानी इतनी बड़ी है कि इसके लिए एक देश युद्ध तक की धमकी तक दे चुका है. फिलीपींस ने कनाडा को चेतावनी दी कि अगर उसने अपना कचरा वापस नहीं लिया तो युद्ध हो जाएगा. इन दोनों देशों के बीच 2013-14 में इसी मुद्दे पर कोल्ड वॉर चली. दरअसल कनाडा ने रीसाइकलिंग के लिए कचरे के कुछ कंटेनर फिलीपींस भेजे थे. फिलीपींस का आरोप था कि इन कंटेनरों में जहरीला प्लास्टिक कचरा भरा था.
चाहे समुद्र हो या धरती, आज पृथ्वी का कोई भी कोना ऐसा नहीं जो प्लास्टिक से बच पाया हो. अब इन डंपिंग ग्राउंड्स के लिए भी देशों में लड़ाई होने लगी है. हाल ही में मलेशिया ने अमीर देशों का डंपिंग ग्राउंड बनाने से इंकार कर दिया. मलेशिया के पर्यावरण मंत्री यो बी यिन ने कहा कि इन देशों को लगभग तीन हजार मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा वापस भेजा जाएगा. इसमें वो प्लास्टिक वेस्ट शामिल है, जो रिसाइकिल नहीं किया जा सकता. मलेशिया ने दावा किया कि इन देशों ने चोरी छिपे दूषित कचरे से भरे 60 कंटेनर भेजे.
इन कंटेनर्स में ब्रिटेन से केबल, ऑस्ट्रेलिया के दूध के कार्टन्स, बांग्लादेश से कॉम्पैक्ट डिस्क थे. साथ ही इनमें अमेरिका,कनाडा, जापान, सऊदी अरब और चीन के इलेक्ट्रॉनिक और हाउसहोल्ड गार्बेज भी शामिल थे.
असम के एक स्कूल ने पर्यावरण को प्लास्टिक से बचाने के लिए एक अनोखी पहल छेड़ी है. इस स्कूल में बच्चों से बतौर फीस पैसे नहीं लिए जाते बल्कि प्लास्टिक ली जाती है. इस अनोखे स्कूल का नाम है 'अक्षर'. यहां आर्थिक रूप से कमजोर 110 बच्चे पढ़ते हैं. इन बच्चों से हर हफ्ते फीस के तौर पर प्लास्टिक के पुराने और खराब हो चुके 10 से 20 सामान मंगाए जाते हैं. फिर इस प्लास्टिक से ईको ब्रिक्स बनाई जाती हैं. साथ ही बच्चों को प्लास्टिक न जलाने की सलाह भी दी जाती है. 2016 में परमिता शर्मा और माजिन मुख्तर ने इस स्कूल की नींव रखी थी.
भारत ने पिछले साल पर्यावरण दिवस ग्लोबली होस्ट किया था. इस मौके पर भारत सरकार ने 2022 तक एक बार उपयोग कर फेंके जाने वाले प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया है. ग्लोबल रिसोर्सेज फॉर इंसीनरेटर अल्टरनेटिव्स (GAIA) के मुताबिक भारत विश्व के अन्य देशों से ज्यादा प्लास्टिक रीसायकल करता है. लेकिन जाहिर तौर पर अभी हमें लंबा सफर तय करना है.
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