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कर्नाटक में बीती 15 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से सियासी घमासान मचा हुआ है. सीएम पद की शपथ ले चुके बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा अपने पास बहुमत होने का दावा कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस-बीजेपी गठबंधन का दावा है कि बहुमत उनके पास है. इस उठापटक के बीच सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को शनिवार शाम चार बजे विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का फैसला सुनाया है. लिहाजा, आज शाम विधानसभा में होने वाला शक्ति परीक्षण ही येदियुरप्पा की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार के भाग्य का फैसला करेगी.
कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटें हैं. हालांकि, दो विधानसभा सीट जयानगर और राजाराजेश्वरी नगर सीट पर विधानसभा टल गया था. लिहाजा, बीती 12 मई को केवल 222 विधानसभा सीटों के लिए ही वोटिंग हुई. जेडीएस चीफ और सीएम पद के दावेदार एचडी कुमारस्वामी ने रामनगर और चन्नापाटन दो सीटों से जीत दर्ज कराई थी. अब कुमारस्वामी को एक सीट छोड़नी पड़ेगी, वह सिर्फ एक वोट ही कर पाएंगे. ऐसे में वोट बचे 221. इसके अलावा, एक विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है. प्रोटेम स्पीकर सिर्फ उसी स्थिति में वोट कर सकता है, जब मुकाबला बराबरी का हो गया हो. ऐसी स्थिति में ही प्रोटेम स्पीकर निर्णायक वोट कर सकता है.
प्रोटेम स्पीकर को छोड़ दें तो कर्नाटक विधानसभा में फिलहाल विधायकों की संख्या 220 है. सुप्रीम कोर्ट ने सीक्रेट बैलट का फैसला सुनाया है. ऐसे में समझते हैं कि शक्ति परीक्षण कराने की प्रक्रिया क्या होती है?
सबसे पहले प्रोटेम स्पीकर सभी चुने गए विधायकों को सदन में शपथ दिलाएंगे. इसके लिए सुबह 11 बजे का वक्त तय किया गया है. इस दौरान जो भी विधायक शपथ नहीं लेंगे या मौजूद नहीं रहेंगे, उन्हें विधायक नहीं माना जाएगा.
इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद शाम 4 बजे सदन में शक्ति परीक्षण होगा. विधायक विश्वास मत डालेंगे. इसके बाद मेंबर ऑफ द हाउस विश्वास प्रस्ताव लेकर आएंगे, जोकि आमतौर पर सदन में सत्ताधारी पार्टी का मुखिया होता है.
विधानसभा की प्रक्रिया के मुताबिक, स्पीकर प्रस्ताव पढ़ेंगे. इसके बाद वोटिंग होगी. स्पीकर को यह अधिकार होता है कि वोटिंग कैसे कराई जाए. वोट इन तरीकों से दर्ज कराया जा सकता है.
इस तरीके से वोटिंग के लिए स्पीकर प्रस्ताव के पक्ष में विधानसभा सदस्यों से 'हां' या 'ना' में जवाब लेते हैं. इसके बाद स्पीकर जवाबों की संख्या के हिसाब से बहुमत तय करता है. इस तरीके को जहां, सबसे सरल और जल्दी संपन्न होने वाला माना जाता है, वहीं इसे विवादास्पद भी माना जाता है. खास तौर पर उस स्थिति में जब किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न हो.
अक्टूबर 2010 में कर्नाटक में तत्कालीन सीएम बीएस येदियुरप्पा को बहुमत साबित करना पड़ा था. उस वक्त वॉयस वोट के जरिए ही येदियुरप्पा ने बहुमत साबित किया था और वह जीत गए थे. लेकिन तत्कालीन गर्वनर एचआर भारद्वाज ने इस शक्ति परीक्षण के दौरान गंभीरता न बरते जाने के कारण खारिज कर दिया था. बादा में दोबारा शक्ति परीक्षण हुआ, उसमें भी येदियुरप्पा जीत गए थे.
वोटों का विभाजन भी कई तरीकों से किया जा सकता है. कर्नाटक विधानसभा में ईवीएम सिस्टम नहीं है, ऐसे में पर्ची के जरिए वोटिंग होती है. वोटिंग में हिस्सा लेने वाले विधानसभा सदस्य अपने नेता के पक्ष में 'समर्थन' और 'समर्थन नहीं' लिखी हुई पर्चियों के जरिए वोट करते हैं. हालांकि, वोटिंग के इस तरीके को ज्यादा पसंद नहीं किया जाता है.
सदस्यों की गिनती के तरीके को आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर ज्यादा आजमाते हैं. शुक्रवार को सचिवालय के सचिव मुर्ति ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि शक्ति परीक्षण के दौरान सदन में मौजूद विधायकों को खड़े होकर मौजूदगी दर्ज कराने के लिए कहा जा सकता है. जो प्रस्ताव के पक्ष में होंगे, वो खड़े हो जाएंगे और फिर खड़े हुए सदस्यों की गिनती कर ली जाएगी.
इसके अलावा प्रोटेम स्पीकर रोल कॉल तरीके को भी अपना सकते हैं. इसमें सदन को ब्लॉकों में बांट दिया जाएगा. इसके बाद विधानसभा सचिव हर ब्लॉक में जाकर प्रत्येक विधायक का वोट रिकॉर्ड करेंगे. सचिव उन विधायकों का वोट भी रिकॉर्ड करेंगे, जो न्यूट्रल रहेंगे. रोल-कॉल प्रक्रिया का इस्तेमाल बीते साल फरवरी महीने में तमिलनाडु में पलनीस्वामी सरकार के लिए किया गया था.
सदन के सदस्य प्रोटेम स्पीकर द्वारा नतीजे की घोषणा करने से पहले किसी भी विधायक के वोट को कई आधारों के तहत चुनौती भी दे सकते हैं. हालांकि, प्रोटेम स्पीकर का निर्णय अंतिम होता है.
वोटों की गिनती होती है और फिर नतीजे की घोषणा कर दी जाती है.
अगर येदियुरप्पा जीतते हैं, तो वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे और प्रोटेम स्पीकर के निर्णय के बाद वह अपनी कैबिनेट का गठन करेंगे. नतीजा बीजेपी के पक्ष में आने पर येदियुरप्पा कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह भव्य तरीके से आयोजित किया जा सकता है.
अगर येदियुरप्पा शक्ति परीक्षण में हार जाते हैं, तो दो बातें हो सकती हैं.
राज्यपाल वजुभाई वाला चुनाव के बाद हुए कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं. इसके बाद एचडी कुमारस्वामी को शक्ति परीक्षण की प्रक्रिया से गुजरना होगा और सदन में बहुमत साबित करना होगा.
इसके अलावा राज्यपाल वजुभाई वाला राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लगा सकते हैं. अगर ऐसा होता है, तो छह महीने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहेगा और फिर दोबारा चुनाव होंगे.
(स्रोतः द न्यूज मिनट)
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