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बूचड़खानों पर हो रही योगी सरकार की कार्रवाई का यूपी के मीट कारोबार पर क्या असर पड़ा, ये जानने के लिए द क्विंट ने राष्ट्रीय राजधानी से लेकर बरेली तक करीब 250 किलोमीटर का सफर किया और ये जानने की कोशिश की कि आखिर मीट कारोबार पर योगी सरकार की कार्रवाई का क्या असर पड़ा है.
देश में राजनीतिक दलों के लिए हमेशा ही कहा जाता रहा है कि वह अपने चुनावी वादे पूरे नहीं करते हैं. लेकिन योगी सरकार इस कहावत से अलग है. योगी सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले एंटी रोमियो स्क्वॉड शुरू किया और फिर अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत की. योगी सरकार ने अपने घोषणा पत्र में शामिल इन दोनों अभियानों की शुरुआत जिस तेजी से की है उससे उनके समर्थकों में भारी खुशी है.
यूपी में करीब आधा दर्जन से ज्यादा लाइसेंसी बूचड़खाने नियम और शर्तों को पूरा न करने की वजह से अस्थाई रूप से बंद हो चुके हैं. इसके अलावा दर्जनभर से ज्यादा अवैध बूचड़खानों पर भी ताला जड़ चुका है.
62 साल के मोहम्मद यूनुस पिछले तीन दशक से भैंसों का कारोबार कर रहे हैं. उनके सामने कई सरकारें आईं और गईं. तो अब ऐसा क्या है जो उन्हें योगी सरकार के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने पर मजबूर कर रहा है?
यूनुस बताते हैं, 'पुलिस हमारी गाड़ियां रोक लेती है और घूस की मांगती है. ऐसा पहले भी होता था, लेकिन अब घूस की रकम ज्यादा मांगी जाती है.'
फरीदपुर के रहने वाले 55 साल के मोहम्मद असलम दावा करते हैं, ''ऐसा भी हो रहा है कि पुलिस हमारे टैंपो रोकती है और फिर दूसरे लोग आकर हमारी भैंसों को सीज कर रहे हैं."
"अगर आप हमें हमारे धंधे से दूर कर रहे हैं तो सरकार को चाहिए कि वह हमें उसके बदले कुछ दे? हमें नौकरियां दे या फिर जमीनें दे?"
सब लोगों की तरह आप भी यूनुस की मांग का समर्थन करते होंगे लेकिन उच्च जाति से ताल्लुक रखने वाले हिंदू सज्जन, जो कि शाकाहारी हैं और गौ माता की पूजा करते होंगे, वो संभवतः इसका समर्थन करने वाले अंतिम व्यक्ति होंगे. लेकिन जब हमने सूबे की राजनीति के बारे में बरेली के लोगों से बात की, तो उन्होंने कहा कि मीट कारोबार को लेकर योगी सरकार की इस मुहिम के पीछे हिंदुत्व एजेंडा है.
जिन भैंस विक्रेताओं से हम मिले, उनका कहना है कि वह हिंदू भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते हैं.
लेकिन दावों की मानें तो राज्य में गौमांस मिलता है, और जिन्हें चाहिए होता है उन्हें पता है कि यह कहां मिलता है?
सभी भैंस विक्रेता एकमत से कह रहे हैं कि उनकी आपत्ति योगी सरकार की अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई से नहीं है. लेकिन समस्या ये है कि कानूनी तौर से चल रहे बूचड़खानों को भी निशाना बनाया जा रहा है. शुरुआती दस दिन की जांच के दौरान ही बरेली जोन में करीब नौ से ज्यादा लाइसेंसी बूचड़खाने बंद रहे.
उवैज का तर्क है, "सरकार कानूनी तौर से चल रहे बूचड़खानों को भी निशाना बना रही है. और इससे हमें आर्थिक रूप से भी नुकसान हो रहा है. मैं जितना कारोबार करता था, आज उसका मजह दसवां हिस्सा कर पा रहा हूं."
बरेली जोन के पुलिस महानिरीक्षक विजय प्रकाश पुलिसवालों के खिलाफ भैंस विक्रेताओं को रोकने और उनसे रिश्वत मांगने की बात को पूरी तरह से नहीं नकारते हैं. "कुछ पुलिसवाले ऐसे हैं जो कि ऐसा कर रहे हैं. लेकिन इस तरह के मामलों में कमी आई है. अगर आप कह रहे हैं कि कुछ जगहों पर ऐसा हो रहा है तो हम इसे जरूर देखेंगे."
बूचड़खानों के खिलाफ हो रही कार्रवाई से वैध बूचड़खानों को हो रही परेशानी को स्वीकार करते हुए प्रकाश कहते हैं.
"बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई कर रही जांच समिति जिलाधिकारी के निर्देशन में काम कर रही है. जांच समितियों को बेकार के कारणों की वजह से बूचड़खाने बंद नहीं कराने चाहिए."
शहर के बूचड़खाने बरेली नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. बीते 25 मार्च को क्लीयरेंस न मिलने की वजह से पूरे शहर में बकरे काटने वाले बूचड़खाने भी बंद रहे.
शहमत गंज मीट मार्केट के हालात भी ठीक नहीं हैं. चिकन खरीदने आने वाले लोग परेशान रहे क्योंकि हड़ताल के दौरान सभी मीट शॉप बंद रहीं.
इस मामले को लेकर जब द क्विंट ने बरेली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के कमिश्नर शीलधर यादव से बात की तो उन्होंने कहा, "हां, बूचड़खाने बंद कराए गए हैं, क्योंकि उन्होंने जरूरी शर्तें पूरी नहीं की हैं. लेकिन हम इस बात को लेकर आश्वस्त कर रहे हैं कि एक साल पहले बंद कराए गए बूचड़खानों को आधुनिक बनाया जाएगा और कुछ महीने बाद शुरू किया जाएगा. मीट कारोबारियों की मांग जल्दी ही पूरी हो जाएगी."
बरेली शहर के बाहर मोहनपुर में स्थित मारया फ्रोजन एग्रो फूड्स बेहद बड़ा बूचड़खाना है. बड़ी-बड़ी कंपनियों की मीट की डिमांड को पूरा करने वाला ये बूचड़खाना नई सरकार की मुहिम के बाद बेहद सुस्त हो गया है. इस बूचड़खाने से जुड़े कर्मचारियों का दावा है कि आमतौर पर बूचड़खाने में सुबहर 8 बजे से शाम 7 बजे से भैंसें काटी जाती हैं. लेकिन द क्विंट जब इस बूचड़खाने में दोपहर एक बजे पहुंचा तो भैंसों को काटने के लिए बनाया गया हिस्सा खाली पड़ा हुआ था.
हाजी शकील कुरैशी को बरेली में किसी पहचान की जरूरत नहीं है. बरेली के सबसे बड़े बूचड़खाने के मालिक शकील कुरैशी उस प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल थे, जो मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात करने बीती 30 मार्च को लखनऊ पहुंचा था.
लेकिन कुरैशी इन दिनों मीट कारोबार को हो रहे नुकसान पर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं.
आशीष शर्मा विश्व हिंदू सेना की गौरक्षा वाहिनी के जिलाध्यक्ष हैं. गौ रक्षा के लिए एक समूह चलाने वाले आशीष नई सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हैं. इतना ही नहीं आशीष की गौरक्षा वाहिनी के लोग भी सड़कों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं.
गौरक्षा वाहिनी की सीएम योगी से मांगें भी हैं. आशीष शर्मा कहते हैं, ‘हम यूपी सरकार से गुजारिश करेंगे कि वह अलग से गौ मंत्रालय बनाएं. इसके अलावा हमारी मांग है कि नवरात्रि और सावन के महीने के दौरान सभी तरह के मीट बिक्री पर रोक लगनी चाहिए.’
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