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लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही उत्तर प्रदेश में सियासी बिसात बिछाई जा रही है. न सिर्फ जिताऊ कैंडिडेट पर मंथन हो रहा है बल्कि ‘जिताऊ’ अफसरों की भी तलाश हो रही है.
दरअसल योगी राज में इन दिनों ताबड़तोड़ तबादले हो रहे हैं. पिछले एक हफ्ते में चार सौ से ज्यादा अफसरों के ट्रांसफर हो चुके हैं. सियासी गलियारे में सीएम योगी के इस ‘ट्रांसफर पॉलिटिक्स’ के खूब चर्चे हो रहे हैं. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि चुनाव के पहले सरकार क्यों थोक के भाव से अफसरों के तबादला कर रही है. तबादले के इस खेल के पीछे सरकार की क्या मंशा है? इसे समझने के लिए आपको पहले यूपी की तीन घटनाओं पर गौर करना होगा.
गोरखपुर के डीएम रह चुके राजीव रौतेला को आपको याद होंगे ही. राजीव रौतेला सीएम योगी के कितने दुलारे थे, ये दुनिया जानती है. पिछले साल रौतेला के कार्यकाल में ही गोरखपुर में लोकसभा उपचुनाव हुए. चुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. इस बीच 14 मार्च 2018 को मतगणना शुरू हुई. शुरुआती रुझान के बाद अचानक चुनाव परिणाम पर रोक लगा दिए गए. तीन घंटे तक किसी तरह का परिणाम नहीं आया. यहां तक की मीडिया को भी मतगणना स्थल तक जाने से रोक दिया गया. इसके बाद विपक्षियों ने हंगामा शुरू कर दिया.
आरोप लगे कि डीएम राजीव रौतेला ने जानबूझकर चुनाव परिणाम को रोक दिया. हालांकि जिला प्रशासन इसके पीछे तकनीकी गड़बड़ी बताता रहा जो किसी के गले नहीं उतरा. इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार की करारी हार हुई.
हाल ही में प्रयागराज में लगे कुंभ के दौरान एक दिलचस्प वाक्या सामने आया था. मेला क्षेत्र में ड्यूटी के दौरान एक सिपाही और दारोगा आपस में भिड़ गए और एक दूसरे पर गालियों की बौछार शुरू कर दी. इस घटना का कारण कुछ और नहीं बल्कि दोनों की अपनी-अपनी राजनीतिक आस्था थी.
सिपाही जहां पूर्व सीएम अखिलेश यादव के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नहीं था, तो दूसरी ओर दारोगा की आस्था सीएम योगी आदित्यनाथ में थी. दोनों अपने-अपने नेता की तरफदारी करते हुए एक दूसरे को गालियां दे रहे थे. इस घटना के सामने आने के बाद पुलिस महकमे की खूब किरकिरी हुई.
लोकसभा चुनाव 2014 के पहले वाराणसी से प्रत्याशी घोषित होने के बाद नरेंद्र मोदी शहर में रोड शो करना चाहते थे. लेकिन तत्कालीन डीएम प्राजंल यादव ने कानून-व्यवस्था का हवाला देकर नरेंद्र मोदी को रोड शो की इजाजत नहीं दी.
इसके बाद बीजेपी ने खूब हंगामा मचाया. उस दौर में प्रांजल यादव की गिनती अखिलेश के खास अफसरों में होती थी. बीजेपी का आरोप था कि अखिलेश यादव के इशारे पर प्रांजल यादव चुनाव में काम कर रहे हैं.
जानकार बताते हैं कि हर सत्ताधारी पार्टी, चुनाव के पहले अपने पसंदीदा अफसरों को सेट करने की कोशिश करती है. आचार संहिता लागू होने के बाद कामकाज में सरकार का दखल नहीं रहता है.
प्रशासनिक जिम्मेदारी से लेकर कानून व्यवस्था इलेक्शन कमीशन के हवाले हो जाता है. ऐसे में अफसरों की भूमिका काफी अहम हो जाती है. सत्ताधारी पार्टियां चाहती हैं कि चुनाव के दौरान अफसर उनके फेवर में काम करें. इसलिए अधिसूचना जारी होने से पहले पसंदीदा अफसरों को महत्वपूर्ण जगहों पर तैनाती दी जाती है.
तबादलों के दौरान अफसरों की स्क्रूटनिंग पर खास ध्यान दिया जाता है. सत्ताधारी पार्टियां ऐसे अफसरों पर दांव खेलती हैं, जिनकी निष्ठा सरकार के साथ पार्टी की विचारधारा में ही रहती है. दूसरे शब्दों में इसे आप कह सकते हैं कि पार्टी के करीब रहने वाले अफसरों को ही तरजीह दी जाती है. यूपी के प्रशासनिक महकमे में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही चल रहा है.
आलम ये है कि पिछले सात दिनों के अंदर लगभग चार सौ अफसरों का ट्रांसफर हो चुका है. इनमें 100 के करीब आईएएस, 150 से ज्यादा आईपीएस शामिल हैं.
प्रदेश मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय को सीएम योगी आदित्यनाथ का यूं ही चेहता नहीं कहा जाता. योगी सरकार ने 13 सीनियर आईएएस की अनेदखी करके अनूप चंद्र पांडेय को मुख्य सचिव बनाया था. उस वक्त उनकी नियुक्ति को लेकर काफी हो हल्ला भी मचा था. इस बीच अनूप चंद्र पांडेय फरवरी, 2019 में सेवानिवृत्त होने वाले थे तो योगी सरकार ने बड़ा दांव खेल दिया. सरकार ने अनूप चंद्र पांडेय को 6 महीने सेवा विस्तार देने का फैसला लिया. अब पांडेय 31 अगस्त तक पद पर बने रहेंगे. माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने ये फैसला किया है.
जानकार बताते हैं कि सरकार चाहती है कि प्रशासनिक मोर्चे पर उनका करीबी अफसर ही तैनात रहे, ताकि चुनाव के दौरान किसी तरह की परेशानी ना उठानी पड़े. सरकार को इस बात का इल्म है कि अगर अफसर उनके खेमे के रहते हैं तो विपक्षी का मार को झेला जा सकता है. फिलहाल योगी सरकार इसी कोशिश को परवान चढ़ाने में जुटी है.
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