Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019UP-MP में घरों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद पहुंची सुप्रीम कोर्ट

UP-MP में घरों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद पहुंची सुप्रीम कोर्ट

वहीं कई जगहों पर बुल्डोजर की मदद से घरों को गिराए जाने के खिलाफ जमीयत अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है.

IANS
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>(फोटो: IANS)</p></div>
i
null

(फोटो: IANS)

advertisement

देश के मौजूदा हालातों पर जमीअत उलमा-ए-हिंद ने चिंता व्यक्त की है। वहीं कई जगहों पर बुल्डोजर की मदद से घरों को गिराए जाने के खिलाफ जमीयत अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। जमीयत के मुताबिक, भाजपा शासन वाले राज्यों में अपराध की रोकथाम की आड़ में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को तबाह करने के उद्देश्य से बुलडोजर की खतरनाक राजनीति शुरू हुई है।

इसी पर रोक लगाने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें जमीअत उलमा-ए-हिन्द कानूनी इमदादी कमेटी के सचिव गुलजार अहमद आजमी वादी बने हैं। इस याचिका में अदालत से यह अनुरोध किया गया है कि, वह राज्यों को आदेश दे कि अदालत की अनुमति के बिना किसी का घर या दुकान को गिराया नहीं जाएगा।

याचिका में केन्द्र सरकार के साथ साथ उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों को पार्टी बनाया गया हैं जहां हाल के दिनों में मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। याचिका ऐडवोकेट सारिम नवेद ने सीनीयर ऐडवोकेट कपिल सिब्बल से सलाह-मशविरा करने के बाद तैयार की है जबकि ऐडवोकेट आन रिकार्ड कबीर दीक्षित ने इसे ऑनलाइन दाखिल किया है। अगले चंद दिनों में याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस आफ इंडिया से अनुरोध किया जा सकता है।

मुसलमानों के मकानों और दुकानों के तोड़े जाने पर मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि, जो काम अदालतों का था अब सरकारें कर रही हैं। ऐसा लगता है कि भारत में अब कानून का राज समाप्त हो गया है। सजा देने के सभी अधिकार सरकारों ने अपने हाथों में ले लिए हैं, उस के मुंह से निकलने वाला शब्द ही कानून है और घरों को गिरा कर मौके पर ही फैसला करना संविधान की नई परंपरा बन गई है। ऐसा लगता है अब न देश में अदालतों की जरूरत है और न ही जजों की।

देश के मजलूमों को न्याय दिलाने, देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने और कानून का शासन बनाए रखने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, इस उम्मीद के साथ कि अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी न्याय मिलेगा। जब सरकार संवैधानिक कर्तव्य निभाने में असफल हो जाए और मजलूमों की आवाज सुनकर भी खामोश रहे तो अदालतें ही न्याय के लिए एकमात्र सहारा रह जाती हैं।

खरगोन शहर में जिस आपराधिक ढंग से पुलिस और प्रशासन ने गुंडागर्दी करने वालों के हित में कार्रवाई की है, इससे मालूम होता है कि कानून का पालन करना उनका उद्देश्य नहीं रहा। पुलिस और प्रशासन ने अगर थोड़ी भी संविधान के साथ वफादारी दिखाई होती तो न करौली (राजिस्थान) में मुसलमानों को निशाना बनाया जाता और न ही खरगोन में उनके मकान और तिजारत को खत्म किया जाता।

मौलाना मदनी ने आगे कहा कि, शासकों ने भय और आतंक की राजनीति को अपना आदर्श बना लिया है। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकार भय और आतंक से नहीं बल्कि न्याय से ही चला करती हैं। ऐसी स्थिति में देश के अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करना प्रधानमंत्री की संवैधानिक एवं नैतिक जिम्मेदारी है, क्योंकि प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है न कि किसी एक पार्टी, समुदाय या धर्म का।

उन्होंने चेतावनी दी कि, अगर देश में संवधान और कानून की सर्वोच्चता समाप्त हुई और धामर्मिक सद्भाव का ताना-बाना टूट गया और धर्मनिरपेक्ष संविधान को निष्क्रिय कर दिया गया तो यह बात देश के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है। देश के विकास के लिए कानून और संविधान की सर्वोच्चता अति आवश्यक है।

--आईएएनएस

एमएसके/एसकेपी

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT