Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019J&K: कैसे 1971 के युद्ध में एक गुर्जर महिला ने पुंछ को पाकिस्तान से बचाया था?

J&K: कैसे 1971 के युद्ध में एक गुर्जर महिला ने पुंछ को पाकिस्तान से बचाया था?

1971 के युद्ध में पुंछ को पाकिस्तानी कब्जे से बचाने वालीं श्रीमती माली की याद में कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखा गया

सुजीत कुमार
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>जम्मू एवं कश्मीर </p></div>
i

जम्मू एवं कश्मीर

फाइल फोटो

advertisement

इस साल सितंबर में जम्मू-कश्मीर (J&K) के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 1971 के युद्ध में पुंछ को पाकिस्तान के कब्जे से बचाने वाली श्रीमती माली की याद में मंडी स्थित सरकारी डिग्री कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखा. यह अपनी भूमि के नायकों के सम्मान के जरिए से जम्मू-कश्मीर के युवाओं को प्रेरित करने की दिशा में एक कदम है.

कभी आतंकवाद का गढ़ कहे जाने वाला पुंछ इलाका तेजी से बेहतरी की ओर बढ़ रहा है. उपराज्यपाल ने जिले में 195 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की आधारशिला रखी. जिसमें युवाओं के लिए एक हॉकी एस्ट्रो टर्फ और एक बॉक्सिंग हॉल का भी उद्घाटन किया.

पुल, सड़क, बिजली सबस्टेशन और स्मार्ट क्लासरूम जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साथ आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए 79 करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू की गईं.

सीमावर्ती गांव होने के कारण पुंछ (Poonch) को दशकों तक नजरअंदाज किया गया. एक गरीब मुस्लिम गुर्जर महिला न होती तो वह आज शायद जम्मू-कश्मीर का हिस्सा भी नहीं होता.

कौन थी मुस्लिम गुर्जर महिला "माली" ? साहस और देशभक्ति की मिसाल

यह कहानी 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान की है. अरई नामक गांव में एक गरीब गुर्जर महिला रहती थी. उसकी कम उम्र में शादी और उसके बाद उसके पति की अभद्रता से वह अपने पिता के घर लौट आई. गर्मियों के दौरान मवेशियों को जब्बी और पिल्लनवाली जैसे ऊंचे इलाकों में ले जाती थीं. बिना शैक्षिक पृष्ठभूमि, धन और जोखिम के ऐसी महिला के तेज-तर्रार और साहसी होने की कल्पना करना मुस्किल है.

युद्ध के दौरान दुश्मन के लिए पुंछ एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था. 1965 में पाकिस्तान ने रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हाजीपुर दर्रा खो दिया था. उससे सबक सीखते हुए वह पुंछ पर कब्जा करने को तैयार था. उसने सैनिकों की घुसपैठ कराकर पुंछ को कब्जाने की साजिश रची और नोजा एक दल ने घुसपैठ की.

13 दिसंबर 1971 को जब अराई टॉप और पिल्लनवाली के इलाके बर्फ से ढके थे, 40 की उम्र पार कर चुकी श्रीमती माली मवेशियों के लिए चारा लेने पिल्लनवाली गईं. वहां उसने ढोकों (गर्मियों के लिए बनी अस्थायी झोपड़ियों) से धुंआ निकलते देखा. वह मौके पर गईं और एक ढोके के अंदर देखा तो कुछ सैनिक अपनी राइफलें साफ कर रहे थे. उसने महसूस किया कि वे भारतीय सेना के जवान नहीं थे. वह घुटने तक के बर्फ का सामना करते हुए तेजी से अराई की ओर दौड़ी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

माली के बुलंद इरादे, ITBP ने किया पाकिस्तानी मनसुबों को बेअसर

शून्य से नीचे के तापमान में हांफते हुए उसने अपने भाई को घटना की जानकारी दी. उसने शांत रहने की सलाह दी. परेशान होकर माली ने गांव के सरपंच, मीर हुसैन को मामले की जानकारी दी जिले को उग्रवादियों से बचाने का आग्रह किया. सरपंच हिचकिचा रहा था.

"देशभक्ति" और अपने लोगों के लिए प्यार से प्रेरित होकर माली फिर से कलाई की ओर दौड़ी. रास्में जमे बर्फ से होते हुए वह आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) की एक छोटी टुकड़ी की चौकी तक पहुंचने में कामयाब रही. लेकिन अगली बाधा भाषा की थी. वह केवल गोजरी भाषा बोलती थी. ऐसे में घटना के बारे में सैनिकों को बताने की समस्या खड़ी हो गई. बाद में इसके लिए एक स्थानीय व्यक्ति की व्यवस्था की गई.

उसे सेना की निकटतम इकाई में ले जाया गया. कमांडिंग ऑफिसर ने उसकी कहानी सुनी और आसन्न खतरे को महसूस किया. यूनिट को तुरंत सक्रिय किया गया. क्षेत्र के भूगोल के अपने ज्ञान को देखते हुए माली ने एक गाइड और स्वयंसेवक के रूप में यूनिट के साथ काम करना जारी रखा. रात के अंधेरे में उसकी बहादुरी असाधारण थी.

उस रात इन्फैंट्री यूनिट की कार्रवाई में लगभग 30 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और कुछ को पकड़ लिया गया. बाद में पता चला कि एक बटालियन के आकार का बल डोडा और सौजियन के बीच नालों और जंगलों के माध्यम से पुंछ पर हमला करने के लिए बढ़ रहा.

उनके लॉन्च पैड तक पहुंचने से पहले ही सभी खतरों को बेअसर कर दिया गया था. माली ने पुंछ स्क्वाड्रन, उनके गोला-बारूद और पुंछ के लोगों को बचाया. सैकड़ों बेगुनाहों की जान बचाई. भारतीय सेना ने उन्हें सम्मानित के लिए सिफारिश की और भारत सरकार ने उन्हें 25 मार्च 1972 को पद्मश्री पुरस्कार देकर उनकी वीरता का सम्मान किया. श्रमती माली प्रथम गुज्जर महिला थीं, जिन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया.

-आईएएनएस

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT