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जन्मजात ऑर्थोपेडिक विसंगति 'क्लबफुट' का उपचार संभव

जन्मजात ऑर्थोपेडिक विसंगति 'क्लबफुट' का उपचार संभव

IANS
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जन्मजात ऑर्थोपेडिक विसंगति
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जन्मजात ऑर्थोपेडिक विसंगति
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 जयपुर, 17 मार्च (आईएएनएस)| जन्मजात ऑर्थोपेडिक विसंगति-'क्लबफुट' का उपचार संभव है और पारंपरिक उपचार या ऑपरेटिव ट्रीटमेंट के बाद पैर वापस सामान्य स्थिति में आ सकते हैं।

  'क्लबफुट' एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चों के पैर अंदर की तरफ मुड़े होते हैं और इस कारण वे सामान्य रूप से चलने-फिरने में अक्षम होते हैं।

समय पर उपचार कराने के बाद बच्चों को इस विकार से छुटकारा दिलाया जा सकता है और उन्हें चलने-फिरने में सक्षम बनाया जा सकता है।

चिकित्सकों के अनुसार आज की तनावपूर्ण और भाग-दौड़ भरी जिंदगी के कारण लोगों को अपने जीवन में अनेक नई असामान्यताओं का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह की एक नई असामान्यता 'क्लबफुट' स्थिति है यानी अंदर की तरफ मुड़ी हुई पैरों की अंगुलियां। यह एक जन्मजात ऑथोर्पेडिक विसंगति है, जो किसी पारंपरिक उपचार या ऑपरेटिव ट्रीटमेंट के बाद वापस पहले जैसी स्थिति में आ सकती है।

दरअसल, यह एक जन्मजात दोष है जिसमें पैर या तो अंदर की तरफ या नीचे की ओर घुमे हुए होते हैं। नतीजतन, इन बीमारियों से पीड़ित बच्चे बिल्कुल भी नहीं चल पाते हैं, यहां तक कि वे खुद बाथरूम तक भी नहीं जा पाते हैं।

नारायण सेवा संस्थान के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अमरसिंह चूंडावत कहते हैं, "आम तौर पर, जन्म के एक सप्ताह के भीतर इस स्थिति का पता लग जाता है। इस स्थिति का इलाज इसका पता लगने के तुरंत बाद शुरू होता है और ऐसे मामलों में प्री-सर्जिकल और पोस्ट-सर्जिकल उपचार भी उपलब्ध हैं।"

चिकित्सा विज्ञान के शोधकर्ता क्लबफुट के कारणों के बारे में ठीक-ठीक से कुछ कह नहीं पाते हैं, पर उनका मानना है कि यह गर्भ में एम्नियोटिक द्रव की कमी से संबंधित है जो इस विकार की आशंका को बढ़ा सकता है क्योंकि एम्नियोटिक द्रव फेफड़ों, समग्र मांसपेशियों और पाचन तंत्र के विकास में मदद करता है। हालांकि, गर्भावस्था के दौरान एक और कारण धूम्रपान हो सकता है जो बच्चे में इस विकार को जन्म देने की आशंका को बढ़ाता है। अंत में, जिन बच्चों का पारिवारिक इतिहास है, उनके इस विकार से पीड़ित होने का सबसे ज्यादा जोखिम है।

'क्लबफुट' के लक्षण :

निदान के दौरान क्लबफुट के लक्षण सामने आने पर रोगी को दिया जाने वाला उपचार निर्धारित किया जा सकता है। डॉक्टर आम तौर पर इसके प्रकट होते ही आसानी से क्लबफुट का निदान कर सकते हैं। कुछ मामलों में, वे इसकी गंभीरता को जांचने और इसका निदान करने के लिए अल्ट्रासाउंड की मदद लेते हैं। चिकित्सकों के अनुसार आम तौर पर, यह बच्चे की 'काफ मसल' है, जो अविकसित रह जाती है और इसी कारण कभी-कभी पैर अंदर की ओर या नीचे की ओर घूम जाते हैं। हालांकि क्लबफुट में कोई दर्द नहीं होता है, लेकिन यह रोगी के सर्वोत्तम हित में है कि रोग के लाइलाज होने से पहले जल्द से जल्द इसका उपचार किया जाए।

उपचार :

हालांकि इस जन्म दोष से बचना संभव नहीं है, लेकिन प्रारंभिक स्थिति में इसका उपचार कराने से स्थिति के अधिक गंभीर होने की आशंका को कम किया जा सकता है। यद्यपि इस स्थिति का कोई निश्चित उपचार नहीं है, लेकिन इस बीमारी के उपचार को मुख्य रूप से दो चरणों में विभाजित किया जाता है, पारंपरिक रूढ़िवादी उपचार और शल्य चिकित्सा उपचार।

रूढ़िवादी उपचार के साथ, पोंसेटी पद्धति है, जिसके तहत पैरों की कास्टिंग के बाद 5-8 सप्ताह तक मसल मनिप्यलेशन होता है। ज्यादातर मामलों में, कास्टिंग 5-7 दिनों के भीतर हटा दी जाती है और आवश्यकतानुसार दोहराई जाती है। मरीज के पैरों को एक पट्टी के सहारे कस कर बांधा जाता है, फिर एक साधारण बार और जूते के उपकरण में रखा जाता है। इस तरह पैरों को एक उचित स्थान पर रखा जाता है, ताकि वे आगे और खराब नहीं होने पाएं।

क्लबफुट के सर्जिकल उपचार के तहत, ऐसी कई शल्य चिकित्सा हैं, जिन्हें कोई भी चुन सकता है। यह सब हालत की गंभीरता पर निर्भर करता है। एक ऑथोर्पेडिक सर्जन पैर की बेहतर स्थिति के लिए स्नायु को लंबा करने का विकल्प चुन सकता है। पोस्टऑपरेटिव देखभाल में दो से तीन महीने तक कास्टिंग शामिल है जिसके बाद रोगी को इस स्थिति की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए ब्रेस पहनना पड़ता है।

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अमरसिंह चूंडावत कहते हैं, "यह आवश्यक है कि बच्चे को जन्म के तुरंत बाद उपचार मिलना चाहिए। इसके अलावा, यह भी जरूरी है कि माता-पिता को बच्चे की स्थिति को लेकर गलत धारणाएं बनाए बिना डॉक्टरों से संपर्क करना चाहिए।"

नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कहा, "भले ही क्लबफुट को सुधारा नहीं जा सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता है कि जिन बच्चों का इलाज जल्दी हो जाता है, वे बड़े होने पर सामान्य जूते पहन सकते हैं और सामान्य और सक्रिय जीवन जीते हैं।"

(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)

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