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"प्रमोशन नहीं, हमें टारगेट किया गया": JNU के प्रोफेसर्स ने उत्पीड़न का आरोप लगाया

द क्विंट ने JNU के कुछ प्रोफेसर्स से बात की और समझने की कोशिश की कि उन्हें यूनिवर्सिटी की ओर से किस तरह का उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है.

वर्षा श्रीराम
न्यूज
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'प्रमोशन नहीं, हमें टारगेट किया गया': JNU के प्रोफेसरों ने उत्पीड़न का आरोप लगाया

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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JNU में स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक के प्रोफेसर वाईएस अलोन का 2021 में विभाग के डीन के पद पर प्रमोशन होना था, लेकिन अब तक नहीं हुआ है. उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि उनके प्रमोशन को जल्द मंजूरी दी जाएगी.

लेकिन ऐसा क्यों? उनके अनुसार, 2018 में जेएनयू प्रशासन के खिलाफ एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन करने के लिए उन्हें और 47 अन्य शिक्षकों को टारगेट किया जा रहा है. जुलाई 2019 में जेएनयू प्रशासन द्वारा प्रोफेसर्स के खिलाफ एक "चार्जशीट" भी दायर की गई थी.

"अब चार साल हो गए हैं, लेकिन विरोध करने वाले शिक्षकों को प्रशासन द्वारा लगातार परेशान किया जा रहा है और हमें वह नहीं मिल रहा जिसके हम हकदार हैं."
प्रोफेसर वाईएस अलोन ने द क्विंट को बताया

22 सितंबर को जारी 'जेएनयू: द स्टेट ऑफ द यूनिवर्सिटी' शीर्षक से एक रिपोर्ट में, जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन (JNUTA) ने विश्वविद्यालय में शिक्षाविदों की बिगड़ती स्थितियों पर चिंता जताई है.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 276 फैकल्टी मेंबर, मुख्य रूप से सहायक और एसोसिएट प्रोफेसर का 2019 से प्रमोशन रुका हुआ है. लेकिन उनमें से 76.4 प्रतिशत अभी भी प्रमोशन के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. रिपोर्ट पर अब तक जेएनयू प्रशासन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

द क्विंट ने जेएनयू वीसी शांतिश्री पंडित के कार्यालय से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने किसी ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद द क्विंट ने जेएनयू के मीडिया समन्वयक से संपर्क किया, जिन्होंने कहा, "वीसी बहुत व्यस्त हैं" और कोई जवाब नहीं दे सके.

क्या कहती है JNUTA की रिपोर्ट?

JNUTA ने विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है, जिसमें गिरते शैक्षणिक मानक, नियमों का उल्लंघन, एडमिशन को लेकर मुद्दे और 'मनमानी' छुट्टी को लेकर नीतियां शामिल हैं.

जेएनयूटीए की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2022 से अब तक जेएनयू के विभिन्न स्कूलों के डीन की 14 नियुक्तियां हुई हैं. इसमें से 10 मामलों में "अपने संबंधित स्कूलों में वरिष्ठ सहयोगियों को नजरअंदाज करना" शामिल है.
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"चार्जशीट के आधार पर रोकी गई पेंशन और प्रमोशन"

साल 2018 में विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के लिए बनाए गए केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) नियमों को लागू करके, एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले 48 शिक्षकों के खिलाफ जेएनयू प्रशासन ने जुलाई 2019 में आरोप पत्र दायर किया था.

इसके लिए तत्कालीन वीसी एम जगदीश कुमार की काफी आलोचना हुई थी और उनके इस कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम के रूप में देखा गया. मामले पर प्रथम दृष्टया संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अगस्त 2019 में मामले पर रोक लगा दी थी.

द क्विंट ने जिन प्रोफेसरों से बात की, उन्होंने दावा किया कि आरोपपत्र का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए किया गया.

"अदालत द्वारा रोक के बावजूद, आरोप पत्र का उपयोग अवैध रूप से शिक्षकों के प्रमोशन और डीनशिप को अवरुद्ध करने के लिए किया जा रहा है. ये प्रमोशन तो पहले ही हो जाने थे, चार्जशीट तो काफी समय बाद दायर हुई जिसपर अब रोक लगा दी गई है."
प्रोफेसर वाईएस अलोन ने द क्विंट को बताया

जेएनयूटीए के अध्यक्ष और जेएनयू के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज के प्रोफेसर डीके लोबियाल ने कहा, "हम देख रहे हैं कि हमारे सहयोगियों को प्रमोशन नहीं दिया गया है, जबकि कुछ शिक्षकों को वीसी कार्यकाल से परे अध्यक्ष और डीन के रूप में विस्तार दिया गया है."

लोबियाल ने द क्विंट को बताया कि,

“शांतिश्री पंडित (वर्तमान वीसी) के 2022 में जेएनयू की वीसी बनने के बाद क्या हुआ? हमने सोचा था कि कुछ बड़ा बदलाव होगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. जिस तरह से नियुक्तियां की जाती हैं, भर्तियां की जाती हैं, उसमें कुछ भी बदलाव नहीं आया है और लोग अपने प्रमोशन के लिए पिछले सात से 10 साल से इंतजार कर रहे हैं. प्रमोशन बहुत चुनिंदा तरीके से किया जाता है."

जेएनयू के सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, ऑर्गनाइजेशन एंड डिसआर्मामेंट की प्रोफेसर मौसमी बसु ने द क्विंट को बताया कि,

"जेएनयू तब से सेवानिवृत्त हो चुके कई सहकर्मियों के पेंशन लाभ रोक रहा है जबकि अदालत कई आदेश जारी कर चुका है ताकी उन्हें न्यूनतम पेंशन और लीव एनकेशमेंट (छुट्टी के बदले मिलने वाला पैसा) मिल सके."

"छुट्टी की मंजूरी के लिए ऊपर-नीचे दौड़ना पड़ता है"

द क्विंट ने जिन पांच प्रोफेसरों से बात की, उन्होंने दावा किया कि "छुट्टी मांगने पर उनका उत्पीड़न हुआ है."

जेएनयूटीए रिपोर्ट में कहा गया कि,

“ कई बार शिक्षकों को शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए भी छुट्टी दी जाती है ताकी शिक्षक किसी शैक्षणिक कार्यक्रम का हिस्सा बन सकें इससे खुद शिक्षक और विश्वविद्यालय को ही फायदा मिलता है. जब विश्वविद्यालय को शिक्षकों की जरूरत हो उन दिनों को छोड़ दें तो इसके अलावा एक फैकल्टी मेंबर को छुट्टी मिलनी ही चाहिए."

लेकिन फिर भी उन्हें छुट्टी मिलने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सौरजीत मजूमदार ने कथित तौर पर 1 मई 2022 को सबैटिकल लीव के लिए आवेदन किया था. लेकिन उनकी छुट्टी को 'अवकाश समिति' ने पहले जांचा फिर उनका आवेदन एक लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद जुलाई 2022 को मंजूर हुआ.

मजूमदार ने आगे कहा कि...

"छुट्टी देने की प्रक्रिया, प्रमोशन की प्रक्रिया, इन सबके लिए शिक्षकों को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है. कोई नहीं जानता कि फाइल कहां है, या आवेदन किस विभाग के पास है. हमें हर विभाग में भागा-दौड़ी करनी पड़ती है और एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. प्रशासन ने इस तरह की असंवेदनशीलता पैदा कर दी है, जहां कोई जवाबदेही नहीं है."

मजूमदार ने द क्विंट को बताया कि, "यह प्रशासन का कर्तव्य है कि मुझे वे छुट्टियां दी जाएं जिनका मैं हकदार हूं. आपके आत्म-सम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचती है जब आपको इतनी छोटी सी बात के लिए एक कोने से दूसरे कोने तक दौड़ाया जाता है. अगर मैं आपके काम की आलोचना करता हूं तो आप मेरे खिलाफ ये सब नहीं कर सकते."

"नौकरशाही के परिणामों से पीड़ित"

जेएनयूटीए की रिपोर्ट में शिक्षकों ने कथित उत्पीड़न के लिए "नौकरशाही, प्रशासनिक उदासीनता" को जिम्मेदार ठहराया है.

मजूमदार ने कहा कि जिन शिक्षकों के नाम आरोप पत्र में शामिल हैं, उनके लिए "अनावश्यक बाधाएं" पैदा करने के लिए नियमों में "हेरफेर" किया जा रहा है. मजूमदार ने कहा कि...

"सिर्फ इसलिए कि हमने एक दिन के लिए विरोध प्रदर्शन किया, उन्होंने उन नियमों के तहत बड़े जुर्माने के लिए हमारे खिलाफ आरोपपत्र जारी कर दिया जो हम पर लागू नहीं होते. प्रशासन विशेष रूप से शिक्षकों को निशाना बना रहा है."

लोबियाल ने कहा, "लोगों को प्रताड़ित करने के लिए आरोपपत्र का इस्तेमाल पहले नहीं होता था. लेकिन अब, शिक्षकों को परेशान करने के नए तरीके सामने आए हैं. एक संस्थान को मानदंडों के आधार पर और एक व्यक्ति की इच्छा के अनुसार काम करना होता है."

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