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JNU में स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक के प्रोफेसर वाईएस अलोन का 2021 में विभाग के डीन के पद पर प्रमोशन होना था, लेकिन अब तक नहीं हुआ है. उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि उनके प्रमोशन को जल्द मंजूरी दी जाएगी.
लेकिन ऐसा क्यों? उनके अनुसार, 2018 में जेएनयू प्रशासन के खिलाफ एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन करने के लिए उन्हें और 47 अन्य शिक्षकों को टारगेट किया जा रहा है. जुलाई 2019 में जेएनयू प्रशासन द्वारा प्रोफेसर्स के खिलाफ एक "चार्जशीट" भी दायर की गई थी.
22 सितंबर को जारी 'जेएनयू: द स्टेट ऑफ द यूनिवर्सिटी' शीर्षक से एक रिपोर्ट में, जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन (JNUTA) ने विश्वविद्यालय में शिक्षाविदों की बिगड़ती स्थितियों पर चिंता जताई है.
द क्विंट ने जेएनयू वीसी शांतिश्री पंडित के कार्यालय से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने किसी ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद द क्विंट ने जेएनयू के मीडिया समन्वयक से संपर्क किया, जिन्होंने कहा, "वीसी बहुत व्यस्त हैं" और कोई जवाब नहीं दे सके.
JNUTA ने विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है, जिसमें गिरते शैक्षणिक मानक, नियमों का उल्लंघन, एडमिशन को लेकर मुद्दे और 'मनमानी' छुट्टी को लेकर नीतियां शामिल हैं.
साल 2018 में विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के लिए बनाए गए केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) नियमों को लागू करके, एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले 48 शिक्षकों के खिलाफ जेएनयू प्रशासन ने जुलाई 2019 में आरोप पत्र दायर किया था.
इसके लिए तत्कालीन वीसी एम जगदीश कुमार की काफी आलोचना हुई थी और उनके इस कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम के रूप में देखा गया. मामले पर प्रथम दृष्टया संज्ञान लेते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अगस्त 2019 में मामले पर रोक लगा दी थी.
द क्विंट ने जिन प्रोफेसरों से बात की, उन्होंने दावा किया कि आरोपपत्र का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए किया गया.
जेएनयूटीए के अध्यक्ष और जेएनयू के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज के प्रोफेसर डीके लोबियाल ने कहा, "हम देख रहे हैं कि हमारे सहयोगियों को प्रमोशन नहीं दिया गया है, जबकि कुछ शिक्षकों को वीसी कार्यकाल से परे अध्यक्ष और डीन के रूप में विस्तार दिया गया है."
लोबियाल ने द क्विंट को बताया कि,
जेएनयू के सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, ऑर्गनाइजेशन एंड डिसआर्मामेंट की प्रोफेसर मौसमी बसु ने द क्विंट को बताया कि,
द क्विंट ने जिन पांच प्रोफेसरों से बात की, उन्होंने दावा किया कि "छुट्टी मांगने पर उनका उत्पीड़न हुआ है."
जेएनयूटीए रिपोर्ट में कहा गया कि,
लेकिन फिर भी उन्हें छुट्टी मिलने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सौरजीत मजूमदार ने कथित तौर पर 1 मई 2022 को सबैटिकल लीव के लिए आवेदन किया था. लेकिन उनकी छुट्टी को 'अवकाश समिति' ने पहले जांचा फिर उनका आवेदन एक लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद जुलाई 2022 को मंजूर हुआ.
मजूमदार ने आगे कहा कि...
मजूमदार ने द क्विंट को बताया कि, "यह प्रशासन का कर्तव्य है कि मुझे वे छुट्टियां दी जाएं जिनका मैं हकदार हूं. आपके आत्म-सम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचती है जब आपको इतनी छोटी सी बात के लिए एक कोने से दूसरे कोने तक दौड़ाया जाता है. अगर मैं आपके काम की आलोचना करता हूं तो आप मेरे खिलाफ ये सब नहीं कर सकते."
जेएनयूटीए की रिपोर्ट में शिक्षकों ने कथित उत्पीड़न के लिए "नौकरशाही, प्रशासनिक उदासीनता" को जिम्मेदार ठहराया है.
मजूमदार ने कहा कि जिन शिक्षकों के नाम आरोप पत्र में शामिल हैं, उनके लिए "अनावश्यक बाधाएं" पैदा करने के लिए नियमों में "हेरफेर" किया जा रहा है. मजूमदार ने कहा कि...
लोबियाल ने कहा, "लोगों को प्रताड़ित करने के लिए आरोपपत्र का इस्तेमाल पहले नहीं होता था. लेकिन अब, शिक्षकों को परेशान करने के नए तरीके सामने आए हैं. एक संस्थान को मानदंडों के आधार पर और एक व्यक्ति की इच्छा के अनुसार काम करना होता है."
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