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कोरोना कर्मवीर महिला आईपीएस: जो 18 घंटे ड्यूटी करके खुद धोती हैं अपनी वर्दी

कोरोना कर्मवीर महिला आईपीएस: जो 18 घंटे ड्यूटी करके खुद धोती हैं अपनी वर्दी

IANS
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कोरोना कर्मवीर महिला आईपीएस: जो 18 घंटे ड्यूटी करके खुद धोती हैं अपनी वर्दी (आईएएनएस विशेष)
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कोरोना कर्मवीर महिला आईपीएस: जो 18 घंटे ड्यूटी करके खुद धोती हैं अपनी वर्दी (आईएएनएस विशेष)
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नई दिल्ली, 19 मई (आईएएनएस)। "कोरोना ने छोटे-बड़े का फर्क मिटा दिया। पद-परिपाटी-उसूलों की परिभाषा बदल दी। मेरी जिंदगी का तो फलसफा ही बदल गया है। 24 साल आईपीएस रहकर जो अब तक की तमाम उम्र में ख्वाब में नहीं देखा-सुना वो सब, 'कोरोना-काल' के इन 50-55 दिनों और 'लॉकडाउनी' हालातों ने समझा-सिखा डाला। हर रोज औसतन 16-18 घंटे सिपाही, हवलदार, दारोगा, इंस्पेक्टर, एसीपी, डीसीपी के साथ रेंज की सूनी पड़ी सड़कों पर घूमती हूं।"

यह किसी मुंबईया फिल्म की रुपहली पटकथा या फिर मंझे हुए स्क्रिप्ट राइटर के डायलॉग नहीं हैं। यह है आईएएनएस के साथ 1996 बैच (पहले तमिलनाडू कैडर अब अग्मूटी कैडर) की भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की वरिष्ठ अधिकारी शालिनी सिंह से हुई दो टूक बेबाक बातचीत।

शालिनी सिंह इन दिनों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के किसी रेंज की पहली महिला संयुक्त पुलिस आयुक्त (ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर) हैं। दिल्ली पुलिस के बीते 42 साल के इतिहास में (1 जुलाई 1978 में जबसे दिल्ली पुलिस में आईजी सिस्टम हटाकर कमिश्नर सिस्टम लागू हुआ)। अमूमन अब तक के इन बीते चार दशक में रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त (सिविल पुलिस पोस्टिंग) के पद पर पुरुष आईपीएस ही तैनात रहे हैं।

कोरोना काल (कोविड-19) की अब तक 55 दिनों की जिंदगी पर काफी कुरेदने पर पश्चिमी परिक्षेत्र (वेस्टर्न रेंज) की संयुक्त आयुक्त शालिनी सिंह कहती हैं, "इन दिनों मेरे तीनों ही जिलों में (बाहरी, पश्चिमी और द्वारका) शराब माफियाओं को काबू करना मुख्य चुनौती था अब सब काबू हो चुके हैं। दो-चार जो आ जाते हैं उन्हें भी पकड़ा जा रहा है।"

बकौल शलिनी सिंह, "लॉकडाउन ने शराब माफियाओं ने पुलिस को शराब तस्करी के तमाम नये ईजाद अविश्वसनीय ह्लफामूर्लोंह्व से भी वाकिफ कराया है। द्वारका जिले में हमारी टीमों ने दो-तीन ऐसे शराब तस्करों को पकड़ा जो एंबूलेंस में रखे डेडबॉडी 'फ्रीजर' के अंदर हरियाणा से शराब भरकर ला रहे थे। लॉकडाउन में शराब माफियाओं के खिलाफ किलेबंदी मेरे तीनों ही जिलों ने की। सैकड़ों वाहन जब्त किये। मगर सबसे ज्यादा शराब माफियाओं पर भारी पड़ा मेरे तीनों जिलों के थानों में द्वारका जिले का बाबा हरिदास नगर थाना।"

बकौल शालिनी सिंह, "लॉकडाउन में लॉ एंड आर्डर संभालने की ज्यादा चिंता नहीं है। क्योंकि सड़क पर न भीड़ है न अपराधी। हां, मुझे निजी तौर पर चिंता जरुर रहती है कि, मुसीबत और महामारी के इन दिनों में मकानों में बंद बैठे इंसानों को किसी चीज की कमी न रह जाये। मेरे तीनों जिलों की पब्लिक के किसी भी बाशिंदे (इंसान) यह मलाल न रह जाये कि, पुलिस वालों ने उसकी मदद नहीं की। अगर जाने-अनजाने ऐसा कुछ हुआ तो मैं इसके लिए मैं खुद को ही निजी तौर पर जिम्मेदार मानूंगी।"

आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में वे आगे कहती हैं, "यही वजह है कि, सुबह छह-सात बजे से नौ बजे तक डेली-डायरी निपटा लेती हूं। किसी भी हाल में कोशिश होती है कि, साढ़े दस बजे तक सुबह घर छोड़कर अपनों के बीच (जनता, थाने चौकी में तैनात पुलिस स्टाफ) पहुंच सकूं। ताकि वे सब खुद को असहाय या अकेला फील न करने पायें। तीन जिलों की ज्वाइंट सीपी होने के नाते हर जिले के डीसीपी से लेकर सिपाही और फिर जनता के दुख-दर्द का निराकरण करने की पहली जिम्मेदारी मेरी है। क्योंकि मैं 'टीम-लीडर' हूं। 16-18 घंटे की ड्यूटी के बाद जब अपनों (पुलिस स्टाफ के बीच से) के बीच से थकी हारी घर पहुंचती हूं देर रात, तब लगता है कि मेरा कोई अपना भी घर है।"

इतनी लंबी हाड़तोड़ ड्यूटी देने के बाद देर रात घर पहुंचने पर सबसे पहला काम क्या होता है? पूछने पर शालिनी सिंह ने कहा, "घर में घुसने से कुछ किलोमीटर पहले ही मोबाइल से घर वालों को अलर्ट कर देती हूं कि, मैं घर में पहुंचने वाली हूं। कोई मेरे सामने न आये। मेन गेट से लेकर स्नानघर तक के सभी दरवाजे खुले मिलते हैं। ताकि मुझे किसी दरवाजे को अपने हाथों से टच न करना पड़े। नहाती हूं उसके बाद खुद ही अपनी वर्दी धोती हूं। तब अपने कमरे में पहुंचती हूं। खाना पहले से ही बना रखा होता है। खुद को आईसोलेट करके बिस्तर पर लेटी-लेटी सोचती हूं कि, आज दिन में मैंने क्या क्या किया? क्या क्या करना था जो अधूरा छूट गया? यही सोचते सोचते नींद आ जाती है।"

कोरोना काल में ऐसी भागीरथी ड्यूटी के बाद घर की जिम्मेदारी निभाने में तो आप पिछड़ जाती होंगीं? पूछने पर बेबाक शालिनी सिंह बेहद सधे हुए तरीके से जबाब देती हैं, "दोनो बेटियां (निहारिका और राधिका) समझदार है। निहारिका मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रही है। राधिका ने बारहवीं क्लास का इम्तिहान दिया है। समझदार हैं वे अब खुद को संभालने में सक्षम हैं। अनिल (पति अनिल शुक्ला 1996 बैच अग्मूटी कैडर के आईपीएस, फिलहाल एनआईए में तैनात) खुद आईपीएस हैं। वे बहुत सपोर्टिव हैं। सबसे ज्यादा चिंता मुझे कोरोना काल की ड्यूटी करके घर में घुसते वक्त रहती है 85 साल की बुजुर्ग सास सावित्री हर्ष शुक्ला की। हांलांकि वे अपने सब काम ईश्वर की कृपा से खुद करती हैं। फिर भी घर में मेरे लिए उनकी हिफाजत से बड़ा दूसरा कोई चैलेंज नहीं है। अनिल और निहारिका और राधिका (दोनो बेटियां), उनका इस वक्त मुझसे कहीं ज्यादा ख्याल रखते हैं। मैं चूंकि बाहर से आती हूं, इसलिए उनसे (सास व घर के अन्य सदस्यों से) एहतियातन काफी दूरी बनाकर रखती हूं।"

कोरोना काल की ड्यूटी में बाहर सिपाही और घर में सास का ख्याल रखने की जद्दोजहद में आप खुद की सेहत का ख्याल कैसे रखती है? पूछने पर शालिनी सिंह बोलीं, "ड्यूटी पर तैनात सिपाहियों के साथ ड्यूटी देकर, खड़े रहकर जो संतुष्टि मिलती है, वह कहीं नहीं। भले ही मैं ड्यूटी पर कुछ ज्यादा शारीरिक परिश्रम न करुं। मगर स्टाफ का मनोबल यह देखकर तो बढ़ता ही होगा कि, उनकी ज्वाइंट सीपी भी उनके साथ हर वक्त मौजूद है। वर्दी में ड्यूटी पर तैनात किसी भी जवान को, अपने अफसर से बस शायद यही मोरल सपोर्ट चाहिए भी होता है। बाकी तनखा तो अफसर और सिपाही सबको सरकार देती ही है।"

कोरोना काल ने एक महिला आईपीएस यानि शालिनी सिंह की जिंदगी में और क्या कुछ बदला? पूछने पर उन्होंने कहा, "थाने-थाने चौकी चौकी। गली गली घूमती हूं। जिस नजफगढ़ थाने का इलाका और सका इतिहास सिर्फ और सिर्फ अपराधियों और आपराधिक वारदातों के लिए बदनाम था। आज कोरोना काल में उसी नजफगढ़ थाने में तीन जिलों की सबसे बड़े सामुदायिक रसोई में पुलिस स्टाफ (महिला और पुरुष पुलिसकर्मी) खुद अपने हाथों से सैकड़ों लोगों को रोजाना ताजा खाना बनाकर खिला रहे हैं। मास्क बनाकर पुलिस वाले बांट रहे हैं। अतंर्राष्ट्रीय महिला और पुरुष पहलवान सुशील कुमार, बबीता फोगाट थाने की रसोई देखने पहुंच रहे हैं। अगर कोरोना काल से वास्ता न पड़ा होता तो, क्या मैं कभी यह सब कर देख सीख पाती पुलिस की नौकरी में? रिटायरमेंट और उसके बाद भी कभी यह सब नहीं सीख समझ पाती।"

इस तमाम बातचीत के दौरान शालिनी सिंह, डीसीपी द्वारका एंटो अल्फांसे, पश्चिमी जिला डीसीपी दीपक पुरोहित, बाहरी जिला डीसीपी डॉ. ए कॉन, एडिश्नल डीसीपी सुबोध, समीर शर्मा आदि का जिक्र करना भी नहीं भूलती हैं। उनके मुताबिक, "इस महामारी में मैं अपने तीनों जिलों के इन तमाम अफसरान के सामने कुछ भी ड्यूटी नहीं बजा रही हूं। इन सबसे जब पूछती हूं तो इन सबका जबाब यही होता है कि 'मैडम मैं इलाके में हूं।' जब यह सुनती हूं तो लगता है कि मैं नहीं, यह सब अफसरान और स्टाफ इलाके को चला रहे हैं। सच भी यही है। मैं इसे सहज स्वीकारती हूं।"

--आईएएनएस

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