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कोरोना से लड़ाई में कैसे शहरों को भी मात दे रहे हैं गांव वाले?

कोरोना से लड़ाई में कैसे शहरों को भी मात दे रहे हैं गांव वाले?

IANS
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कोरोना से लड़ाई में कैसे शहरों को भी मात दे रहे हैं गांव वाले?
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नवनीत मिश्र

नई दिल्ली, 11 मई(आईएएनएस)। कभी जागरूकता की कमी के लिए जो गांव वाले कोसे जाते थे आज वही कोरोना की लड़ाई में उदाहरण बन गए हैं। संकट की घड़ी में गांवों में अभूतपूर्व जागरूकता देखने को मिली है। जब शहरों में पुलिस भी लोगों को लॉकडाउन का उल्लंघन करने से नहीं रोक पा रही है तब गांवों में अघोषित कर्फ्यू जैसा नजारा है। न कोई एक दूसरे के घर आ-जा रहा है और न ही किसी तरह के सार्वजनिक समारोहों का चोरी-छिपे आयोजन हो रहा है।

गांव के लोगों ने तो रिश्तेदारों को भी साफ मना कर दिया है कि गांव में नहीं आना है। ग्रामीण विकास मंत्रालय भी उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान आदि राज्यों में सोशल डिस्टैंसिंग के लिहाज से नजीर बने कई गांवों की सफलता की कहानियां इससे पूर्व में जारी कर चुका है।

गांवों के हालात पर नजर रखने वाले जनसंचार विशेषज्ञ डॉ. मनोज मिश्र आईएएनएस से कहते हैं कि संकट की इस घड़ी में गांव पूरी तरह शांत दिख रहे हैं। बढ़ई, नाई का काम ठप है तो 'पंडितजी' भी शादियां नहीं करा पा रहे हैं। इस तरह गांवों में परंपरागत रोजगार के सारे साधन ठप हैं। फिर भी गांव के लोग कराह नहीं रहे हैं। उन्हें किसी से शिकायत नहीं है, बल्कि वह सरकार का हर कदम पर साथ निभा रहे हैं।

वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज मिश्र ने कहा कि गांवों में खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं है। सब्जियों की प्रचुरता है। गांव-गांव सहजन के पेड़ होते हैं। इससे मुफ्त में सब्जियों की व्यवस्था हो रही है। कोरोना काल में देखने में आ रहा है कि लोग सहजन की सब्जी ज्यादा खा रहे हैं। सहजन का फल-फूल और पत्ती तीनों बहुत गुणकारी होते हैं। आपदा से जूझ रहे किसानों के चेहरे पर भी शिकन नहीं है। क्योंकि कोरोना वायरस के कहर से पहले ही गेहूं की फसल खेत से घर पहुंच गईं। जिससे उनकी रोटी की चिंता दूर हो गई।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा कि गांवों में इस बार एक और चीज गौर करने लायक रही। पहले जहां काम के बदले खेतिहर मजदूर कई बार पैसे लेते थे, उन्होंने इस संकट की घड़ी में काम के बदले अनाज लिया। वहीं केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की योगी सरकार ने भी इसी दौरान गरीबों को अनाज की व्यवस्था कर दी। इस प्रकार गांवों में रहने वाले गरीब तबके को भी खाद्यान्न की समस्या नहीं हुई है। यही वजह है कि गांवों से पलायन कर महानगरों में जाने वाला गरीब आज फिर गांव किसी भी कीमत पर लौटना चाहता है। क्योंकि उसे लगता है कि गांव में रहने पर उसे खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं आने वाली है। जिला प्रशासन की भी भूमिका सराहनीय रही है।

दादी-मां के नुस्खे काम आए

कोरोना वायरस से बचाव में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता की अहम भूमिका होती है। गांवों में ताजा सब्जियां, शुद्ध दूध उपलब्ध होता है। आज भी गांवों के लोगों को पिज्जा, बर्गर, चाउमीन, मैगी जैसे फास्ट फूड की लत नहीं लगी है। गांव के लोग पारंपरिक और पौष्टिक खानपान को ज्यादा प्रमुखता देते हैं। डॉ. मनोज मिश्रा के मुताबिक, जब सरकार आयुष मंत्रालय के जरिए देश के लोगों को काढ़ा पीकर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सुझाव दे रही थी, उससे पहले ही गांव के लोग दादी-मां के नुस्खे आजमाते हुए प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाला काढ़ा पीना शुरू कर दिए थे। नीम की पत्तियों से लेकर हल्दी, ताजी गिलोय आदि का काढ़ा इस्तेमाल करना शुरू किया।

15 जून तक शादियां कैंसिल

गांव के लोग सोशल डिस्टैंसिंग को लेकर इतने सजग हैं कि वह किसी तरह की छूट का भी फायदा लेने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। अधिकांश घरों में शादियां टल गई हैं। जबकि दस से 20 लोगों की मौजूदगी में अनुमति लेकर शादियां करने की छूट हैं। जौनपुर सहित अधिकांश जिलों के गांवों में 15 जून तक लोगों ने स्वत: शादियां टाल दी हैं। गांव वालों का मानना है कि वह किसी तरह का खतरा नहीं लेना चाहते।

--आईएएनएस

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