Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Literature Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019"चाह नहीं मैं सुरबाला", एक ऐसा साहित्यकार जिसने MP मुख्यमंत्री का पद ठुकरा दिया

"चाह नहीं मैं सुरबाला", एक ऐसा साहित्यकार जिसने MP मुख्यमंत्री का पद ठुकरा दिया

Makhanlal Chaturvedi को लोग प्यार से माखन दादा बुलाया करते थे.

मोहम्मद साकिब मज़ीद
साहित्य
Published:
<div class="paragraphs"><p>Makhanlal chaturvedi:&nbsp;"चाह नहीं मैं सुरबाला", एक ऐसा साहित्यकार जिसने MP CM का पद ठुकरा दिया</p></div>
i

Makhanlal chaturvedi: "चाह नहीं मैं सुरबाला", एक ऐसा साहित्यकार जिसने MP CM का पद ठुकरा दिया

(फोटो-नमिता चौहान/क्विंट हिंदी)

advertisement

चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूंथा जाऊं,

चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध, प्यारी को ललचाऊं

चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं

चाह नहीं देवों के सिर पर, चढूँ भाग्य पर इठलाऊं

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक

एक फूल क्या चाहता है और उसके साथ क्या किया जाता है...शायद इस बात को माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) से बेहतर कोई नहीं समझा सकता है. आज हम आपको मिलवाएंगे मझोले कद के एक ऐसे निराले कवि, निर्भीक पत्रकार और अद्भुत लेखक से, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में कलम से लड़ाई लड़ी, राजद्रोह मामले में जेल गए और देश आजाद होने के बाद मुख्यमंत्री पद का ऑफर तक ठुकरा दिया.

ओजपूर्ण भावना के साहित्यकार एवं निर्भीक पत्रकार के रूप में पहचाने जाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई में हुआ था. लोग उन्हें प्यार से माखन दादा कहा करते थे.

माखनलाल चतुर्वेदी: ‘एक भारतीय आत्मा’

साहित्य की दुनिया में माखनलाल चतुर्वेदी को ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से याद किया जाता है, जिन्होंने देशप्रेम की अपनी कविताओं के जरिए न केवल अपने दौर में बल्कि बाद की पीढ़ियों में भी देशभक्ति की भावना जगाई. इसके अलावा उन्होंने प्रभा, कर्मवीर और प्रताप जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया.

1905 से माखनलाल दादा अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत कर रहे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए. इसके बाद वो सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में देखे जाने लगे. उनकी मुलाकात तत्कालीन क्रांतिकारियों और पत्रकारिता में ऊंचा नाम रखने वाले माधवराव सप्रे, गणेश शंकर विद्यार्थी और सैयद अली मीर जैसे लोगों से हुई. माखनलाल चतुर्वेदी पर इन लोगों का खास प्रभाव देखा गया और आगे चलकर उन्होंने ‘प्रभा’ पत्रिका का संपादन शुरू किया.

साहित्य के लिए छोड़ी अध्यापकी

माखनलाल चतुर्वेदी एक अध्यापक भी रहे लेकिन जब उनका झुकाव साहित्य की ओर होने लगा तो उनके सामने समस्या खड़ी हो गई. अब उन्हें इनमें से एक को चुनना था. काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने अध्यापन को अलविदा कह दिया और साहित्य को चुना. साहित्य के बारे में माखनलाल चतुर्वेदी कहते हैं कि...

साहित्य का उचित स्थान वह हृदय है, जिसमें पीढ़ियां और युग अपने विश्वास को धरोहर की तरह छिपाकर रख सकें. ऐसे हृदय में ही कला का उदय होता है.

किस प्रकार घड़ियां गिनता हूं

दिन के बरस बनाता हूं

खानपान की ज्ञान-ध्यान की

धूनी यहां रमाता हूं.

तुमको आया जान,

वायु में बाहों को फैलाता हूं

चरण समझते हुए सीखचों

पर मैं शीश झुकाता हूं

सुध-बुध खोने लगे,

कहो क्या पूरी नहीं सुनोगे तान?

होता हूं कुर्बान,

बताओ— किस कीमत पर लोगे जान?

साल 1921 में हो रहे असहयोग आंदोलन में शामिल होने की वजह से सरकार ने उन्हें राजद्रोह का आरोप लगाकर जेल में भी डाला लेकिन माखनलाल चतुर्वेदी जी अपनी कलम चलाते रहे. उन्होंने 'सिपाही' शीर्षक से एक कविता लिखी.

गिनो न मेरी श्वास,

छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?

भूलो ऐ इतिहास,

खरीदे हुए विश्व-ईमान!!

अरि-मुंडों का दान,

रक्त-तर्पण भर का अभिमान,

लड़ने तक महमान,

एक पूंजी है तीर-कमान!

मुझे भूलने में सुख पाती,

जग की काली स्याही,

दासो दूर,

कठिन सौदा है

मैं हूँ एक सिपाही!

माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी पत्रकारिता के जरिए राष्ट्रीय चेतना जागृत की तो वहीं दूसरी ओर कविता, निबंध और कहानियों के जरिए समाज से बात करने की कोशिश की.

उनको एक निर्भीक पत्रकार के रूप में भी याद किया जाता है. साल 1913 में उन्होंने ‘प्रभा’ नाम की पत्रिका का संपादन कार्य शुरू किया था. 1920 में जबलपुर से निकलने वाले साप्ताहिक ‘कर्मवीर’ से जुड़कर संपादक के रूप में काम किया. इसके पहले अंक में ही माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी निर्भीक पत्रकारिता का संदेश दे दिया था.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
हमारी आंखों में भारतीय जीवन गुलामी की जंजीरों से जकड़ा दिखता है. हृदय से पवित्रता पूर्वक हर प्रयत्न करेंगे कि वे जंजीरें फिसल जाएं या टुकड़े-टुकड़े होकर गिरने की कृपा करें. हम जिस तरह डर को खत्म करने के लिए तैयार होंगे, उसी तरह अत्याचारों को भी... हम स्वतंत्रता के हामी और मुक्ति के उपासक हैं.
माखनलाल चतुर्वेदी, कर्मवीर के पहले अंक में
इस पत्रिका में बेधड़क और निर्भीक होकर देशी रियासतों के भ्रष्टाचारी राजा-महाराजाओं का वक्त-वक्त पर भंडाफोड़ होता रहता था.

‘कर्मवीर’ पर रोक

एक वक्त ऐसा भी आया, जब 15 से ज्यादा रियासतों ने ‘कर्मवीर’ को पढ़े जाने पर रोक लगा दी, लेकिन इसके बाद भी माखनलाल जी ने सच्ची पत्रकारिता के रूप को बिगड़ने न दिया. इस पत्र के 25 सितंबर, 1925 के अंक में उन्होंने जो लिखा उससे उनकी पत्रकारिता का अंदाजा लगाया जा सकता है...

उसे नहीं मालूम कि धनिक तब तक जिंदा है, राज्य तब तक कायम है, ये सारी काउंसिले तब तक हैं, जब तक वह अनाज उपजाता है और मालगुजारी देता है. जिस दिन वह इनकार कर दे, उस दिन समस्त संसार में महाप्रलय मच जाएगा.

अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भारतीय किसान तरह-तरह की समस्याओं से ग्रस्त थे. किसानों की समस्या देखकर माखनलाल जी को बुरा लगता था. ‘कर्मवीर’ में किसानों के बारे में लिखते हुए वो कहते हैं कि...

फौज और पुलिस, वजीर और वाइसराय सब कुछ किसान की गाढ़ी कमाई का खेल है. बात इतनी ही है कि किसान इस बात को जानता नहीं, यदि उसे अपने पतन के कारणों का पता हो और उसे अपने ऊंचे उठने के उपायों का ज्ञान हो जाए तो निस्संदेह किसान कर्मपथ में लग सकता है.

माखन दादा ने जब CM पद ठुकराया

1947 में हिंदुस्तान की आजादी के बाद राज्यों के गठन का काम शुरू हो गया था. 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश राज्य अस्तित्व में आया.

क्विंट हिंदी के लिए लिखे एक आर्टिकल में लेखक एम ए समीर कहते हैं कि मध्य प्रदेश के गठन के बाद राज्य की बागडोर संभाले जाने की बात हुई तो किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी. फिर तीन नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सुझाए गए- माखनलाल चतुर्वेदी, रविशंकर शुक्ल और द्वारका प्रसाद मिश्र.

माखनलाल जी को जब यह बताया गया कि उनका नाम सीएम पद के लिए सुझाया गया है तो उन्होंने इस पद को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया. इन्होंने इस पद की अपेक्षा साहित्य-साधना को अधिक तरजीह दी और कहा कि मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते ‘देवगुरु’ के आसन पर बैठा हूं. मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे ‘देवराज’ के पद पर बैठाना चाहते हो, जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है.

माखनलाल चतुर्वेदी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भले नहीं बने लेकिन राज्य में आज भी उनकी यादें गूंजती हैं. साल 1990 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की शुरुआत की गई, जो आज एक मशहूर और लोकप्रिय पत्रकारिता संस्थान है.

  • साल 1943 में माखनलाल चतुर्वेदी को 'देव पुरस्कार' से सम्मानित किया गया, जो उस समय साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार था.

  • 1953 में साहित्य अकादमी की स्थापना के बाद इसका पहला पुरस्कार 1955 में माखनलाल चतुर्वेदी को दिया गया.

  • 1955 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से भी नवाजा और उनके नाम पर डाक-टिकट भी जारी किया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT