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गायित कुछ है, हाल कुछ है,
लेबिल कुछ है, माल कुछ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 18 जुलाई को अपनी स्पीच में विपक्षी एकता पर निशाना साधते हुए अवधी के जाने-माने शायर रफ़ीक़ शादानी (Rafiq Shadani) साहब की कलम से निकला ये मिसरा सुनाया. इसका मतलब ये है कि कुछ लोग कहते कुछ हैं, उनकी स्थित कुछ और है. लेवल यानी उनका स्तर कुछ है माल यानी नतीजा कुछ अलग ही होता है.
इसी कविता की कुछ और मिसरों पर गौर फरमाइए...
जब नगीचे चुनाव आवत है
भात मांगौ पुलाव आवत है.
हम तौ ऊ बीर हैं कि जब
केउ मुंह पै थूकै तौ ताव आवत है.
यानी जब चुनाव नजदीक आता है, तब भात मांगने पर खाने को पुलाव तक दे दिया जाता है लेकिन चुनाव के बाद हालात बदल जाते हैं. कुछ मांगने पर उल्टे हमारे मुंह पर वे ही नेता थूक देते हैं. हम ऐसे वीर हैं, जिनकी बहादुरी चेहरे पर थूक दिए जाने के बाद जगती है. तब हमें ताव आता है.
देख के बोले हज़ारी ओफ़-फोह
एक शिकार एतने शिकारी ओफ़-फोह
मन्दिरों-मस्ज़िद में न जूता बचे
यह क़दर चोरी-चमारी ओफ़-फोह
भाजपा बसपा में साझा भय रहा
भेड़िया बकरी में यारी ओफ़-फोह
हर परेशानी के अड्डा मोर घर
देख के बोले बुखारी ओफ़-फोह
- रफ़ीक़ शादानी
देश का कौनो ख़तरा नाही
छोटे-छोटे चोरन से
देसवा का नुकसान बहुत है
बड़े कमीशनखोरन से
का कहिके चंदा मगिहैं
जनता से छल-पल का करिहैं
जब राम कै मंदिर बनि जाए
अडवानी-सिंघल का करिहैं
- रफ़ीक़ शादानी
आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि इस तरह की शानदार और कालजयी शायरी लिखने वाला शायर बिल्कुल भी पढ़ा लिखा नहीं था. रफ़ीक़ साहब की पैदाइश साल 1934 में म्यांमार के रंगून हुई थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब भगदड़ हुई, तो उनके वालिद अपनी सरज़मीं उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में आकर रहने लगे.
एक इंटरव्यू में शादानी साहब अपनी जिंदगी के बारे में बताते हैं कि
सुभास नेता एक समय मा देस का नारा दिहिन रहा,
‘हमका आपन खून देव तुम, हम तुमका आजादी देब!’
अब कै नेता बड़े प्यार से कहत हैं अपने वोटर से,
हमका आपन वोट देव तुम, खुनवा तौ हम लयिन लेब.
- रफ़ीक़ शादानी
तू जेतना समझत हौ ओतना महान थोड़े है
ख़ान तो लिखत हैं लेकिन पठान थोड़े है
मार-मार के हमसे बयान करवाईस
ईमानदारी से हमरा बयान थोड़े है
देखो आबादी मा तो चीन का पिछाड़ दिहिस
हमरे देस का किसान मरियल थोड़े है
हम ई मानित है मोहब्बत में चोट खाईस है
जितना चिल्लात है ओतना चोटान थोड़े है
ऊ छत पे खेल रही फुलझड़ी पटाखा से
हमरे छप्पर के ओर उनका ध्यान थोड़े है
चुनाव आवा तब देख परे नेताजी
तोहरे वादे का जनता भुलान थोड़े है
"रफ़ीक" मेकप औ' मेंहदी के ई कमाल है सब
तू जेतना समझत हौ ओतनी जवान थोड़े है.
- रफ़ीक़ शादानी
रफ़ीक साहब की शायरी में हिम्मत और रुतबे की महक आती है. उनकी कुछ और शायरी सुनिए...
हमका ई गवारा है बगिया से चला जाई,
उल्लू का मुल कबूतर हमसे न कहा जाई.
नेता का कही देउता अउर पुलिस का फरिस्ता,
गोबर का यारों हेलुवा हमसे न कहा जाई.
यानी...मैं बाग से भले चला जाऊं, लेकिन उल्लू को कबूतर नहीं कहूंगा, नेता को देवता नहीं कहूंगा, पुलिस को फरिश्ता नहीं कहूंगा और गोबर को हलुआ मैं नहीं कह सकता.
इसी लब्बोलुआब से मेल खाती हुई रफ़ीक़ शादानी साहब की एक और कालजयी रचना उन्हीं की आवाज में सुनिए, जिसमें वो देश के रहनुमाओं पर व्यंग करते हुए नजर आते हैं.
धूमिल भै गाँधी कै खादी, पहिनै लागै अवसरवादी
या तो पहिनैं बड़े फसादी, देश का लूटौ बारी-बारी।
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
ई मँहगाई ई बेकारी, नफ़रत कै फ़ैली बीमारी
दुखी रहै जनता बेचारी, बिकी जात बा लोटा-थारी।
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
मनमानी हड़ताल करत हौ, देसवा का कंगाल करत हौ
खुद का मालामाल करत हौ, तोहरेन दम से चोर बज़ारी।
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
तन कै गोरा, मन कै गंदा, मस्जिद मंदिर नाम पै चंदा
सबसे बढ़ियाँ तोहरा धंधा, न तौ नमाज़ी, न तौ पुजारी
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
बरखा मा विद्यालय ढहिगा, वही के नीचे टीचर रहिगा
नहर के खुलतै दुई पुल बहिगा, तोहरेन पूत कै ठेकेदारी।
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
सूखा या सैलाब जौ आवै, तोहरा बेटवा ख़ुसी मनावै
घरवाली आँगन मा गावै, मंगल भवन अमंगल हारी।
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
झंडै झंडा रंग-बिरंगा, नगर-नगर मा कर्फ़्यू दंगा
खुसहाली मा पड़ा अड़ंगा, हम भूखा तू खाव सोहारी
जियौ बहादुर खद्दर धारी!
- रफ़ीक़ शादानी
नई पीढ़ी के जाने-माने लेखक और दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी क्विंट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं कि
भारत के किसानन के दुर्भाग तनिक देखौ
गल्ला का धरै दिल्ली भूषा कै धरी हम
पाखंडी रहैं छांव मां घामे मां जरी हम
जलपान करैं नेता भुगतान करी हम
भारत के किसानन के दुर्भाग तनिक देखौ
गल्ला का धरै दिल्ली भूषा कै धरी हम
- रफ़ीक़ शादानी
हिंदुस्तान के अलग-अलग इलाकों के मुशायरों में सामईन को अपनी हास्य-व्यंग से सराबोर कविताएं सुनाते हुए साल 2010 में 9 फरवरी को बहराइच में हुए रोड एक्सिडेंट में रफ़ीक़ शादानी साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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