Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019महाराष्ट्र में OBC आरक्षण पर सियासत हुई तेज, किसे होगा फायदा किसका नुकसान?

महाराष्ट्र में OBC आरक्षण पर सियासत हुई तेज, किसे होगा फायदा किसका नुकसान?

OBC reservation in Maharashtra : सियासी दलों के लिए बहुत ही पेचीदा हुआ स्थानीय निकाय की 229 सीटों का उप-चुनाव

ऋत्विक भालेकर
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>ओबीसी आरक्षण</p></div>
i

ओबीसी आरक्षण

फोटो : क्विंट हिंदी 

advertisement

महाराष्ट्र में जाति आधारित सियासी खेल शुरू हो गया है. इस बार केंद्र में मराठा आरक्षण या धनगर आरक्षण का मुद्दा नहीं है बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण (OBC reservation) का मसला तूल पकड़ रहा है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि राज्य सरकारें ओबीसी आरक्षण की आड़ लेकर स्थानीय निकाय चुनावों को टाल नहीं सकतीं और उप-चुनाव के लिए कोरोना महामारी के प्रतिबंध लागू नहीं होते. इसीलिए महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण की आंच तेज हो गई है.

इधर राज्य निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद पांच जिलों की जिला पंचायत की 85 सीटों और 144 पंचायत समितियों सहित कुल 229 सीटों के उप-चुनाव का शंखनाद कर दिया है. इन सीटों के लिए 5 अक्टूबर को मतदान होगा और 6 अक्टूबर को मतगणना होगी.

सियासी दलों के लिए कितना पेचीदा है बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव?

महाराष्ट्र में ओबीसी जाति की जनसंख्या कितनी है? पक्के तौर पर इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन माना जाता है कि महाराष्ट्र की जनसंख्या इस वक्त करीब 12.88 करोड़ है और इसमें से लगभग 40 फीसदी आबादी ओबीसी और 32 फीसदी आबादी मराठा समुदाय की है. यही वजह है कि महाराष्ट्र की अंदाजे 5 करोड़ ओबीसी आबादी को नाराज करने का जोखिम कोई दल नहीं उठाना चाहता है.

ओबीसी समुदाय की नाराजगी का खामिया स्थानीय निकाय चुनावों के साथ-साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी उठाना पड़ सकता है. इस खतरे को अच्छी तरह से भांपते हुए सत्तारूढ़ दल शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी हर हाल में ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की बात कर रही है. दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी के नेता भी यही बात कह रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 5 अक्टूबर को स्थानीय निकाय के 299 सीटों पर बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव होने जा रहा है.

सियासी दलों के एक दूसरे पर आरोप

सभी राजनीतिक दल इतने शातिर हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने जब मार्च में ओबीसी समाज के राजनीतिक आरक्षण को रद्द कर दिया, तो एक-दूसरे पर आरोप मढ़ना शुरू कर दिया. जबकि हकीकत यह है कि इस सियासी संकट के लिए कम और ज्यादा पैमाने पर सत्तारूढ़ दल शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ-साथ प्रमुख विपक्ष दल बीजेपी भी जिम्मेदार है.

महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नाना पटोले (प्रदेशाध्यक्ष) और कैबिनेट मंत्री विजय वडेट्‌टीवार जैसे ओबीसी समाज के नेताओं को अपने समाज के नाराज हो जाने का डर सता रहा है. एनसीपी के छगन भुजबल और धनंजय मुंडे जैसे नेताओं की स्थिति भी कुछ कुछ ऐसी ही है. दूसरी ओर विपक्षी खेमे में चंद्रशेखर बावनकुले और पंकजा मुंडे हमलावर तेवर में हैं. हालांकि इस मसले पर पूरी की पूरी बीजेपी ही महाविकास आघाड़ी सरकार को दबोचने की रणनीति पर काम कर रही है. यही वजह है कि ठाकरे सरकार पर ओबीसी समुदाय की पीठ में खंजर घोंपने का आरोप लगाते हुए बीजेपी ने आंदोलन का बिगुल बजा दिया है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किसे होगा क्या फायदा और किसे उठाना पड़ेगा नुकसान ?

महाराष्ट्र में आरक्षण का प्रतिशत 50 फीसदी से अधिक होने का कारण देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण रद्द किया. इसके लिए कौन सा दल जिम्मेदार है, इसके निष्कर्ष तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल है. ये बात इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार के पास इम्पीरिकल डेटा होते हुए वह राज्य सरकार को दे नहीं रही है और ठाकरे सरकार ने केंद्र से मदद न मिलने की सच्चाई से वाकिफ होते हुए समय रहते ओबीसी आरक्षण को बचाने का वो प्रयास नहीं किया जितना ओबीसी समाज राज्य सरकार से उम्मीद करता था.

इस सियासी घटनाक्रम का नुकसान कम और ज्यादा पैमाने पर सत्तादल और विपक्ष दोनों को उठाना पड़ेगा. चूंकि यह स्थानीय निकाय का उप चुनाव है, वो भी सिर्फ 229 सीटों का. लिहाजा इस नुकसान से किसी भी दल को कोई ज्यादा फर्क पड़ेगा ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम है. लेकिन इसका असर 2022 में होने वाले मुंबई BMC सहित 10 महानगरपालिका चुनावों पर पड़ना तय है.

हालांकि सियासी दलों ने नुकसान से बचने के लिए अदालत के आदेश की वजह से जिन सीटों पर ओबीसी आरक्षण खत्म हुआ है वहां ओबीसी समाज का ही प्रत्याशी देने का बीच का रास्ता अभी से खोज निकाला है. लेकिन 29 सितंबर को उम्मीदवारी वापस लेने की आखिरी तारीख को यह साफ हो पाएगा कि इस पर अमल कितने दलों ने और कितनी गंभीरता से किया है. चूंकि स्थानीय निकाय चुनावों में स्थानीय मुद्दे और लोकल जनसंपर्क महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. लिहाजा ओबीसी आरक्षण रद्द होने का असर सियासी दलों पर कितना पड़ा, इसका सही सही आकलन चुनाव परिणाम सामने आने पर 6 अक्टूबर को ही पता चल पाएगा.

सभी दलों ने अपनी जिम्मेदारी झटकी

महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय का आरक्षण खत्म होने के लिए सभी दल जिम्मेदार हैं. कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले ने भले ही सीधे सीधे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार बताने से परहेज किया, लेकिन उन्होंने महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी की भूमिका पर सवाल खड़ा कर उपरोक्ष रूप से महाविकास आघाड़ी का नेतृत्व कर रही शिवसेना को आरक्षण खत्म होने के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया है.

हालांकि मुख्यमंत्री ठाकरे ने ओबीसी जनगणना के लिए अन्य पिछड़ा आयोग का गठन कर अपने बचाव का रास्ता पहले से ही तैयार कर रखा है. लेकिन ओबीसी रिसर्चर और प्रोफेसर हरी नरके इस पूरे गड़बड़ी के लिए देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली पिछली बीजेपी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं. उनका कहना है कि फडणवीस सरकार ने जुलाई 2019 में त्रृटिपूर्ण अध्यादेश जारी किया था. जिसकी वजह से ओबीसी समाज को राजनीतिक आरक्षण से हाथ धोना पड़ा है.

चौंकाने वाली बात ये है कि पांच हजार करोड़ रुपये खर्च कर देश में ओबीसी समाज की जनगणना 2011 में पूरी कराई जा चुकी है. पर महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी सरकार को ओबीसी आरक्षण खत्म होने के लिए जिम्मेदार ठहराने वाली बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ओबीसी जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करना ही नहीं चाहती.

बीजेपी अपने बचाव में इस आरोप पर दलील पेश करती है कि पहले हुई ओबीसी जनगणना में बड़े पैमाने पर गलतियां हैं. कुल मिलाकर ओबीसी समाज के राजनीतिक आरक्षण के मुद्दे पर “हमाम में सभी नंगे” वाली स्थिति है. बीजेपी ने यदि ओबीसी जनगणना को दबाने का काम किया तो ठाकरे सरकार ने भी राज्य में तेजी से ओबीसी की जनगणना कराने की दिशा में कोई ठोस कदम समय रहते नहीं उठाया.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT