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छत्तीसगढ़: 8 साल पहले CRPF की कार्रवाई में मारे गए आदिवासी नहीं थे माओवादी

CRPF Cobra ने एक माओवादी ठिकाने का भंडाफोड़ करने का दावा किया था

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<div class="paragraphs"><p>CRPF की कारवाई में मारे गए थे आठ आदिवासी</p></div>
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CRPF की कारवाई में मारे गए थे आठ आदिवासी

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छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh) के बीजापुर जिले के एडेसमेट्टा में सुरक्षाकर्मियों द्वारा चार नाबालिगों सहित आठ लोगों की हत्या के आठ साल बाद, बुधवार को राज्य मंत्रिमंडल को सौंपी गई एक न्यायिक जांच रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मारे गए लोगों में से कोई भी माओवादी नहीं था, जैसा कि घटना के समय आरोप लगाया गया था.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति, वी के अग्रवाल, की रिपोर्ट में कहा गया की सुरक्षा कर्मियों ने “घबराहट में गोलियां चलाई होंगी”

घटना की पृष्ठभूमि 

एडेसमेटा की घटना साल 2013 में 17 और 18 मई की बीच रात को हुई थी उससे पहले सुकमा जिले के झीरम घाटी में राज्य के शीर्ष कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग माओवादी हमले में मारे गए थे.

जहां एक ओर पुलिस ने एडेसमेटा में माओवादियों की मौजूदगी से इनकार किया था, वहीं कोबरा(CRPF Cobra) ने एक माओवादी ठिकाने का भंडाफोड़ करने का दावा किया था

न्यायिक रिपोर्ट के मुताबिक, 25-30 लोग 'बीज पांडम' जो कि एक आदिवासी त्यौहार है की पूजा करने के लिए एकत्र हुए थे, वहां 1000 सुरक्षा कर्मी आ पंहुचे. रिपोर्ट में कहा गया,

"अगर सुरक्षा बलों को आत्मरक्षा के लिए पर्याप्त गैजेट दिए जाते, अगर उनके पास जमीन से बेहतर खुफिया जानकारी होती और वह सावधान रहते तो घटना को टाला जा सकता था."

जहां एक और सुरक्षाबलों ने उनके ऊपर हमला होने पर जवाबी कार्यवाही करने का दावा किया वहीं दूसरी ओर जांच में कहा गया के सुरक्षाकर्मियों को किसी भी तरह से जान का खतरा नहीं था, बल्कि सुरक्षाकर्मियों ने मार्चिंग ऑपेरशन के मापदंडों का पालन नहीं किया

रिपोर्ट में गोलीबारी की घटना को गलत धारणा और घबराहट की प्रतिक्रिया बताया गया.

रिपोर्ट में यह भी कहा-

इस घटना को रिपोर्ट में तीन बार "गलती" बताते हुए, न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि मारे गए आदिवासी निहत्थे थे और CRPF की ओर से किये गए 44 राउंड की फायरिंग में मारे गए. 44 में से 18 फ़ायर तो कोबरा यूनिट के एक ही कांस्टेबल द्वारा किए गए.

यह मानते हुए कि कोई क्रॉस-फायर नहीं था, रिपोर्ट में कहा गया है कि कोबरा कांस्टेबल देव प्रकाश की मौत आपसी गोलीबारी के कारण हुई, न कि माओवादियों के कारण

रिपोर्ट में कहा गया है कि मौके पर दो "भरमार" राइफलें जब्त की गईं, आदिवासी प्रकाश के सिर में गोली लगने के लिए जिम्मेदार नहीं थे.

आयोग ने पाई सुरक्षाबलों की कई खामियां

आयोग ने सुरक्षा बल के काम में कई खामियां पाईं, दो "भरमार" बंदूकों की जब्ती को 'संदिग्ध' और 'अविश्वसनीय' बताते हुए, रिपोर्ट ने Seizure रिपोर्ट में वस्तुओं का कोई विवरण नहीं होने के लिए अधिकारियों की खिंचाई की। और पूछा कि क्षेत्र से कोई भी सामान फोरेंसिक लैब क्यो नहीं भेजा गया?

रिपोर्ट में कहा गया “ऑपरेशन के पीछे कोई मजबूत खुफिया जानकारी नहीं थी. इकट्ठे हुए लोगों में से किसी के पास हथियार नहीं थे और न ही वे माओवादी संगठन के सदस्य थे, ”

कमीशन ने भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए ड्रोन और मानव रहित गैजेट्स के उपयोग करने की सलाह दी.

मई 2019 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई द्वारा घटना की एक अलग जांच की जा रही है.

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