Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Mundka Fire: अब भी लापता हैं कई लोग, घर वाले जिंदा होने की आस में कर रहे तलाश

Mundka Fire: अब भी लापता हैं कई लोग, घर वाले जिंदा होने की आस में कर रहे तलाश

Mundka Fire बच्चों को लगता है कि मां अस्पताल में हैं- आग के बाद लापता लोगों की तलाश जारी

आश्ना भूटानी
न्यूज
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Mundka Fire: छतों से कूदती औरतें, लाचार दमकल कर्मी, 'देवदूत' पड़ोसी...भयावह मंजर</p></div>
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Mundka Fire: छतों से कूदती औरतें, लाचार दमकल कर्मी, 'देवदूत' पड़ोसी...भयावह मंजर

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“उसके बच्चे अभी भी सोचते हैं कि उनकी मां अस्पताल में भर्ती है. उन्हें लगता है कि वह बेहतर हो जाएगी और घर लौट आएगी.”

ये 35 साल की सोनी कुमारी के भाई ने कहा, जो मुंडका (Mundka Fire) की इमारत में थी, जिसमें शुक्रवार, 13 मई को आग लग गई थी. सोनी उन 29 लोगों में शामिल हैं, जिनके लापता होने की खबर है.

अब तक 27 शव मिल चुके हैं, जिनमें से रविवार 15 मई सुबह तक केवल आठ की ही शिनाख्त हो पाई थी. 27 पुष्ट मौतों में से 21 महिलाएं थीं.

लापता हुए अन्य लोगों के परिवार यह पता लगाने की कोशिश में कि उनके परिजन जीवित हैं या नहीं, और वह दर-दर भटक रहे हैं.

बीते शनिवार 14 मई को जिस इमारत में आग लगी थी, उसके सामने मेट्रो लाइन के नीचे मुख्य सड़क पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी, सड़क पर टूटे शीशे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. अपनों के बारे में और जानकारी लेने के लिए परेशान परिजन दिन भर मौके पर पहुंचते रहे.

जबकि सरकार ने परिवारों को मुआवजे का वादा किया था, जिनके परिजन लापता हैं, उन्होंने कहा कि कोई भी राशि उन्हें तब तक आश्वस्त नहीं कर सकती जब तक कि उनके पास अधिक जानकारी न हो

दिल्ली दमकल सेवा (डीएफएस) के प्रमुख अतुल गर्ग ने द क्विंट को बताया कि यह बताना मुश्किल है कि मरने वालों की वास्तविक संख्या क्या है.

अवशेष इतने जले हुए हैं, हम यह नहीं बता सकते हैं कि यह एक व्यक्ति या दो या तीन का शरीर है. इसलिए, हमने उन्हें डॉक्टरों को सौंप दिया है जो वर्तमान में डीएनए टेस्ट कर रहे हैं. यह संभावना है कि मरने वालों की संख्या 30 तक बढ़ सकती है.
डीएफएस प्रमुख, अतुल गर्ग

"अगर वह बच गई, तो वह कहां है?"

कई श्रमिकों ने कांच तोड़ दिया और आग से बचने के लिए इमारत से कूद गए. इसी तरह, जब सोनी कुमारी ने अपने पति को आग के बारे में बताने के लिए बुलाया, तो उसने कहा कि वह रस्सी के सहारे नीचे चढ़ने की कोशिश कर रही है. लेकिन उसका मोबाइल तब से बंद है, उसके भाई प्रवीण कुमार मिश्रा ने कहा.

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जब उसने अपने पति को फोन किया तो उसने बताया कि गेट पर ताला लगा हुआ है और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है. किसी ने शीशे के शीशे तोड़ दिए तो नीचे से लोगों ने रस्सियों के सहारे नीचे उतरने में उनकी मदद की. लेकिन हम नहीं जानते कि वह कहां है. अगर वह बच गई, तो वह कहां है?"

उन्होंने कहा कि सोनी के दो बच्चे हैं, 8 और 10 साल के जो उनके घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं. सोमवार की सुबह, परिवार ने कहा कि उन्हें अभी भी दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल, संजय गांधी अस्पताल या सफदरजंग अस्पताल में सोनी का कुछ पता नहीं मिला है. इस उम्मीद के साथ कि वह जिन्दा है और अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है, उन्होंने संजय गांधी अस्पताल के अधिकारियों से पूछा कि क्या मरीजों को कहीं और भी रेफर किया गया है.

मजदूरों के पास नहीं थे उनके फोन - परिवार के सदस्यों का दावा

22 वर्षीय मोनिका के परिवार ने बताया कि घटना के वक्त वह उन तक नहीं पहुंच सकी. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके फोन कार्यालय में जमा किए जाते थे और मजदूरों को उनके फोन दोपहर के भोजन पर दिए जाते थे. बचे लोगों ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि वे विचलित न हों और अपने काम पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

इस नियम के बावजूद फोन रखने वाले ही आग लगने पर अपने परिवार को फोन कर पाए.

मोनिका की मौसी कोमल ने कहा कि उसकी भतीजी तीन महीने से वहां काम करती थी और कैमरों की पैकिंग का काम कर रही थी. 22 वर्षीय मोनिका के तीन भाई और एक बहन है.

शनिवार की शाम को इमारत के बाहर इंतजार कर रहे लोगों के लिए चिंताएं चरम पर थीं. उनमें से कुछ ने कहा कि उन्हें अंदर जाना होगा और शवों को खुद ही बाहर निकालना होगा क्योंकि इस प्रक्रिया में बहुत समय लग रहा था.

रविवार सुबह मोनिका के एक रिश्तेदार ने बताया कि वे इमारत के साथ-साथ अस्पतालों का भी चक्कर लगाने जा रहे हैं.

"वह अपने परिवार को चलाने के लिए वहां काम कर रहा था"

दिल्ली के प्रेम नगर में रहने वाले नरेंद्र हर रोज की तरह सुबह नौ बजे काम पर निकल गए और अपनी मां राजरानी को याद किया. "उन्होंने अपने काम के बारे में कभी ज्यादा बात नहीं की, लेकिन मुझे लगा कि उन्हें यह पसंद है," उसने कहा उसे कैमरा कारीगर (शिल्पकार) के रूप में संदर्भित करते हुए, उसने कहा कि वह जीवित रहने के लिए सीसीटीवी कैमरे बनाता था

कुछ साल पहले बीए की डिग्री पूरी करने वाले नरेंद्र ने दो साल पहले कंपनी में काम करना शुरू किया था. परिवार ने दावा किया कि वह 8,500 रुपये प्रति माह कमाता था और कर्मचारी बेहतर वेतन की मांग कर रहे थे.

परिजन शुक्रवार रात से अस्पताल की मोर्चरी के बाहर इंतजार कर रहे थे. उसके चाचा गजराज ने कहा, “मेरी बहन को कुछ शव दिखाए गए थे, लेकिन केवल जले हुए शव थे इसलिए वह उसे पहचान नहीं पाई. उन्होंने पहचान करने के लिए डीएनए टेस्ट किया है.” उसकी मां ने कहा कि आग लगने के दिन उसने कार्यालय में एक बैठक की थी.

कंपनी में काम करने वाली और आग से बची शाजिया परवीन के अनुसार, बैठक पर्यवेक्षकों की एक प्रेरक भाषण थी, जहां श्रमिकों को कुछ बड़ा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था.

शाजिया परवीन ने कहा कि, “सर हमसे पूछ रहे थे कि हम कंपनी को लेने के लिए क्या कर सकते हैं… तभी आग लग गई. अंदर लगभग 300 लोग थे,"

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Published: 16 May 2022,09:15 AM IST

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