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कर्नाटक के सीएम सिद्धरामैया ने शुक्रवार को एक फेसबुक पोस्ट लिखकर कन्नड़ अस्मिता और राज्य के लिए एक अलग झंडे की मांग को पुरजोर तरीके से रखा है. राज्य सरकार ने जुलाई 2017 में एक कमिटी इसलिए बनाई थी जो ये तय कर सके कि क्या राज्य के लिए एक अलग झंडा हो सकता है, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इसकी कड़ी आलोचना हुई. ऐसे में सिद्धारमैया ने कर्नाटक में होने वाले चुनाव से ठीक पहले एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है, जिसमें कर्नाटक अस्मिता और एक अलग झंडे की बात कही गई है.
सिद्धारमैया ने अपने पोस्ट में लिखा है कि पिछले साल जुलाई के महीने में दिल्ली में स्थित टेलीविजन स्टूडियो ने कर्नाटक के अलग झंडे के मांग की आलोचना की थी. एंकर परेशान थे और इसे राष्ट्रीय एकता के खिलाफ खतरा मांग रहे थे. इस साल कमिटी ने रिपोर्ट सौंपी है और राज्य सरकार ने उसे मंजूरी देकर केंद्र सरकार से अलग झंडे की मांग की है. क्या है राष्ट्रीय अस्मिता के खिलाफ खतरा है?
उन्होंने आगे लिखा कि देश के आजाद होने के 70 साल पूरे हो चुके हैं, एक यूनियन स्टे से हम फेडरेशन ऑफ स्टेट की तरफ विकसित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अधिक संघीय स्वायत्तता और क्षेत्रिय पहचान की मांग करना देश के लिए कुछ गलत है.
सिद्धारमैया ने कहा कि कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र केंद्र से जितना पाते हैं उससे ज्यादा का टैक्स केंद्र सरकार को देते हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की तरफ से हमें सेंट्रल टैक्स और स्कीम के तौर पर शेयर का ही हिस्सा मिलता है. क्योंकि पूरे देश को ध्यान में रखकर स्कीम का निर्धारण होता है, सिद्धरामैया ने कहा कि हमें ऐसे सिस्टम की जरूरत है कि हमारे राज्यों को टैक्स का ज्यादा हिस्सा मिले. अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि दक्षिण के राज्य उत्तर भारत के राज्यों का आर्थिक बोझ भी उठाते हैं, इन राज्यों को ज्यादा टैक्स देने के बावजूद भी कम हासिल होता है.
सिद्धरामैया ने अपने पोस्ट में कहा कि यूरोप के कई देशों से कर्नाटक बड़ा है, भारत की समृद्धि के लिए हर राज का विकास जरूरी है. ऐसे में राज्यों को इकनॉमिक पॉलिसी और ढांचागत व्यवस्था के लिए ज्यादा सुविधाओ की जरूरत है. जिससे केंद्र के तमाम लाइसेंस और प्रोगाम से बचे बगैर, राज्य अपने हितों को हासिल कर सकें. उन्होंने कहा कि हमारी कई भाषाएं और संस्कृति भारत की 'पहचान' से भी पुरानी है, तब भी हम भारतीय एक साझा इतिहास, संस्कृति और भाग्य के साझेदार हैं. सिद्धारमैया ने कहा कि अगर मैं एक कन्नड़ नागरिक हूं तो इससे मेरे भारतीय होने की बात कहीं से भी कम नहीं हो जाती. इसलिए कर्नाटक में हम ज्यादातर कन्नड़ भाषा का इस्तेमाल करते हैं, और हिंदी भाषा के थोपे जाने को तर्कों से काटते हैं, साथ ही एक राज्य के झंडे की मांग करते हैं. हम एक मजबूत भारत बनाने की तरफ प्रतिबद्ध हैं.
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Published: 16 Mar 2018,11:16 PM IST