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देश की राजनीति में अगर किसी राज्य की राजनीति सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, तो उसमें सबसे आगे बिहार का नाम आएगा. ऐसे तो बिहार की राजनीति में हर साल नए समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं. लेकिन 2017 के सियासी समीकरणों में आए बदलाव ने न केवल देशभर में सुर्खियां बनी बल्कि बिहार से लेकर देश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी.
गुजरा वर्ष न केवल सियासी समीकरणों के उलटफेर के लिए याद किया जाएगा, बल्कि इस एक साल में लोगों ने कई दिग्गज नेताओं को भी 'अर्श' से 'फर्श' पर आते देखा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस साल भ्रष्टाचार के एक मामले में आरजेडी के नेता और उस समय के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के घिरते ही बेहद नाटकीय घटनाक्रम में न केवल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर बनाए गए महागठबंधन को भी तोड़ दिया.
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महागठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर न केवल एनडीए में शामिल हो गए, बल्कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार भी बना ली. इस नए समीकरण में राज्य की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई.
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में नीतीश ने करीब चार साल पहले ही बीजेपी का 17 सालों का साथ छोड़ दिया था. लेकिन दोनों एक बार फिर से करीब आ गए. वैसे नीतीश का महागठबंधन में रहते केंद्र सरकार के जीएसटी के मुद्दे पर खुलकर समर्थन में आना और एनडीए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देना भी इस साल सुर्खियों में रही.
महागठबंधन के टूटने और बीजेपी के साथ नीतीश कुमार के जाने के बाद जेडीयू में भी विरोध के स्वर मुखर हो गए. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव और राज्यसभा सांसद अली अनवर ने नीतीश के खिलाफ विद्रोह कर दिया. ये दोनों नेता खुलकर नीतीश के विरोध में आ गए.
साल का अंतिम समय बिहार के दिग्गज नेता लालू प्रसाद यादव के लिए भारी पड़ा. चारा घोटाले के एक मामले में उन्हें अदालत की तरफ से दोषी ठहराए जाने के बाद जेल जाना पड़ा. वैसे, अब नए साल में बिहार की राजनीति में कौन समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे अब यह देखने वाली बात होगी.
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