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20 साल बाद फिर वही मंजर सामने हैं. तीन कॉमन कैरेक्टर हैं इस रियल कहानी में डीएमके, कांग्रेस और बीजेपी. इन तीनों की वजह से तब राजनीति बदली थी, ये तीनों 2014 में देश की राजनीति में सबसे बड़े बदलाव की वजह बने थे. लेकिन वजह गायब है वक्त पीछे लौट गया है. पूरी बात बड़ी रोचक है इसे समझिए कुछ इस तरह.
जरा पीछे चलते हैं बीस साल पहले. 1997 में कांग्रेस के समर्थन से इंद्रकुमार गुजराल की यूनाइटेड फ्रंट सरकार किसी तरह चल रही थी. तभी मिलाप चंद जैन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट हलचल मचा देती है. इसमें डीएमके पर तमिल संगठन एलटीटीई की मदद करने का संकेत दिया गया था. वही संगठन जिसने राजीव गांधी की हत्या की जिम्मेदारी ली थी. बस क्या था कांग्रेस ने आव देखा ना ताव गुजराल की सरकार गिरा दी. चुनाव हुए तो बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में एनडीए की सरकार बन गई.
कई सालों बाद जब जैन आयोग की फाइनल रिपोर्ट आई तो उसमें डीएमके करीब करीब दोषमुक्त कर दिया गया. लेकिन उससे क्या कांग्रेस और गुजराल सरकार को राजनीतिक डैमेज तो हो चुका था.
इस बार सरकार गिराने का बहाना जैन आयोग था तो इस बार यानी 2009-10 में सीएजी विनोद राय ने सनसनीखेज खुलासा किया. उन्होंने कहा यूपीए सरकार ने जो 2G स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट किया उससे सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. बीजेपी ने इस मुद्दे में सरकार को घेर लिया नतीजा मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस की इतनी बदनामी हुई कि 2014 में उनकी करारी हार हुई.
इन दोनों मामलों 1997 और फिर 2017 में बहुत समानताएं हैं. दोनों में आधी अधूरी जानकारी पर जमकर हंगामा हुआ सरकारें गिर गईं पर आखिर में सब फुस्स.
कहानी फिल्मी नहीं रियल है हकीकत है आइए आपको बताते हैं...
प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल अपनी संयुक्त मोर्चा सरकार कांग्रेस के समर्थन के सहारे किसी तरह 7 माह खींच चुके थे, तभी मीडिया में जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट ने हलचल मचा दी. कांग्रेस के लिए बड़ी संवेदनशील बात थी क्योंकि जिस सरकार को वो बाहर से समर्थन दे रही थी उस सरकार के एक घटक डीएमके पर राजीव गांधी की हत्या में शामिल एलटीटीई को मदद के छींटे पड़े थे.
कांग्रेस ने उस वक्त के प्रधानमंत्री गुजराल से कहा कि सरकार में शामिल डीएमके मंत्रियों को हटाएं. उन्होंने नहीं हटाया तो कांग्रेस ने यूनाइटेड फ्रंट से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिरा दी.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी ऑयोबॉयोग्राफी के तीसरे हिस्से गठबंधन युग (Coalition Era 1996-2012) में इस घटना का जिक्र किया है. मुखर्जी ने लिखा गुजराल ने कांग्रेस के वरिेष्ठ नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया. सफाई दी कि जैन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट है और इसमें किसी डीएमके नेता का नाम नहीं लिया गया है.
लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी में उस वक्त के अध्यक्ष सीताराम केसरी समर्थन वापस लेने के लिए अड़ गए. मुखर्जी लिखते हैं कि केसरी अक्सर चर्चा में कहते थे मेरे पास वक्त बहुत कम है. बहुत से कांग्रेस नेताओं ने इसका मतलब निकाला कि वो प्रधानमंत्री बनना चाहते थे इसलिए उन्होंने गुजराल सरकार गिराई.
पर इससे केसरी को फायदा नहीं हुआ. लोकसभा भंग हो गई और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में एनडीए सरकार बन गई.
वक्त का पहिया घूमा 2004 में जब कांग्रेस ने सहयोगियों के साथ मिलकर यूपीए सरकार बनाई तो डीएमके भी इस सरकार का हिस्सा थी. जिस डीएमके की वजह से कांग्रेस ने गुजराल सरकार गिराई, बाद में उसी के साथ करीब 10 साल (2004-2013) सरकार चलाई.
जैन आयोग की फाइनल रिपोर्ट आई तो 1997 में दागी करार दी गई डीएमके को करीब करीब पाक-साफ करार दे दिया गया. ना डीएमके को शिकायत थी और ना कांग्रेस को.
फिर चुनाव हुए और कांग्रेस के साथ यूपीए का सूपड़ा साफ हो गया. बीजेपी ने स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट मुद्दे को खूब भुनाया और भारी बहुमत वाली एनडीए की सरकार बनी
एनडीए सरकार 2G के आरोपियों को सजा दिलाने के वादे के साथ सरकार में आई थी. लेकिन इस माह सीबीआई की स्पेशल अदालत ने राजा समेत सभी 18 आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत नहीं हैं, राजनेता, ब्यूरोक्रेट और कॉरपोरेट सब बेदाग हो गए.
दोनों बार सरकार गिरने की वजह बनी डीएमके. दोनों बार कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ा. और दोनों बार सरकार गिरने के बाद बीजेपी की अगुआई में एनडीए को चुनाव में बड़ी जीत मिली. उसकी सरकार बनी.
इन तमाम बातों से लगता है पृथ्वी गोल है. लोगों को समझ ही नहीं आ रहा है कि जैन आयोग की रिपोर्ट में अगर डीएमके पर आरोप नहीं था तो उसकी वजह से सरकार क्यों गिरी. इसी तरह अगर 2G मामले में भ्रष्टाचार इन लोगों ने नहीं किया तो मनमोहन सरकार को इतनी बदनामी क्यों झेलनी पड़ी?
सब उल्टा पुल्टा हो गया ना... सिस्टम बड़ा जटिल है.
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Published: 23 Dec 2017,08:44 AM IST