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खड़गे-केजरीवाल की केमिस्ट्री, समान वोट बैंक.. AAP-कांग्रेस का गठबंधन इन 6 वजहों से बड़ी बात

AAP-Congress का यह देश की सबसे पुरानी और सबसे युवा राष्ट्रीय पार्टी का गठबंधन है

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
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<div class="paragraphs"><p>AAP-Congress seat-sharing arrangement</p></div>
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AAP-Congress seat-sharing arrangement

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिंदी)

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"गांधी परिवार अब आम आदमी पार्टी को वोट देगा."

यह पहली बात थी जो कई AAP समर्थकों ने कांग्रेस के साथ पार्टी की सीट-बंटवारे की डील (AAP-Congress seat-sharing arrangement) की घोषणा होते ही कही.

नई दिल्ली सीट, जहां सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वोटर हैं, वह सीट-बंटवारे की डील के तहत AAP को आवंटित की गई है. ऐसे में, कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन, INDIA ब्लॉक को वोट देने के लिए, गांधी परिवार को लोकसभा चुनाव में AAP उम्मीदवार को वोट देना होगा.

बेशक, यह केवल प्रतीकात्मक पहलू है. इसके अलावा यह गठबंधन कई कारणों से महत्वपूर्ण है.

1. राज्यों के मामले में कांग्रेस का अब तक का सबसे बड़ा गठबंधन

  • दिल्ली: AAP 4, कांग्रेस 3

  • गुजरात: कांग्रेस 24, AAP 2

  • हरियाणा: कांग्रेस 9, AAP 1

  • गोवा: कांग्रेस दोनों सीटों पर चुनाव लड़ेगी

  • चंडीगढ़ (1 सीट): कांग्रेस लड़ेगी चुनाव

यानी कुल मिलाकर 46 सीट. भले ही सीटों के मामले में यह उत्तर प्रदेश में SP-कांग्रेस गठबंधन से छोटा गठबंधन है, लेकिन राज्यों की संख्या के मामले में यह कांग्रेस का सबसे बड़ा गठबंधन है.

अतीत में, कांग्रेस का मुख्य रूप से वाम दलों और एनसीपी के साथ एक से अधिक राज्य में गठबंधन रहा है. लेकिन उन मामलों में भी राज्यों की संख्या कम थी. वर्तमान में कांग्रेस ने चार राज्यों - असम, तमिलनाडु, बिहार और पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था. हालांकि, कांग्रेस तमिलनाडु और बिहार में क्रमशः DMK और RJD की और पश्चिम बंगाल में वामपंथी पार्टियों की जूनियर पार्टनर थी.

2. भारत की सबसे पुरानी और सबसे युवा राष्ट्रीय पार्टियां एक साथ आईं

कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन के साथ देश की सबसे पुरानी और युवा राष्ट्रीय पार्टी भी एक साथ आ गई है. कांग्रेस की स्थापना 140 साल से कुछ कम समय पहले हुई थी, जबकि AAP सिर्फ 12 साल पुरानी है और वह 2022-23 में ही राष्ट्रीय पार्टी बनी है.

इस वजह से, दोनों पार्टियां ठीक उलट कार्यशैली/ वर्कस्टाइल का भी प्रतिनिधित्व करती हैं. जहां कांग्रेस में, कई प्रतिस्पर्धी हितों के कारण निर्णय लेना अक्सर बोझिल हो जाता है, वहीं AAP में पावर केजरीवाल के इर्द-गिर्द केंद्रित है.

3. मंच और जमीन पर दिखेगा कॉर्डिनेशन?

इस बीच देखने लायक एक पहलू इस गठबंधन का ऑप्टिक्स भी होगा. क्या खड़गे, केजरीवाल और गांधी परिवार एक साथ प्रचार करते नजर आएंगे? दिल्ली, गुजरात, गोवा, हरियाणा और चंडीगढ़ में कितनी संयुक्त रैलियां देखने की संभावना है? क्या कार्यकर्ता जमीन पर मिलकर प्रचार करेंगे?

INDIA ब्लॉक की बैठकों और जीएनसीटीडी संशोधन जैसे मुद्दों पर संसद की बहस के दौरान, हमने विपक्ष के संदेश को बढ़ाने में दोनों पक्षों के सोशल मीडिया वॉलंटियर्स के बीच काफी कॉर्डिनेशन देखने को मिला.

यह देखने वाली बात होगी कि क्या नेता और जमीनी कार्यकर्ता भी चुनावी कैंपेन के दौरान इस कॉर्डिनेशन को दोहरा पाते हैं या नहीं.

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4. मोदी युग में बीजेपी के अलावा चंद ही सफल, AAP उनमें से एक

ऐसे समय में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के विजयी रथ के कारण कांग्रेस, SP, BSP और वाम दलों जैसी कई पार्टियों का पतन हुआ है, AAP उन कुछ पार्टियों में से एक है जो इस अवधि में बढ़ी है.

दिल्ली में केंद्रित एक राजनीतिक स्टार्टअप से, AAP अब दो राज्यों - दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ पार्टी है और गुजरात और गोवा में एक राज्य पार्टी है.

कांग्रेस की मदद से अब चंडीगढ़ में इसका अपना मेयर भी है और हरियाणा में नागरिक निकायों में भी इसकी उपस्थिति है.

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन AAP को और मजबूत करता है या मौजूदा पारंपरिक पार्टियों का विकल्प होने के उसके दावों को कमजोर करता है.

5. खड़गे-केजरीवाल की केमिस्ट्री

कांग्रेस-AAP गठबंधन के केंद्र में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके AAP समकक्ष अरविंद केजरीवाल के बीच व्यक्तिगत तालमेल है. मुकुल वासनिक, अरविंदर सिंह लवली, अभिषेक मनु सिंघवी, राघव चड्ढा और संदीप पाठक जैसे नेताओं की भी अहम भूमिका रही.

जब AAP ने शुरू में दिल्ली में अधिक न्यायसंगत डील के बदले में कांग्रेस से हरियाणा, गुजरात और गोवा में जगह मांगी थी, तो कांग्रेस में कई लोगों ने इसे खारिज कर दिया था.

हालांकि, अंततः, कांग्रेस ने दिल्ली में 4:3 समझौते तथा गोवा और चंडीगढ़ में समर्थन के बदले में हरियाणा और गुजरात में AAP को मौका देना स्वीकार कर लिया. चंडीगढ़ में, यह कर्ज उतारने भावना से काम करने का भी मामला है क्योंकि कांग्रेस ने AAP को मेयर पद दिलाने में मदद की.

जब ऐसा लगने लगा कि गठबंधन नहीं हो पाएगा, तो माना जा रहा है कि खड़गे ने कांग्रेस के गलियारों में इसे आगे बढ़ाया. यह याद रखने की जरूरत है कि केजरीवाल INDIA ब्लॉक के उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने खड़गे को पीएम उम्मीदवार घोषित करने का सबसे ज्यादा समर्थन किया था.

6. कुछ समय के सहयोगी, लंबी दौड़ के प्रतिस्पर्धी

पूरी संभावना है कि यह गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है और भविष्य में इसके विस्तार की संभावना नहीं है. वैचारिक रूप से, कांग्रेस और AAP मोटे तौर पर मध्यमार्गी हैं. पहला थोड़ा वामपंथ की ओर तो दूसरा थोड़ा दाहिनी ओर झुका हुआ है. यह भेद अकादमिक है क्योंकि दिल्ली में AAP का आधार भी शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस के पहले के आधार के लगभग समान है - यानी गरीब मतदाताओं, दलितों और अल्पसंख्यकों पर काफी निर्भरता है.

2022 के गुजरात चुनावों में, AAP ने ज्यादातर आदिवासियों और पाटीदारों के भीतर बीजेपी विरोधी वर्गों को भुनाया, जो 2017 में कांग्रेस के साथ थे.

गोवा में भी, AAP बीजेपी विरोधी क्षेत्र में कांग्रेस के साथ प्रतिस्पर्धा करती है और उसने दक्षिण गोवा में भी अपनी पैठ बनाई है, जहां कांग्रेस भी मजबूत है.

हालांकि, पंजाब में इसने 2017 में अकाली दल को अधिक नुकसान पहुंचाया और 2022 में कांग्रेस और अकालियों को समान रूप से नुकसान पहुंचाया.

फिलहाल पंजाब में AAP और कांग्रेस, ऐसी दो प्रमुख पार्टियां हैं, जिन्हें सभी वर्गों-समुदायों से वोट मिल रहे हैं.

यहां मुद्दा यह है कि चूंकि अधिकांश राज्यों में दोनों पार्टियों का आधार समान है, इसलिए AAP को जो भी लाभ होगा वह कांग्रेस की कीमत पर होगा और कांग्रेस का कोई भी कमबैक AAP को नुकसान पहुंचाएगा.

इसके साथ यह भी है कि, कांग्रेस ने अतीत में उन पार्टियों के साथ गठबंधन किया है जिन्होंने राज्य में उसका आधार खा लिया है, जैसे कि डीएमके, RJD, SP और एनसीपी.

जिन राज्यों में बीजेपी प्रभावी हो गई है, वहां कांग्रेस और AAP के बीच भविष्य में सहयोग की गुंजाइश अभी भी हो सकती है. भगवा पार्टी को हराने का मौका पाने के लिए सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को एकजुट करने की जरूरत है. गुजरात और गोवा इसके अच्छे उदाहरण हैं.

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