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मध्य प्रदेश में बीते दिनों बीजेपी बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (UCC) की जोरदार वकालत की. इसके बाद से ये चर्चा तेज हो गयी है लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कि भगवा पार्टी जल्द ही कानून को अमलीजामा पहनाने की तैयारी कर रही है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, केंद्र सरकार आगामी मानसून सत्र में यूसीसी का बिल संसद में पेश कर सकती है.
पीएम मोदी के यूसीसी को लेकर चर्चा किये जाने के बाद से तमाम राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रिया भी सामने आ रही है.
कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि समान नागरिक संहिता के लिए सरकार का दबाव ध्रुवीकरण का मुद्दा हो सकता है, और ऐसा लगता है कि पहले से ही विपक्षी दलों का ध्रुवीकरण हो चुका है, कुछ ने खुले तौर पर इस कदम का समर्थन किया है, हालांकि चेतावनियों के साथ, और अन्य ने इसका कड़ा विरोध किया है.
विपक्षी समूह के एक घटक, आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लिए सरकार के प्रयास का समर्थन किया है. दूसरी ओर, शिवसेना (यूबीटी) इसका अच्छा परिणाम देखना चाहती है. फिर भी, कुछ विपक्षी नेताओं को भरोसा है कि यूसीसी पर व्यक्तिगत दलों की स्थिति 23 जून को उनकी पटना बैठक में हासिल की गई एकता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी.
कांग्रेस और टीएमसी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि वे सभी 15 घटक दलों से विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर समान रुख अपनाने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. लेकिन पटना बैठक की तरह, जुलाई में बेंगलुरु में होने वाली विपक्ष की बैठक संघवाद, नौकरियों, आर्थिक संकट और विपक्ष शासित राज्यों में केंद्र के कथित हस्तक्षेप जैसे सामान्य मुद्दों पर केंद्रित रहेगी.
TMC के राज्यसभा नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा, "सभी 15 पार्टियां एक-दूसरे की फोटोकॉपी नहीं हैं."
कांग्रेस के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने बताया कि पटना बैठक में 15 में से 14 विपक्षी दल इस बात पर सहमत हुए कि एक साझा एजेंडे पर एकता होगी और विपक्षी दल भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ेंगे.
रणनीतिकार ने आगे कहा, “पटना बैठक में ही, हमने दिखाया कि हम व्यक्तिगत पार्टियों के मुद्दों को कैसे दूर कर सकते हैं. अरविंद केजरीवाल का ध्यान दिल्ली के अध्यादेश पर था और वे कांग्रेस का आश्वासन चाहते थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला दोनों ने हस्तक्षेप किया."
उन्होंने कहा, "अब्दुल्ला ने केजरीवाल से कहा था कि चर्चा के लिए "बड़े मुद्दे" हैं."
ओ'ब्रायन ने दावा किया कि यूसीसी बीजेपी का ध्यान भटकाने की कोशिश है.
टीएमसी सांसद ने कहा, "जब आप नौकरियां दे नहीं सकते. जब आप महंगाई को नियंत्रित नहीं कर सकते. जब आप सामाजिक ताने-बाने को तोड़ते हैं. जब आप अपना हर वादा निभाने में असफल हो जाते हैं. अपनी हताशा में आप बस इतना कर सकते हैं कि 2024 से पहले अपनी गहरी विभाजनकारी राजनीति की आग को भड़का दें."
एक अन्य वरिष्ठ विपक्षी नेता ने कहा कि बेंगलुरु शिखर सम्मेलन में, यूसीसी का मुद्दा अलग-अलग नेताओं द्वारा उठाया जा सकता है, लेकिन बैठक 2024 के चुनाव की रणनीति पर केंद्रित रहेगा.
कांग्रेस नेता ने कहा, "मुख्य एजेंडा चुनावी रणनीति पर चर्चा करना, अधिकतम सीटों पर सभी दलों द्वारा समर्थित आम उम्मीदवारों को मैदान में उतारना और विरोध प्रदर्शन और आगामी मानसून सत्र के लिए एक आम एजेंडा है."
AAP ने UCC का समर्थन किया और कहा, “सैद्धांतिक रूप से, हम समान नागरिक संहिता (UCC) का समर्थन करते हैं क्योंकि अनुच्छेद 44 भी कहता है कि देश में UCC होना चाहिए. हालांकि, इसे सभी के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लागू किया जाना चाहिए. हमारा मानना है कि सभी धर्मों, राजनीतिक दलों और संगठनों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए और आम सहमति बनाई जानी चाहिए."
शिवसेना (यूबीटी) पार्टी के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने बुधवार (28 जून) को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (MPLB) के सदस्यों से कहा कि उनकी पार्टी यूसीसी का समर्थन करती है, लेकिन विभिन्न समुदायों पर कानून के संभावित प्रभाव पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण की आवश्यकता है.
एनसी नेता फारूक अब्दुल्ला ने यूसीसी को लेकर सरकार की आलोचना की है. उन्होंने कहा, "हमारा देश विविधतापूर्ण है और इसलिए उन्हें यूसीसी के कार्यान्वयन पर पुनर्विचार करना चाहिए. यहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं. मुसलमानों का अपना शरीयत कानून है और अगर वे (केंद्र सरकार) यूसीसी लागू करते हैं, तो प्रतिक्रिया या संभावित तूफान हो सकता है."
हालांकि, विपक्ष में भले ही अलग-अलग राय सामने आ रही है लेकिन बीजेपी UCC को लेकर काफी उत्साहित नजर आ रही है.
यूसीसी का कार्यान्वयन अब बीजेपी की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है. अगर यह आम चुनाव से पहले अमल में नहीं आता है तो भी यह मुद्दा पार्टी को अपनी हिंदू साख को मजबूत करने में मदद करेगा.
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा:
योगी आदित्यनाथ सरकार के एक मंत्री का कहना है कि "सबसे पहले, मुस्लिम महिलाएं हमारा समर्थन करती हैं क्योंकि वो जानती हैं कि यूसीसी उनके भविष्य की रक्षा करेगा. उन्हें मोदी नेतृत्व पर भरोसा है, जिसने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया और मुस्लिम महिलाओं को सुरक्षा की भावना दी. इसलिए, यूसीसी का मुस्लिम प्रतिरोध मौलवियों तक ही सीमित रहेगा."
यूसीसी पर बीजेपी खेमे के उत्साहित रहने का एक अन्य कारण भी है. जो है सिख, पारसी और जैन जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से यूसीसी का कोई विरोध नहीं हुआ है. यूसीसी के लागू होने से मुस्लिम समाज में केवल पुरुष वर्चस्व को खतरा है क्योंकि पुरुष नहीं चाहते कि महिलाओं को समान अधिकार मिले.
पहली बार अदालतों ने सुप्रीम कोर्ट में शाहबानो मामले के दौरान यूसीसी के बारे में बात की थी. शाह बानो बेगम मामले (1985) के दौरान, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय एकता के हित में "समान नागरिक संहिता" बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.
अदालत ने कहा था, "अब समय आ गया है कि अनुच्छेद 44 के तहत विवाह और तलाक के लिए एक समान संहिता प्रदान करने के लिए विधायिका को हस्तक्षेप करना चाहिए."
(इनपुट- हिंदुस्तान टाइम्स/ आईएएनएस)
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