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AIADMK-BJP में टूट से तमिलनाडु में पारंपरिक DMK विरोधी वोटर्स किस तरफ जाएंगे?

दोस्त से दुश्मन बनीं AIADMK और BJP के बीच तमिलनाडु की 15 संसदीय सीटों पर सीधी टक्कर होगी.

वर्षा श्रीराम
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>AIADMK-BJP में टूट से तमिलनाडु में पारंपरिक DMK विरोधी वोटर्स किस तरफ जाएंगे?</p></div>
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AIADMK-BJP में टूट से तमिलनाडु में पारंपरिक DMK विरोधी वोटर्स किस तरफ जाएंगे?

(फोटो: नमिता चौहान/ क्विंट हिंदी)

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Tamil Nadu Lok Sabha Election: कोयंबटूर के रहनेवाले ड्राइवर, 55 साल के गुणशेखरन ने लगभग 37 साल से अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) का समर्थन किया है. हालांकि, तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्रियों एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता के प्रशंसक गुणशेखरन कहते हैं कि पिछले 1.5 वर्षों में वह पार्टी की कार्यप्रणाली से नाराज हैं.

"अगर आप पिछले चार सालों में देखें तो जयललिता की मौत के बाद पार्टी में कई समस्याएं आईं हैं. पलानीस्वामी और ओपीएस (ओ पनीरसेल्वम) के बीच भी आंतरिक मतभेद थे. मौजूदा एआईएडीएमके नेतृत्व को पहचान के संकट का सामना करना पड़ रहा है. एक मतदाता के रूप में, मैं ऐसी पार्टी का समर्थन करके बहुत खुश नहीं हूं, जो भ्रमित है और अपनी पहचान खो चुकी है."
AIADMK के पूर्व समर्थक गुणशेखरन ने क्विंट हिंदी से कहा

2018 में, यह (AIADMK) ही थी, जिसने जे. जयललिता की मृत्यु के बाद उथल-पुथल भरे दौर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन किया था, जब बीजेपी ने आंतरिक संघर्षों का सामना कर रही AIADMK को समर्थन देने का वादा किया था.

2019 लोकसभा चुनाव और 2021 विधानसभा के दोनों चुनाव एक साथ लड़ने और दोनों हारने के बाद, यह वही AIADMK थी, जिसने सितंबर 2023 में गठबंधन से बाहर निकलने का फैसला किया और तमिलनाडु में बीजेपी के साथ पांच साल की लंबे गठबंधन को समाप्त कर दिया.

अब, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले तमिलनाडु के तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल में दोस्त से दुश्मन बने दोनों 15 से अधिक संसदीय सीटों पर सीधे मुकाबले में हैं.

गुणशेखरन जैसे मतदाताओं के लिए, जिन्होंने 2019 से AIADMK-BJP गठबंधन का समर्थन किया है, अब उनके लिए भ्रम है.

गुणशेखरन ने कहा यह AIADMK का बेहद खराब फैसला है और इससे निश्चित रूप से उन्हें नुकसान होगा. उन्हें बीजेपी के साथ रहना चाहिए था क्योंकि उनके पास उचित नेतृत्व नहीं है. एक मतदाता के रूप में, मैं अपनी उम्मीद बीजेपी पर रखूंगा."

AIADMK के मतदाता किस ओर जाएंगे?

AIADMK के इस कदम से तमिलनाडु की राजनीति पर काफी प्रभाव पड़ने की संभावना है.

गठबंधन का अंत पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. पिछले कुछ समय से गठबंधन के भीतर परेशानी चल रही थी, कई मुद्दों पर नेतृत्व में लगातार मतभेद थे. इसका सबसे बड़ा कारण पिछले साल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीएन अन्नादुरई की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता पर एक कथित टिप्पणी थी.

फरवरी 2024 में AIADMK नेता एडप्पादी के पलानीस्वामी ने कहा,"हमने यह कई बार कहा है. मैं स्पष्ट कर रहा हूं. हम किसी भी समय बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. ये सिर्फ मेरी इच्छा नहीं है. यह पार्टी कार्यकर्ताओं की इच्छा है."

तमिलनाडु स्थित पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मालन नारायणन ने क्विंट हिंदी को बताया कि दो प्रकार के पारंपरिक AIADMK मतदाता हैं - एक, जिन्होंने जयललिता के लिए पार्टी को वोट दिया. दो, वे जो DMK विरोधी हैं.

तमिलनाडु में, केवल दो मोर्चे (AIADMK और DMK) रहे हैं. इसलिए DMK विरोधी मतदाताओं के लिए AIADMK को वोट देना आसान था, क्योंकि उनके लिए कोई अन्य विकल्प नहीं था. तीसरा विकल्प उपलब्ध होने से, सभी DMK विरोधी वोट सामूहिक रूप से AIADMK को नहीं मिलेंगे. तो उस हिसाब से AIADMK को नुकसान होगा. इसी तरह सभी DMK विरोधी वोट AIADMK को नहीं जाएंगे.
मालन नारायणन, राजनीतिक विश्लेषक

45 वर्षीय रंगनाथन, जाति से ब्राह्मण और कोयंबटूर में एक निजी रियल-एस्टेट कंपनी में कर्मचारी हैं. उन्होंने क्विंट हिंदी को बताया कि उन्होंने ऐतिहासिक रूप से AIADMK का समर्थन किया है, उसकी विचारधारा या नेताओं के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि वह "DMK विरोधी" हैं.

मेरा मानना है कि DMK हिंदू विरोधी और ब्राह्मण विरोधी है. इसलिए, मेरा वोट हमेशा AIADMK के लिए था क्योंकि कोई विकल्प नहीं था. जब AIADMK-BJP गठबंधन हुआ, तो एक मतदाता के रूप में मुझे अधिक सहज महसूस हुआ, क्योंकि मैं जानता था कि दोनों पार्टियों में DMK से लड़ने की क्षमता है. लेकिन अब, मैं स्पष्ट रूप से AIADMK जैसी पार्टी के बजाय BJP जैसी राष्ट्रीय पार्टी को पसंद करता हूं, जिसके पास एक पीएम चेहरा है.
रंगनाथन

हालांकि, सभी मतदाताओं को गुनाशेखरन और रंगनाथन की तरह ऐसा नहीं लगता है.

चेन्नई के एक AIADMK समर्थक ने नाम न छापने की शर्त पर क्विंट हिंदी को बताया, "भले ही मैं AIADMK के प्रदर्शन से नाखुश हूं, फिर भी मैं पार्टी को वोट देना जारी रखूंगा. मैं DMK विरोधी मतदाता हूं. मैं नहीं चाहता कि BJP अपनी नफरत की राजनीति के कारण दक्षिण भारत में प्रवेश करे, इसलिए AIADMK मेरी एकमात्र विकल्प है."

गठबंधन नहीं करने का 2024 के चुनावों पर क्या असर पड़ेगा?

गठबंधन टूटने के तुरंत बाद, दोनों दलों ने 2024 के चुनावों के लिए गठबंधन सहयोगियों को खोजने में जुट गए हैं.

जबकि BJP पट्टाली मक्कल काची (PMK) और टीटीवी दिनाकरन और ओ पनीरसेल्वम जैसे AIADMK विद्रोहियों के साथ गठबंधन बनाने में कामयाब रही, जिससे राज्य के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में पार्टी को मदद मिल सकती है, उसे पश्चिमी तमिलनाडु में पैठ बनाने की उम्मीद है. ऐसा इसलिए क्योंकि अन्नामलाई स्वयं इसी क्षेत्र से हैं.

इस बीच, AIADMK पश्चिमी क्षेत्र को बरकरार रखना चाहती है, जो मुख्य रूप से उसका गढ़ रहा है।

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2021 के विधानसभा चुनाव में AIADMK गठबंधन को 75 सीटें हासिल हुईं. इसमें से 40 सीटें अकेले पश्चिमी क्षेत्र की थीं. 2021 में बीजेपी ने जो चार सीटें जीतीं, उनमें से दो (कोयंबटूर और मोदाक्कुरिची) सीटें पश्चिमी क्षेत्र से थीं.

इस बार बीजेपी और AIADMK के बीच चेन्नई उत्तर, चेन्नई दक्षिण, वेल्लोर, तिरुवन्नामलाई, नामक्कल, नीलगिरी (एससी), पोलाची, कोयंबटूर और पेरम्बलुर, तेनकासी (एससी), चिदंबरम (एससी), नागापट्टिनम, तंजावुर , शिवगंगा, मदुरै, तेनकासी, तिरुनेलवेली, तिरुप्पुर, तिरुवल्लूर, करूर और पांडिचेरी में सीधी टक्कर होगी.

वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी) में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और विश्लेषक डॉ अरुण कुमार जी ने कहा, "AIADMK और BJP दोनों ने गौंडर समुदायों के भीतर अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है, इस जनसांख्यिकीय/क्षेत्र के व्यक्तियों को पार्टी और सरकार दोनों में प्रमुख पद सौंपे हैं."

अरुण कुमार के अनुसार, पारंपरिक मतदाता किस ओर झुकेंगे, यह तय करने में जाति प्रमुख भूमिका निभाती है.

मोदी के आने से पहले, उच्च जाति के मतदाता, जो तमिलनाडु में आबादी का 2-3% हैं, जयललिता को वोट देते थे. यहां तक ​​कि जब वे बीजेपी को पसंद करते थे, तब भी उन्होंने AIADMK को चुना, क्योंकि उन्हें लगा कि पूर्व की जीत की संभावना कम थी, इसलिए वे इसे सुरक्षित रखना चाहते थे. लेकिन अब, गौंडार समुदाय जैसे उच्च जाति और पिछड़ी जाति के मतदाता बीजेपी की ओर आकर्षित हो गए हैं.
डॉ अरुण कुमार जी, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी

राजनीतिक विश्लेषक और मद्रास विश्वविद्यालय के राजनीति और लोक प्रशासन विभाग के पूर्व प्रमुख रामू मणिवन्नन ने क्विंट हिंदी को बताया:

"तमिलनाडु के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में AIADMK का पारंपरिक वोट बैंक निश्चित रूप से नहीं बदलेगा. लेकिन दक्षिणी जिलों में जाति संप्रदाय के कारण एक निश्चित बदलाव आएगा. AIADMK को इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि मुक्कुलाथोर जाति के वोट, और टीटीवी दिनाकरण, शशिकला और ओपीएस के पक्ष में वोट इस बार उनके पास नहीं जाएंगे."

टूट से किसे अधिक नुकसान होगा?

एआईएडीएमके और बीजेपी दोनों का मानना था कि गठबंधन के टूटने से उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

2016 में, बीजेपी ने कोयंबटूर दक्षिण में अकेले चुनाव लड़ा और 22% वोट-शेयर प्राप्त किया. 2019 में, एआईएडीएमके के साथ गठबंधन के बावजूद, हम बुरी तरह हार गए. इसलिए, इससे वास्तव में कोई फर्क नहीं पड़ता. लोग जानते हैं कि बीजेपी और मोदीजी पिछले 10 वर्षों में उनके लिए क्या काम कर रहे हैं. यही मायने रखता है
कोयंबटूर विधायक और बीजेपी महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष वनाथी श्रीनिवासन

एआईएडीएमके के एक नेता ने पूछा, "बीजेपी का वोट शेयर 3% से भी कम है. उन्होंने 2021 में केवल हमारी वजह से चार सीटें जीतीं, तो वे हमारे वोट कैसे विभाजित कर सकते हैं?."

इस बीच, जब पूछा गया कि क्या एआईएडीएमके-बीजेपी के बंटवारे से डीएमके को फायदा होगा, तो डीएमके सांसद कनिमोझी ने क्विंट हिंदी से कहा:

"अगर बीजेपी ने तमिलनाडु में सीटें जीती तो इसका कारण एआईएडीएमके के साथ गठबंधन था. यह उनकी अपनी योग्यता पर नहीं है. मुझे नहीं लगता कि कोई बदलाव होगा क्योंकि एआईएडीएमके और बीजेपी अलग हो गए हैं."

राजनीतिक विश्लेषकों ने क्विंट हिंदी को बताया कि यह बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है कि वोटों में भारी विभाजन होगा.

उनका मानना था कि भले ही एआईएडीएमके और बीजेपी के अलग होने के परिणामस्वरूप डीएमके विरोधी वोटों का विभाजन होता है, लेकिन अगर एआईएडीएमके अपने पारंपरिक वोट बैंक को फिर से हासिल कर लेती है तो उसे लंबे समय में अपने लिए फायदा नजर आएगा.

अरुण कुमार के अनुसार, एआईएडीएमके अपने मूल वोट बैंक पर निर्भर है, जो लगभग 30 प्रतिशत है, और डीएमके सरकार के खिलाफ "सत्ता-विरोधी लहर" है जो उसके प्रदर्शन में सहायता करेगी

एक पारंपरिक एआईएडीएमके मतदाता निश्चित रूप से उसके खिलाफ नहीं जाएगा. भले ही ईपीएस दो पत्तियों वाले चुनाव चिह्न (AIADMK सिंबल) के खिलाफ चुनाव लड़े, मतदाता AIADMK के खिलाफ नहीं जाएंगे. AIADMK कार्यकर्ताओं/नेताओं के बीच समझौता है, लेकिन मतदाताओं के बीच नहीं. नेता बीजेपी में जा सकते हैं, लेकिन मूल और पारंपरिक मतदाता ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि वे AIADMK के विचारों में दृढ़ता से विश्वास करते हैं. उनका यह भी मानना है कि डीएमके के लिए खतरा पैदा करने वाली AIADMK ही एकमात्र पार्टी है.
डॉ अरुण कुमार जी, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी

उन्होंने आगे कहा, "बीजेपी को केवल उन क्षेत्रों में वोट विभाजन का फायदा होगा, जहां AIADMK के कमजोर उम्मीदवार हैं, जैसे कोयंबटूर, चेन्नई दक्षिण, चेन्नई उत्तर और चेन्नई मध्य. लेकिन इसके अलावा मुझे कोई बड़ा बदलाव नजर नहीं आता."

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