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एनसीपी नेता अजित पवार का रातोंरात बगावत कर बीजेपी से हाथ मिलाने का फैसला उनके चाचा शरद पवार की 41 साल पहले की कहानी को याद दिलाता है, जब वह कांग्रेस के दो धड़ों की सरकार गिराकर राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे.
पवार ने 1978 में जनता पार्टी और पीजेंट वर्कर्स पार्टी की गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था, जो दो साल से भी कम समय तक चली थी. संयोग से इस बार भी वह राज्य में कांग्रेस और शिवसेना से हाथ मिलाकर इसी तरह का गठबंधन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. अजित ने 23 नवंबर की सुबह उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जिस पर पवार ने कहा कि बीजेपी को समर्थन देने के फैसले का उन्होंने समर्थन नहीं किया है और यह उनके भतीजे की व्यक्तिगत फैसला है.
पवार ने अपनी किताब ‘ऑन माई टर्म्स’ में लिखा है कि 1977 में इमर्जेंसी के बाद के चुनावों में राज्य और देश में इंदिरा विरोधी लहर से कई लोग स्तब्ध थे. पवार के गृह क्षेत्र बारामती से वी एन गाडगिल कांग्रेस की टिकट से हार गए.
एक महीने बाद राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस (एस) ने 69 सीट, कांग्रेस (आई) ने 65 सीट पर जीत दर्ज की. जनता पार्टी ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी और इस तरह किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ.
कांग्रेस के दोनों धड़ों ने मिलकर कांग्रेस (एस) के वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व में सरकार का गठन किया, जिसमें कांग्रेस (आई) के नासिकराव तिरपुदे उपमुख्यमंत्री बने. बहरहाल, कांग्रेस के दोनों धड़ों के बीच टकराव जारी रहा जिससे सरकार चलाना मुश्किल हो गया था.
पवार ने सरकार छोड़ने का फैसला किया. जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर के साथ उनके संबंधों की वजह से उन्हें काफी सहयोग मिला. चंद्रशेखर ने पवार से कहा, ‘‘इसमें आपको अहम भूमिका निभानी होगी.’’ इसके मुताबिक पवार ने विधायकों का समर्थन जुटाना शुरू कर दिया. बाद में सुशील कुमार शिंदे, दत्ता मेघे और सुंदरराव सोलंकी ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया. उल्लेखनीय है कि शिंदे आगे चल कर राज्य के मुख्यमंत्री और फिर केंद्रीय गृह मंत्री बने.
पवार लिखते हैं, ‘‘सदन में जब पूरक मांगों पर चर्चा चल रही थी, सरकार अल्पमत में आ गई थी जिसके बाद मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल ने अपना इस्तीफा सौंप दिया.’’
बहरहाल, 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में लौटते ही (पवार नीत) सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. राजनीतिक विश्लेषक सुहास पालसीकर ने एक मराठी पत्रिका में पवार पर लिखे परिचय ‘पवार के नाम पर एक अध्याय’ में लिखा कि पवार ने एक दशक से ज्यादा समय तक पार्टी का नेतृत्व किया और राजीव गांधी के नेतृत्व के तहत अपनी मूल पार्टी में लौट आए. पालसीकर ने लिखा, ‘‘चूंकि उन्होंने अपनी पार्टी गठित करने का फैसला किया और इसे एक दशक तक चलाया जिससे उन्हें प्रभावशाली नेता की छवि हासिल करने में मदद मिली.’’
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Published: 24 Nov 2019,07:51 AM IST