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अखिलेश को जब SP से निकाला था-शिवपाल से अपर्णा तक मुलायम परिवार में टूट की कहानी

मुलायम परिवार में कहां से शुरू हुई थी फूट और कैसे अखिलेश का हुआ टोटल कंट्रोल

विकास कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>अखिलेश यादव  चाचा शिवपाल के साथ</p></div>
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अखिलेश यादव चाचा शिवपाल के साथ

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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अपर्णा यादव बीजेपी में शामिल हुईं तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, अखिलेश यादव अपना परिवार नहीं संभाल पाए. ये वह मैसेज था, जिससे बचने के लिए अखिलेश ने चाचा शिवपाल की घर वापसी कराई, लेकिन अपर्णा ने वो मौका दे दिया. लेकिन क्या ऐसा पहली बार हुआ? साल 2017 के चुनाव से पहले भी ऐसा ही माहौल था. ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि मुलायम के परिवार में टूट और सत्ता के हस्तांतरण की पूरी कहानी क्या है?

पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक में मुलायम का परिवार

इटावा के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव के परिवार में 18 साल से ऊपर का लगभग हर व्यक्ति पंचायत से लेकर पार्लियामेंट में कहीं न कहीं है. पहली पीढ़ी मुलायम सिंह की है, जिसमें दो बड़े नाम छोटे भाई शिवपाल और चचेरे भाई रामगोपाल का है. मुलायम मैनपुरी से सांसद हैं. शिवपाल यादव जसवंतनगर से विधायक और रामगोपाल राज्यसभा सांसद. मुलायम सिंह की पहली पत्नी मालती देवी की मृत्यु होने पर उन्होंने 2003 में साधना गुप्ता को दूसरी पत्नी का दर्जा दिया.

  1. मालती देवी के बेटे अखिलेश यादव हैं. साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक हैं. वे राजनीति से तो दूर रहते हैं, लेकिन पत्नी अपर्णा यादव एक्टिव हैं. एसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई हैं.

  2. मुलायम के भाई रतन सिंह. इनके बेटे रणवीर सिंह सैफई में ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं. साल 2002 में मृत्यु हो गई. बहू मृदुला सैफई में ब्लॉक प्रमुख हैं. पोता तेज प्रताप पूर्व सांसद हैं.

  3. मुलायम सिंह के भाई अभय राम. राजनीति से दूर रहते हैं. बेटे धर्मेंद्र पूर्व सांसद हैं. बेटी संध्या मैनपुरी में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष. बेटा अनुराग साल 2017 में सरोजनी नगर सीट से एसपी उम्मीदवार था.

  4. शिवपाल यादव की पत्नी का नाम सरला यादव है. उनके बेटे आदित्य यादव है, जो जिला सहकारी बैंक में अध्यक्ष हैं.

  5. मुलायम सिंह के भाई राजपाल यादव हैं. पत्नी प्रेमलता यादव पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं. बेटे अंशुल यादव इटावा जिला पंचायत अध्यक्ष हैं

  6. मुलायम सिंह के चचेरे भाई रामगोपाल यादव हैं. इनका बेटा अक्षय यादव पूर्व सांसद है. भांजा अरविंद सिंह यादव एसपी एमएलसी है.

मुलायम परिवार में टूट की शुरुआत

जब अखिलेश 2012 में सीएम बने, तभी से परिवार दो गुट में बंट गया. एक अखिलेश-रामगोपाल. दूसरा शिवपाल-अमर सिंह. कई बार विवाद की खबरें आईं, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले विवाद सड़कों पर दिखा. पार्टी कार्यकर्ता अपने गुट के नेता के लिए प्रदर्शन करते दिखे.

शुरुआत दिसंबर 2015 से हुई. अखिलेश यादव की टीम के तीन मुख्य सदस्यों को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया. आरोप लगा आनंद भदौरिया, सुनील यादव साजन और सुबोध यादव पार्टी विरोध गतिविधियों में शामिल थे. हालांकि फैसले के पीछे शिवपाल सिंह थे. अखिलेश को ये बात इतनी बुरी लगी कि वे सैफई महोत्सव में भी नहीं गए. हालांकि कुछ दिनों के बाद मुलायम सिंह यादव को बेटे के आगे झुकना पड़ा और सुनील यादव और आनंद भदौरिया की वापसी करानी पड़ी.

मुख्तार की पार्टी को लेकर परिवार में हुआ विवाद

चुनाव के लिए एक साल का समय बचा था. टिकट को लेकर मंथन शुरू हुआ. इसी दौरान शिवपाल सिंह ने अपर्णा यादव को टिकट देने की वकालत की. अखिलेश ने विरोध किया. लेकिन मुलायम सिंह ने हस्तक्षेप किया और लखनऊ कैंट से टिकट मिला. दूसरी तरफ अमर सिंह की पार्टी में वापसी हुई. शिवपाल सिंह ने स्वागत किया तो अखिलेश और रामगोपाल ने विरोध. मनमुटाव और दूरी और बढ़ी. फिर जून 2016 में शिवपाल ने चाहा कि मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल के साथ गठबंधन हो जाए. उन्होंने खूब कोशिश की, लेकिन अखिलेश ने रोक दिया. विलय रद्द हो गया. तब शिवपाल ने पार्टी छोड़ने की धमकी दे दी. मुलायम सिंह ने मामला शांत कराया. फिर सितंबर का महीना आया और परिवार का विवाद सड़कों पर दिखा.

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अखिलेश ने शिवपाल से छीन लिए सभी प्रमुख विभाग

11 सितंबर 2016 को अखिलेश यादव ने भ्रष्टाचार के आरोप में गायत्री प्रजापति और राज किशोर को बर्खास्त कर दिया. एक दिन बाद ही मुख्य सचिव रहे दीपक सिंघल को भी पद से हटा दिया गया. ये शिवपाल गुट के माने जाते थे. फैसले से मुलायम-शिवपाल काफी नाराज हुए. 13 सितंबर को अखिलेश की जगह शिवपाल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. शाम होते-होते अखिलेश ने भी पलटवार किया और शिवपाल यादव से सरकार के प्रमुख विभाग छीन लिए.

शिवपाल कहां चुप बैठने वाले थे. 15 सितंबर 2016 की रात को शिवपाल ने अपनी पत्नी और बेटे के साथ एसपी और यूपी सरकार के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. हालांकि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश ने इस्तीफा ठुकरा दिया. फिर गायत्री प्रजापति को सरकार में वापसी हुई. शिवपाल को उनके विभाग वापस मिले. तय हुआ कि 2017 के चुनाव में टिकट बंटवारे में अखिलेश की मुख्य भूमिका होगी.

मुलायम सिंह का वह बयान, जिसने चिंगारी को हवा दे दी

शिवपाल यादव ने हत्या के आरोपी अमनमणि त्रिपाठी सहित 9 लोगों को टिकट दे दिया. तब अखिलेश ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. इतना ही नहीं. अखिलेश के विरोध के 3 महीने बाद मुख्तार की पार्टी कौमी एकता दल का एसपी में विलय हो गया. इसके बाद मुलायम सिंह के एक बयान ने अंदर ही अंदर सुलगती चिंगारी को हवा दे दी. 14 अक्टूबर 2016 को मुलायम सिंह यादव ने कहा कि सीएम उम्मीदवार की घोषणा चुनाव के बाद की जाएगी. इससे मैसेज गया कि शायद अखिलेश सीएम का चेहरा नहीं होंगे.

अखिलेश ने 23 अक्टूबर 2016 को शिवपाल यादव को कैबिनेट और तीन अन्य मंत्रियों से बर्खास्त कर दिया. रामगोपाल ने अखिलेश के समर्थन के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को खुला पत्र लिखा. वहीं जवाबी कार्रवाई में शिवपाल ने बीजेपी से साठगांठ करने के आरोप में रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाल दिया.

जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को पार्टी से ही निकाल दिया

फिर आता है दिसंबर. मुलायम सिंह ने अखिलेश और रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया. नाराजगी इस बात की थी कि विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने बिना पूछे अपने चहेतों को टिकट दिया. मुलायम के इस फैसले से अखिलेश यादव के समर्थक सड़कों पर उतर गए. जमकर नारेबाजी की.

लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया गया. रामगोपाल यादव ने घोषणा की कि अखिलेश यादव पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे. शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिए गए. अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया. अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल शामिल नहीं हुए थे, उन्होंने एक पत्र लिखकर कहा था, ये आयोजन पूरी तरह से पार्टी संविधान के विरूद्ध है. यहीं से पूरा परिवार दो फाड़ हो गया. पार्टी की पूरी कमान अखिलेश यादव के हाथ में आ गई.

चुनाव में एसपी की हार हुई. शिवपाल ने अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. 2019 का लोकसभा चुनाव आया. ये खाई और गहरी हो गई. शिवपाल यादव फिरोजाबाद में जाकर लोकसभा का चुनाव लड़े. फिरोजाबाद से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव सांसद थे. शिवपाल के चुनाव लड़ने का असर ये हुआ कि शिवपाल तो नहीं जीते लेकिन अक्षय यादव भी हार गए. सीट बीजेपी के पास चली गई. यादव परिवार में विवाद की बातें साल 2022 तक बाहर आती रहीं. अब फिर से चुनाव है. चाचा शिवपाल को अखिलेश ने घर वापसी करा ली. लेकिन दूसरी तरफ से अपर्णा यादव के जरिए टूट की कहानी अभी जारी है. लेकिन अब कह सकते हैं कि यादव परिवार की पॉलिटिक्स और पावर पर पूरी तरह से अखिलेश का अख्तियार है.

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