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समाजवादी पार्टी की साइकिल का ‘ब्रेक’ ठीक, अखिलेश-शिवपाल में सुलह!

ताजा खबर यह है कि चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच दूरियां कम हो गई हैं.

विक्रांत दुबे
पॉलिटिक्स
Published:


शिवपाल यादव और अखिलेश यादव 
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शिवपाल यादव और अखिलेश यादव 
(फोटो: द क्विंट)

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी तेज बदलाव हो रहे हैं. ताजा खबर यह है कि चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच दूरियां कम हो गई हैं. करीबियों की मानें तो शिवपाल ने मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मांग छोड़ दी है. अखिलेश यादव की भी चाचा के प्रति नाराजगी कम हो गई है. इससे पार्टी संगठन की मुख्यधारा में शिवपाल की वापसी का रास्ता साफ हो गया है. मतलब 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एसपी फिर से एकजुट होगी और भतीजा सिर्फ “बुआ” के साथ ही नहीं बल्कि चाचा के साथ भी दिखेगा.

2019 की निर्णायक लड़ाई से पहले घर में सुलह जरूरी

सूत्रों के मुताबिक दोनों में सुलह नजदीकी नेताओं की मध्यस्थता से हुई. यादव परिवार के करीबी नेताओं ने अखिलेश, शिवपाल और मुलायम के बीच कई दौर की बात कराई. लेकिन सूत्र यह भी बताते हैं कि समझौते की बड़ी वजह प्रदेश राजनीति में आये हालिया बदलाव भी हैं. फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उप चुनाव में अखिलेश की रणनीति अगर सफल न होती तो शायद समझौते की सूरत नहीं बनती. शिवपाल के तेवर उन नतीजों के बाद ढीले पड़ गए. दूसरी तरफ अखिलेश भी समझ रहें हैं कि गठबंधन के वक्त दूसरे दलों से सीटों पर मजबूती से मोलभाव करने के लिए यह जरूरी है कि परिवार और पार्टी के बीच का बिखराव खत्म हो. अगर घर में कलह रहेगी तो दूसरों से मोलभाव में स्थिति कमजोर रहेगी. इसी व्यावहारिक सोच के मद्देनजर दोनों के बीच सुलह हो सकी है.

सपा नेता शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (फोटो: PTI)

विधानसभा चुनाव से पहले चाचा-भतीजा में हुआ था दंगल

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा से पहले समाजवादी पार्टी में फूट पड़ गई थी. पार्टी पर वर्चस्व को लेकर अखिलेश और शिवपाल आमने-सामने आ गए थे और मुलायम सिंह यादव शुरुआती दिनों में शिवपाल के समर्थन में खड़े नजर आए. हालांकि चुनाव से ठीक पहले उनके भीतर का पुत्रमोह जागा और उन्होंने अखिलेश यादव को अपना समर्थन दिया. मगर तब तक खेल बिगड़ चुका था. इस घरेलू कलह ने पार्टी को दो हिस्सों में बांट दिया. एक तरफ अखिलेश यादव के साथ रामगोपाल यादव और पार्टी के करीब तमाम बड़े नेता नजर आए. शिवपाल अपने समर्थकों के साथ अलग-थलग पड़ गए. लेकिन शिवपाल के पास भी जमीनी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की बड़ी फौज थी. अखिलेश ने उनके करीबियों का टिकट काट दिया. जिनमें से कई पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के विरोध में चुनावी मैदान में उतर गए.

2017 की चुनावी हार से नरम पड़े तेवर

विधानसभा चुनाव में आए बुरे नतीजों से अखिलेश, शिवपाल और मुलायम को जमीनी हकीकत का अंदाजा लगा. उन्हें यह बात समझ में आई कि अगर बीजेपी को टक्कर देनी है तो सबसे पहले परिवार को एक होना पड़ेगा. यही वजह है कि हाल के दिनों में पिता-पुत्र और चाचा के बीच की तल्खी कम दिखाई देने लगी है.

2017 यूपी चुनाव में साथ आ रह चुके हैं राहुल और अखिलेश(फाइल फोटो: PTI)
2019 की लड़ाई बड़ी लड़ाई है. उस लड़ाई में समाजवादी कुनबा पहले जैसे एक होकर जनता के बीच जाने का मन बना रहा है. बताया जा रहा है कि इसके लिए पार्टी के आला नेताओं के बीच सहमती का फॉर्मूला तैयार हो चुका है. यह फॉर्मूला क्या है? शिवपाल यादव को पार्टी में कौन सी भूमिका दी जाएगी? उनके साथ क्या उनके समर्थकों को भी पार्टी में पुरानी हैसियत के मुताबिक शामिल कराया जाएगा या नहीं? सूत्रों की मानें तो इन सब बातों पर चर्चा हुई है और इसका औपचारिक एलान जल्द ही कर दिया जाएगा.

शिवपाल के आने से बढ़ेगी ताकत

समाजवादी पार्टी में अखिलेश से पहले संगठन की सारी जिम्मेदारी शिवपाल के कंधों पर थी. इस पार्टी को खड़ा करने में मुलायम सिंह के बाद सबसे बड़ी भूमिका शिवपाल यादव की ही रही है. संगठन में उनकी गहरी पैठ थी. जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से उनके सीधे संबंध थे. अगर शिवपाल को सम्मानजनक तरीके से एसपी में फिर से स्थापित किया जाता है तो इससे पार्टी की ताकत काफी बढ़ेगी. यह सपा,बसपा, आरएलडी और कांग्रेस गठबंधन के लिए अच्छी खबर है तो भाजपा के लिए बुरी खबर है. भाजपा का फायदा तो इसी में है कि विपक्ष संगठित नहीं हो. लेकिन जिस तरह विपक्ष एकजुट हो रहा है यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है.

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