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MP: अखिलेश्वरानंद को राज्यमंत्री के बाद अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा

इसी साल अप्रैल में सरकार ने नर्मदा नदी के संरक्षण और पौधा रोपण के लिए जागरुकता लाने के लिए 5 संतों की कमेटी बनाई थी

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अखिलेश्वरानंद को राज्यमंत्री के बाद अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा
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अखिलेश्वरानंद को राज्यमंत्री के बाद अब कैबिनेट मंत्री का दर्जा
(फोटो: ट्विटर\@AkhileshwarandG)

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मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने गोरक्षा बोर्ड के चेयरमैन स्वामी अखिलेश्वरानंद का प्रोमोशन करते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया है. इससे पहले उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा हासिल था. इसी साल अप्रैल में सरकार ने नर्मदा नदी के संरक्षण और पौधा रोपण की जागरुकता लाने के लिए 5 संतों की कमेटी बनाई थी. इस कमेटी के 5 सदस्यों नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद महाराज, भैय्यू जी महाराज, कम्प्यूटर बाबा और योगेंद्र महंत को राज्यमंत्री स्तर का दर्जा दिया गया था.

इन्हीं संतों को नर्मदा संरक्षण के लिए बने पैनल में अखिलेश्वरानंद के साथ जगह मिली थी. अब बताया जा रहा है कि कुछ 'विवादित लोगों (संतों)' के साथ पैनल में शामिल किए जाने को लेकर अखिलेश्वरानंद नाराज थे.

कुछ ‘विवादित लोगों (संतों)‘ के साथ पैनल में शामिल किए जाने को लेकर अखिलेश्वरानंद नाराज थे.(फोटो: ट्विटर\@AkhileshwarandG)

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कम्प्यूटर बाबा और योगेंद्र महंत की पैनल में मौजूदगी से अखिलेश्वरानंद नाराज थे, अप्रैल में ही उन्होंने सीएम को चिट्ठी लिखकर इस्तीफे की पेशकश की थी. वो पैनल की मीटिंग से भी दूरी बनाए हुए थे. अब उनकी नाराजगी दूर करने के लिए सरकार ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है.

भैय्यू जी के सुसाइड पर खड़े किए सवाल

भैय्यू जी महाराज ने राज्यमंत्री के पद को ठुकरा दिया था. 11 जून को उन्होंने खुदकुशी कर ली, खुदकुशी को लेकर अखिलेश्वरानंद ने उनके आध्यात्मिक जीवन पर ही सवाल उठा दिया है. अखिलेश्वरानंद ने अपने ट्वीट में लिखा है

आध्यात्मिक जीवन जीने वाला, अध्यात्म साधना रत व्यक्ति के जीवन में कभी भी अवसाद उत्पन्न होता ही नहीं, वो अपराध कर ही नहीं सकता. आत्महत्या जैसा कृत्य आध्यात्मिक पुरुष कर ही नहीं सकता. भैय्यू जी महाराज के आत्मघाती निर्णय ने अध्यात्म पर रिसर्च करने को विवश कर दिया.

छिंदवाड़ा में पैदा हुए थे अखिलेश्वरानंद?

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में पैदा हुए अखिलेश्वरानंद ने 17 साल के उम्र में ही घर छोड़ दिया था. साल 2010 में उन्हें महामंडलेश्वरर की उपाधि दी गई. फिलहाल, वो गोरक्षा बोर्ड के चेयरमैन हैं.

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