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खुद को ठाकोर सेना का आम सैनिक बताने वाले 38 साल के धवल सिंह ठाकोर ने कहा, ‘यह अल्पेश भाई का निर्णय नहीं है, यह जनादेश है.’
धवल और उनके भाई के लिए गांव में खेती से गुजारा मुश्किल हो गया था. इसलिए वह अपनी चार बीघा जमीन छोड़कर शहर आ गए. यहां धवल ऑटो चलाते हैं. उन्होंने बताया कि शहर में भी पुलिसवाले किसी न किसी बहाने ऑटो रोक लेते हैं और 300-500 रुपये लेने के बाद ही छोड़ते हैं. धवल के मुताबिक, ‘बदलाव का समय आ गया है.’
ठाकोर सेना ने इस साल ऑनलाइन, फोन और घर-घर जाकर सर्वे किया था कि अल्पेश को किस राजनीतिक पार्टी में जाना चाहिए. उनके सहयोगियों के मुताबिक, करीब 25 लाख लोगों ने कहा कि अल्पेश को कांग्रेस में जाना चाहिए. सिर्फ 1.6 लाख लोगों ने उन्हें बीजेपी ज्वाइन करने की सलाह दी.
धवल उन हजारों सैनिकों में से एक हैं, जो गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना का झंडा लहरा रहे हैं. इस झंडे में शेर की फोटो है.
अल्पेश और उनके सैनिकों की हुंकार के चलते बीजेपी को डैमेज कंट्रोल करना पड़ रहा है. ‘नवसर्जन जनादेश महासम्मेलन’ में अल्पेश के औपचारिक तौर पर कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी ने हालात का जायजा लेने के लिए मीटिंग की. खबर है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मुख्यमंत्री विजय रूपानी और पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के साथ घटनाक्रम पर करीबी नजर रखे हुए हैं.
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटबैंक में अल्पेश सेंध लगा सकते हैं. राज्य के 45 पर्सेंट लोग इसी वर्ग से आते हैं. ओबीसी में 146 उप-जातियां हैं. इनमें कोली (सौराष्ट्र में इसी नाम से जाने जाते हैं), दक्षिण गुजरात में कोली पटेल और उत्तर गुजरात में ठाकोर की संख्या सबसे अधिक है.
वह पूर्व कांग्रेस नेता खोडाभाई पटेल के बेटे हैं. उन्होंने राजनीतिक सफर 5 साल पहले गुजरात क्षत्रिय ठाकोर सेना के साथ शुरू किया था, जिसने राज्य में शराब की लत के खिलाफ अभियान चलाया था. इस अभियान के खत्म होने तक ठाकोर सेना के रजिस्टर्ड सदस्यों की संख्या 6.5 लाख पहुंच गई थी. 26 जनवरी 2016 को अल्पेश ने आरक्षण को बचाने के लिए ओएसएस (ओबीसी, एससी और एसटी) एकता मंच बनाया. पाटीदार आंदोलन की वजह से उन्हें आरक्षण कोटे में कमी का डर था.
इस साल 23 अक्टूबर को 40 साल के अल्पेश कांग्रेस में शामिल हुए.
बीजेपी अब तक राज्य में ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की बदौलत चुनाव जीतती आई है, जिस पर उसे गर्व भी रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में सम्मान बचाने के लिए बीजेपी को ओबीसी वोटों की जरूरत है. मोदी खुद अन्य पिछड़ा वर्ग की तेली-घांची जाति से आते हैं.
हार्दिक पटेल की अगुवाई में चले पाटीदार आंदोलन के बाद पार्टी ओबीसी और आदिवासियों का समर्थन हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है. इस आंदोलन में 12 लोगों की जान गई थी. 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने हार्दिक पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दायर किया था. हार्दिक जेल गए और पाटीदारों के हीरो बन गए. इस आंदोलन के चलते बीजेपी का पाटीदारों में जनाधार खत्म हो गया, जिसकी मदद से पार्टी पिछले 22 साल से गुजरात में राज कर रही है.
बीजेपी अभी रिश्वत देने के आरोप का सामना कर रही है. पार्टी ज्वाइन करने के कुछ ही घंटे बाद हार्दिक के पूर्व सहयोगी नरेंद्र पटेल ने दावा किया कि उन्हें बीजेपी में आने के लिए 1 करोड़ रुपये देने का वादा किया गया था. उन्होंने 22 अक्टूबर की शाम को मीडिया को कथित तौर पर 10 लाख रुपये भी दिखाए, जो उन्हें पेशगी के तौर पर मिले थे. इसके कुछ घंटे बाद एक और पाटीदार निखिल सवानी ने बीजेपी छोड़ दी.
उन्होंने कहा कि नरेंद्र पटेल के आरोप की वजह से वह पार्टी छोड़ रहे हैं. सवानी भी पाटीदार आंदोलन का हिस्सा रहे थे और बाद में बीजेपी में गए थे. बीजेपी दावा कर रही है कि उसका कांग्रेस के साथ प्रॉक्सी वॉर चल रहा है. पार्टी को अब चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के लिए अपने स्टार कैंपेनर नरेंद्र मोदी पर भरोसा है.
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