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राहुल की किसान यात्रा- क्या बदलेगा कांग्रेस का चेहरा?

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की उत्तर प्रदेश में आयोजित हुई लंबी किसान यात्रा से क्या होगा हासिल?

नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
Published:


राहुल गांधी की खाट सभा  (फोटो: <b>The Quint</b>)
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राहुल गांधी की खाट सभा (फोटो: The Quint)
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देवरिया से दिल्ली तक चली राहुल गांधी की महीने भर लंबी किसान यात्रा के बाद कांग्रेस पार्टी ने ‘क्या खोया और क्या पाया’ का विश्लेषण बेमानी है. विचार इस पर होना चाहिए कि कांग्रेस ने ‘कुछ पाया या कुछ भी नहीं पाया’. क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 में से महज 28 और लोकसभा की 80 में से सिर्फ 2 सीटों पर काबिज पार्टी के पास खोने के लिए तो ज्यादा कुछ है ही नहीं.

वीआईपी छवि तोड़ने की कोशिश


किसानों के लिए भट्टा-पारसौल की पदयात्रा, दलितों-गरीबों के घर जाना या फिर कालेजों में जाकर छात्रों से मिलना - राहुल गांधी ने ये तमाम कोशिशें पहले भी की हैं. लेकिन इस बार के अभियान में पार्टी के मुख्य रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कसे हुए प्रबंधन की छाप साफ नजर आई. शुरुआती खाट सभाओं में खाट लुटने की खबरों ने भले ही सुर्खियां बटोरी हों लेकिन उसके बाद भी खाट सभाएं हुईं और सलीके से हुईं.

(फोटो: The Quint)

चुनावी रैलियों के परंपरागत इकतरफा भाषणबाजी के ढर्रे से अलग कांग्रेस उपाध्यक्ष ने एक-एक घंटे तक किसानों से बात की. वीआईपी नेता की छवि से अलग हाईवे ढाबों पर चाय-समोसे खाए, शिकंजी पी और तो और नुक्कड़ सभाओं में लोगों के गले भी लगे.

वोट बैंक पर बेहतर होमवर्क

यूं तो राहुल गांधी ने रास्ते के हर मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गुरुद्वारे और चर्च में माथा टेका लेकिन उनके रोड शो बेहद होशियारी से डिजाइन किए गए थे. राहुल का हर रोड शो शहर की मुस्लिम और दलित बस्तियों से जरूर गुजरा और अच्छी खासी भीड़ भी बटोरी. ये वो वोट बैंक है जिस पर कांग्रेस पार्टी की खास नजर है.

(फोटो: The Quint)

कांग्रेस को लगता है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में मुलायम सिंह से बेरुखी दिखा चुका मुस्लिम समुदाय 2017 में कांग्रेस से नजदीकी बढ़ा सकता है. यही वजह है कि मौलानाओं का मन टटोलने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष ने इस्लामिक शिक्षा के तीन बड़े केंद्रों जौनपुर, लखनऊ और देवबंद का दौरा किया. हालांकि संतुलन बनाए रखने के लिए वो अयोध्या के हनुमान गढ़ी, मिर्जापुर के विंध्यवासिनी, चित्रकूट के कामतानाथ और मथुरा के द्वारकाधीश सरीखे तमाम मंदिरों में भी गए.

किसान मांग पत्र

कर्जा माफ, बिजली बिल हाफ, समर्थन मूल्य का करो हिसाब- इस पूरे नारे का जो हिस्सा लोगों की जुबान पर चढ़ा है वो है- कर्जा माफ.

रायबरेली में राहुल गांधी की खाट सभा से कुछ दूर समोसे तलते हुए दुकानदार संतोष कुमार ने हमसे पूछा-

ये कर्जा माफी फॉर्म हमें नहीं मिल सकता क्या ?

यानी, किसान मांग पत्र को लेकर सिर्फ किसानों में ही नहीं तमाम दूसरे लोगों में भी दिलचस्पी है.

इस मांग पत्र को भरने का फायदा ये है कि उनकी सरकार आई तो हमारा कर्जा माफ होगा. इतना आश्वासन दे रहे हैं तो कांग्रेस को वोट मिलना चाहिए.&nbsp;
बुलंदशहर के सिखेड़ा गांव में किसान रणबीर सिंह ने क्विंट हिंदी से कहा

किसान मांग पत्र को लेकर लोगों की दिलचस्पी इस पूरे प्रचार अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि है.

प्रशांत किशोर की टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने क्विंट हिंदी को बताया कि 6 अक्टूबर तक 75 लाख मांग पत्र भरवाए जा चुके हैं जबकि आखिरी तारीख यानी 31 अक्टूबर तक 2 करोड़ मांग पत्र भरे जाने का लक्ष्य है. 

इसके बाद राहुल गांधी की अगुवाई में ये तमाम मांग पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाए जाएंगे. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री ने इसके लिए वक्त ना भी दिया तो किसी प्रतीकात्मक कार्यवाही के जरिये इस काम को अंजाम दिया जाएगा.

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सोशल मीडिया पर आक्रामक प्रचार

इस यात्रा में प्रचार के नए तौर तरीकों के प्रति कांग्रेस पार्टी के सुस्त रवैये में बदलाव देखने को मिला और सोशल मीडिया पर पार्टी बीजेपी से सीधे टक्कर लेती दिख रही है. 10 अक्टूबर तक बीजेपी के फेसबुक पेज ‘उत्तर देगा उत्तर प्रदेश’ के 7,53,709 लाइक्स हैं जबकि कांग्रेस के फेसबुक पेज ‘27 साल यूपी बेहाल’ पर ये आंकड़ा 7,82,353 है.

यूपीसीसी के ट्विटर हैंडल के 14,800 फोलोअर्स हैं जिस पर कांग्रेस के प्रचार अभियान से जुड़ी तमाम खबरें जिनभर अपडेट होती हैं. इसके अलावा यूपीसीसी के व्हाट्स एप ग्रुप से जुड़े डेड़ हज़ार से ज्यादा ग्रुप सक्रिय हैं और इस जरिये भेजा जाने वाला हर संदेश एक साथ सवा लाख मोबाइल फोन तक पहुंचता है.

(फोटो: The Quint)

कार्यकर्ताओं और लोकल नेताओं में उत्साह

बुलंदशहर से टिकट की कोशिश कर रहे कांग्रेस नेता सुशील चौधरी ने क्विंट हिंदी से कहा कि पहले लोग कहते थे-

कांग्रेस के नेता अपने घरों से निकलना नहीं चाहते। लेकिन अब तो हमारे राष्ट्रीय नेता भी सड़क पर मेहनत कर रहें हैं और कार्यकर्ता भी.

ये एक बड़ा बदलाव है जो राहुल की पहली कोशिशों से गायब दिखता था. भट्टा पारसौल जैसी यात्राओं के दौरान कार्यकर्ताओं के चेहरों पर निराशा और नाउम्मीदी साफ झलकती थी. लेकिन लखनऊ के यूपीसीसी दफ्तर में बढ़ी चहल-पहल और कार्यकर्ताओं के बढ़े भरोसे को देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी का सांगठनिक ढांचा स्वस्थ भले ना हुआ हो लेकिन आईसीयू से जनरल वार्ड में शिफ्ट हुआ है.

कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र- प्रियंका गांधी

आखिरकार पार्टी उत्तर प्रदेश चुनावों में अपना वो ब्रह्मास्त्र भी चलाने जा रही है जिसकी मांग पिछले की सालों से हो रही है. किसान यात्रा के जरिये चुनावी प्रचार का बिगुल फूंकने के बाद अब राहुल गांधी कमान अपनी बहन प्रियंका गांधी के हाथ में सौंपेंगे. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक प्रियंका नवंबर-दिसंबर तक प्रचार मैदान में पूरी ताकत के साथ उतरेंगी और इसके लिए एक बड़ी योजना तैयार की जा रही है.

(फोटो: The Quint)

माना जा रहा है कि अब तक सिर्फ अमेठी-रायबरेली तक सीमित रही प्रियंका 2017 के चुनावों के लिए पूरे यूपी में 150 से ज्यादा रैलियां करेंगी. लोकल नेताओं के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के लिये ये कदम गेमचेंजर साबित हो सकता है क्योंकि प्रियंका को लेकर ना सिर्फ कार्यकर्तांओं बल्कि आम लोगों में भी खासी दिलचस्पी है.

तो साफ है कि महीने भर की मैराथन किसान यात्रा की समाप्ति के साथ कांग्रेस पार्टी में दिखा जोश खत्म नहीं होगा. सूत्रों का कहना है कि रणनीतिकार प्रशांत किशोर के तरकश में अभी कई तीर हैं जिनका वक्त-वक्त पर खुलासा होगा. यानी, नतीजे जो भी हों लेकिन इतना तय है कि उत्तर प्रदेश की जटिल सियासी चौसर पर इस बार दिलचस्प दांव देखने को मिलेंगे.

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