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बिहार में महागठबंधन की गांठ खुल गई है और उससे दो नए गठबंधन बन गए हैं. एक तरफ है बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी का सत्ताधारी गठबंधन तो दूसरी तरफ है जेडीयू-कांग्रेस. लालू-नीतीश के अलगाव प्रकरण के बाद बने इन नए गठबंधनों की असली परीक्षा अररिया लोकसभा सीट पर होगी, जिसके लिए उपचुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. 11 मार्च को वोटिंग और 14 मार्च को नतीजे आएंगे. अररिया लोकसभा सीट आरजेडी सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद खाली हो गई थी.
साल 2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो आरजेडी कैंडिडेट तस्लीमुद्दीन ने बीजेपी कैंडिडेट प्रदीप कुमार सिंह को करीब 1.5 लाख वोटों से हराया था. प्रदीप इस सीट से 2009 में बीजेपी सांसद भी रह चुके हैं.
अररिया लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें 5 पर NDA काबिज है वहीं 1 सीट कांग्रेस के पास है. सीट पर पिछले दो दशकों में हुई 5 लोकसभा चुनावों में 3 बार बीजेपी तो दो बार आरजेडी की सरकार बनी है. ये बता दें कि बिहार में हुए इन लोकसभा चुनावों में पार्टियों का समीकरण भी बदला है. कभी जेडीयू, बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी है तो कभी कांग्रेस, आरजेडी के साथ.
जानकारों का मानना है कि अररिया सीट का चुनाव NDA Vs UPA 'किस्म' का हो सकता है. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले साफ है कि कौन सी क्षेत्रीय पार्टी किस खेमे की तरफ जा रही है. ऐसे में वोटरों को भी अंदाजा लगाने में दिक्कत नहीं होना चाहिए. इस सीट पर मुस्लिम-यादव समुदाय का दबदबा है. 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता यहां हैं, ऐसे में लालू प्रसाद यादव की पार्टी को यहां बढ़त हो सकती है, हालांकि चुनाव पूर्व ऐसे कोई अनुमान नहीं लगाए जा सकते. जातीय समीकरणों को देखते हुए बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को उम्मीदवार चुनने में मुश्किल हो सकती है.
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