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सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केजरीवाल की जीत, किस वजह से था झगड़ा

कोर्ट ने कहा- उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं हैं और चुनी हुई सरकार को ही फैसले लेने का हक है.

शादाब मोइज़ी
पॉलिटिक्स
Updated:
केजरीवाल की जीत
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केजरीवाल की जीत
(फोटो: Harsh Sahani/The Quint)

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"उपराज्यपाल को याद रखना चाहिए कि चुनी हुई सरकार जनता की पसंद है. उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं हैं, जबकि चुनी हुई सरकार को फैसले लेने का हक है." सुप्रीम कोर्ट ने ये कहकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रही अधिकारों की जंग पर एक तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पक्ष में फैसला दे दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले के जरिए लंबे समय से आम आदमी पार्टी की सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के विवाद पर फुल स्टॉप लगा दिया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसले के दौरान कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए.

केजरीवाल मानो जंग जीत गए हों

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी खुशी का इजहार किया है. केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, "ये दिल्ली की जनता की जीत है, लोकतंत्र की जीत है".

अब ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी क्यों इतनी खुश है? इस फैसले से दिल्ली पर क्या असर पडे़गा? किन मुद्दों पर सरकार और एलजी के बीच टकराव था?

एंटी करप्शन ब्यूरो छिना तो शुरू हुआ झगड़ा

साल 2015 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता पर दोबारा एंट्री की. केजरीवाल सरकार ने करप्शन पर जीरो टॉलेरेंस का दावा किया. इसी को देखते हुए अप्रैल के महीने में एंटी दिल्ली सरकार की करप्शन ब्रांच ने दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल को रिश्वत के मामले में गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद दिल्ली दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार में खींचतान शुरू हो गई.

6 जून 2015 को केंद्र सरकार की तरफ से फैसला आया कि एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास न होकर वो केंद्र सरकार के पास होगी. साथ ही एंटी करप्शन ब्रांच को केंद्र सरकार के तहत आने वाले अधिकारी या कर्मचारी पर कार्रवाई न करने का भी नोटिफिकेशन जारी किया गया.

मतलब दिल्ली सरकार के हाथ से बड़े अधिकार निकल गए. जिसके विरोध में वह दिल्ली हाईकोर्ट चली गई और वहीं से दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल की कानूनी लड़ाई शुरू हो गई.

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नौकरशाहों की पोस्टिंग, ट्रांसफर का हक नहीं

2015 में ही केंद्र सरकार ने एक और नोटिफिकेशन निकाला जिसके मुताबिक राज्य के नौकरशाह दिल्ली की चुनी सरकार मतलब केजरीवाल की सरकार को रिपोर्ट न कर, वो उपराज्यपाल को जवाबदेह होंगे. यानी दिल्ली सरकार के पास नौकरशाहों की ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार नहीं होगा. ये अधिकार उपराज्यपाल को सौंप दिये गये थे.

मोहल्ला क्लिनिक

इसके बाद मोहल्ला क्लीनिक और राशन डिलीवरी स्कीम का विवाद शुरू हुआ. एक नोटिफिकेशन के मुताबिक सेवा विभाग दिल्ली सरकार के अधिकार में नहीं बल्कि उप राज्यपाल के अधीन होगा. सेवा विभाग सरकार के अधीन ना होने से कई नए बनाए गए मोहल्ला क्लीनिक में डॉक्टर, पैरामेडिकल और नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पाई. साथ ही बन कर तैयार 31 मोहल्ला क्लीनिक शुरू नहीं हो पाए.

दिल्ली सरकार का मोहल्ला क्लीनिक. (Photo: The Quint)

सर्विसेज की फाइल अटकी

इसके अलावा CCTV योजना, सेवाओं की होम डिलीवरी की योजना, राशन की होम डिलीवरी की योजना जैसी कई स्कीम लंबे वक्त से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल में आपसी तालमेल की वजह से अटकी रहीं.

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल के साथ सीएम अरविंद केजरीवाल(फोटोः PTI)

उपराज्यपाल ने केजरीवाल के सलाहकारों को हटाया

दिल्ली सरकार अलग अलग डिपार्टमेंट और मंत्रियों के लिए कुछ एक्सपर्ट और सलाहकार नियुक्त किये थे, लेकिन सरकार द्वारा नियुक्त किए गए सलाहकारों और विशेषज्ञों की नियुक्ति को उपराज्यपाल ने खारिज कर दिया था. जिससे सरकार के काम पर असर पड़ा था.

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने केजरीवाल के हक में अपना फैसला तो सुना दिया है लेकिन देखना होगा कि ये फैसला अमल में कैसे आता है, क्योंकि कई मुद्दे ऐसे हैं जिनकी वजह से उपराज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री का अहम टकरा सकता है.

ये भी पढ़ें- LG को झटका, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 10 बड़ी बातें

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Published: 04 Jul 2018,04:36 PM IST

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