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आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव 2022 के लिए 21 जून को चुनाव प्रचार खत्म हो गया. इन दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा था. इस कब्जे को चुनौती देने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. दोनों सीटों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) समेत BJP के कई बड़े नेताओं ने रैलियां और घर-घर प्रचार किया है. लेकिन, यूपी की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी एसपी (SP) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) इस चुनाव से नदारद दिखे.
इन दोनों में से किसी भी सीट पर वो चुनाव प्रचार करने नहीं आए. ऐसे में कई सवाल उठते हैं कि क्या अखिलेश यादव इस चुनाव को लेकर गंभीर नहीं हैं? या आश्वस्त हैं कि वो चुनाव जीत जाएंगे?
बता दें, आजमगढ़ लोकसभा सीट (Azamgarh Lok Sabha Seat) अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी. वहीं, रामपुर सीट (Rampur Seat) से आजम खान (Azam Khan) ने इस्तीफा दिया था. आजमगढ़ सीट से अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव चुनावी मैदान में हैं. जबकि, रामपुर सीट से आजम खान के करीबी माने जाने वाले आसिम राजा हैं.
बीजेपी ने आजमगढ़ सीट पर अपने पुराने प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को ही रिटेन किया है. वहीं, बीएसपी ने गुड्डू जमाली पर दांव लगाया है. रामपुर सीट से बीजेपी के प्रत्याशी घनश्याम लोधी हैं. कांग्रेस ने दोनों ही सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारे हैं.
आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव मैदान में हैं. बावजूद, अखिलेश यादव प्रचार करने नहीं आए. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यादव परिवार में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. या चाचा शिवपाल यादव की परछाईं की दाग अभी भी एसपी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. हालांकि, शिवपाल के बगावत के बाद धर्मेंद्र यादव ने अखिलेश यादव का पूरा समर्थन किया था. चाहें नेताओं को एक करने का काम हो या परिवार के अंदर सामंजस्य बैठाने की बात हो. धर्मेंद्र यादव हर जगह अखिलेश के पीछे खड़े दिखाई दिए.
दरअसल, आजम खान ने रामपुर के अलावा आजमगढ़ के चुनावी प्रचार की भी बागडोर संभाल रखी है. उनका साथ बाकी समाजवादी पार्टी के नेता दे रहे हैं. रामपुर में आजम खान के लिए अग्निपरीक्षा भी है, क्योंकि उनके करीबी चुनावी मैदान में हैं. माना जा रहा है कि अखिलेश यादव आजम खान को तवज्जों दे उनकी नाराजगी दूर करना चाहते हैं. इसी के तहत उन्होंने रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव से दूरी बना रखी है.
जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव ने ये निर्णय लेकर एक तीर से दो निशाना लगाया है. अखिलेश यादव ने उपचुनाव की जिम्मेदारी आजम खान को सौंपकर खुद को मुक्त कर लिया है. क्योंकि, अखिलेश यादव न तो इसका क्रेडिट लेना चाहते हैं और ना ही हार का ठीकरा अपने सिर पर फोड़वाना चाहते हैं. बताया जा रहा है कि रामपुर में भले ही समाजवादी उम्मीदवार असीम राजा हैं, लेकिन यहां फैसला आजम खान के सियासी भविष्य का होगा. अगर समाजवादी पार्टी यहां से जीती तो आजम खान पार्टी में नंबर दो हो जाएंगे और अगर हारी तो आने वाला भविष्य ही बताएगा की पार्टी में उनकी क्या हैसियत रहने वाली है?
बीजेपी के साथ ही सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए भी आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि, आजमगढ़ में विधानसभा की 10 सीटें हैं और इन 10 सीटों पर एसपी का कब्जा है. अगर, बीजेपी यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब हो जाती है तो बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व में सीएम योगी आदित्य नाथ की साख और बढ़ जाएगी. ऐसे में प्रदेश की राजनीति में अपने मन मुताबिक फैसले लेने के लिए वो स्वतंत्र हो जाएंगे.
इसके लिए सीएम योगी ने प्रदेश स्तर के सभी बड़े नेताओं को चुनावी मैदान में उतार दिया था. इसके अलावा वो खुद की चुनाव प्रचार करने गए थे. उन्होंने खुले मंच से एसपी को चुनौती दी थी और अखिलेश यादव को भगोड़ा कहा था. उन्होंने जनता से भी अपील की थी कि इस मौके को हाथ से जाने मत दीजिएगा, क्योंकि यही मौका है जब आजमगढ़ को आर्यमगढ़ बनाएगा. आजमगढ़ को आतंकवादगढ़ बनने का अवसर मत दीजिएगा.
हालांकि, आजमगढ़ सीट पर बीजेपी के लिए जीत आसान नहीं होगी. अगर, आजमगढ़ सीट पर चुनावी समीकरण की बात करें, तो यहां 26 फीसदी यादव और 24 फीसदी मुस्लिम आबादी है. ऐसे में इन्हीं दोनों के वोट से एसपी को 50 फीसदी वोट हासिल होते रहे हैं. इसके अलावा राजभर जाति की भी अच्छी खासी आबादी हो जो ओमप्रकाश राजभर को अपना नेता मानती है. फिलहाल, ओमप्रकाश राजभर भी समाजवादी पार्टी के साथ हैं और धर्मेंद्र यादव के साथ जमकर चुनवा प्रचार किया था.
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