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बिहार के शिक्षामंत्री से पदभार संभालते ही इस्तीफा ले लिया गया है. अगले आदेश तक शिक्षा मंत्रालय अशोक चौधरी को दे दिया गया है. मेवालाल चौधरी दलील भी दे रहे हैं कि आरोप सिद्ध नहीं हुआ है, चार्जशीट नहीं है, कोर्ट ने आदेश नहीं दिया है लेकिन दलीलों के बावजूद नीतीश से मिलकर इस्तीफा भी दे चुके हैं. अब ये तो खबर है लेकिन आप क्रोनोलॉजी समझिए. एक्शन-रिएक्शन देखिए.
अचानक, नीतीश मेवालाल को बुलाकर इस्तीफा ले ले लेते हैं. मतलब, नीतीश कुमार को अपना फैसला खुद ही वापस लेना पड़ा है-मतलब नई सरकार में नीतीश की 'नो बॉल' और बोहनी हो गई खराब.
इस क्रोनोलॉजी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? ये पूरी कवायद कह रही है कि इस बार बिहार में 'नीतीश सरकार' नहीं 'एनडीए सरकार' है और होगा वही जो 'बिग ब्रदर' बीजेपी चाहेगी. हां, ये भी है कि नीतीश कुमार खुद को इंडिपेंडेट दिखाने की कोशिश नतीजों के बाद से अबतक करते आए हैं.
वो बार-बार एक्शन के रिएक्शन में ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो वैसे ही चलेंगे जैसा पिछली सरकारों में चले थे लेकिन यहां आंकड़े उनके साथ नहीं है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इस्तीफे लेने के पीछे तर्क ये है कि नीतीश कुमार 'करप्शन' बर्दाश्त नहीं कर सकते, क्योंकि मेवालाल चौधरी पर लगे दाग तो सार्वजनिक हैं.
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि अगर नीतीश कुमार जानते ही थे कि मेवालाल चौधरी दागी विधायक हैं तो उन्हें मंत्री क्यों बनाया गया.
मेवालाल चौधरी 2015 में पहली बार जेडीयू विधायक बने थे, इससे पहले मेवालाल चौधरी बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति हुआ करते थे. इनके कुलपति रहते विश्वविद्यालय में साल 2012 में सहायक अध्यापक और जूनियर वैज्ञानिकों की बहाली हुई थी. तब ही सहायक प्रोफेसर-सह-जूनियर वैज्ञानिकों की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं को लेकर सुर्खियों में आए. ऐसे में अभी के राष्ट्रपति और तत्कालीन राज्यपाल राम नाथ कोविंद की अनुशंसा पर फरवरी 2017 में मामला दर्ज हुआ था और जांच की सिफारिश हुई थी.
जेडीयू ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था, बाद में उनकी वापसी भी हो गई थी. अब तीन दिन पहले मंत्री की शपथ लेने वाले मेवालाल चौधरी का इस्तीफा हो गया है.
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