Home News Politics बिहार चुनाव सर्वे:NDA के ‘कन्फ्यूज वोटर’ तय करेंगे राज्य की किस्मत
बिहार चुनाव सर्वे:NDA के ‘कन्फ्यूज वोटर’ तय करेंगे राज्य की किस्मत
लोकनीति-CSDS सर्वे के मुताबिक 37 फीसदी BJP वोटर नहीं चाहते हैं कि नीतीश आएं, ये वोट नतीजों पर असर डाल सकता है
आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
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लोकनीति-CSDS सर्वे के मुताबिक 37 फीसदी BJP वोटर नहीं चाहते हैं कि नीतीश सत्ता में आएं
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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लोकनीति सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के साथ इंडिया टुडे ने 20 अक्टूबर की शाम बिहार में अपने ओपिनियन पोल के नतीजे जारी किए. सर्वे बताता है कि वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लोकप्रियता में कमी के बावजूद थोड़ी बढ़त हासिल है.
इस लेख में सर्वे के नतीजों से परे कुछ सवालों का जवाब देने की कोशिश की गयी है :
ओपिनियन पोल से प्रमुख और बड़ी तस्वीर क्या निकलती है?
वो कौन से फैक्टर हैं जो अंतिम रूप से नतीजे तय करेंगे?
किस दिशा में बिहार बढ़ रहा है?
सबसे पहले सर्वे के नतीजे
किसको कितना वोट शेयर
(ग्राफिक : अरनिका काला/क्विंट)
सर्वे के मुताबिक सीटों का अनुमान
(ग्राफिक : अरनिका काला/क्विंट)
“31 फीसदी लोगों ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी पसंद बताया जबकि 27 फीसदी ने तेजस्वी यादव को.”
लोकनीति-CSDS ओपिनियन पोल
वोट करते हुए सबसे बड़ा मुद्दा
मुख्यमंत्री के तौर पर पसंद के रूप में नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव से महज चार प्रतिशत वोट की बढ़त : नीतीश कुमार को 31 प्रतिशत वोटरों ने पसंद किया है जबकि 27 फीसदी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पसंद बता रहे हैं.
24 प्रतिशत वोटरों ने कहा है कि उन्होंने फैसला नहीं किया है. 10 प्रतिशत ने खुलासा नहीं किया कि वे किसे वोट करेंगे, 14 प्रतिशत ने कहा कि वे अपना मन बदल सकते हैं.
सर्वे में शामिल 43 फीसदी लोगों ने कहा कि वे नहीं चाहते कि नीतीश कुमार फिर से सत्ता में आएं, 38 फीसदी लोग नीतीश के पक्ष में हैं और 19 प्रतिशत लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रिय बने हुए हैं. करीब 61 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे उनके प्रदर्शन से संतुष्ट हैं जबकि 35 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे असंतुष्ट हैं. 2015 में यही आंकड़ा 72 फीसदी और 23 फीसदी था. इस तरह कुल मिलाकर संतुष्ट लोगों की संख्या घटी है.
सर्वे से निकलती बड़ी तस्वीर
तेजी से घटा है फर्क
सितंबर के अंतिम सप्ताह में सी वोटर के सर्वे ने वोट शेयर के तौर पर एनडीए को 12 फीसदी की बढ़त दी थी और उसके लिए सीटों का आंकलन 141-161 दिखाया था जबकि यूपीए के लिए यह 64-84 सीटें थीं. इसी तरह तेजस्वी यादव तब नीतीश कुमार से 15 फीसदी पीछे थे.
हालांकि दोनों सर्वे की तुलना नहीं हो सकती, फिर भी यह मानना सही होगा कि तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने तेजी से अंतर को कम किया है.
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच 4 प्रतिशत का फर्क महत्वपूर्ण
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच लोकप्रियता का अंतर पिछले साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखण्ड में मुख्यमंत्री और उन्हें चुनौती देने वाले के बीच अंतर से कम है.
महज तुलना करने के ख्याल से उस अंतर को देखें जो हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखण्ड में पिछले साल हुए चुनाव से पहले दिख रहे थे. (स्रोत- सी वोटर)
हरियाणा : बीएस हुड्डा पर एमएल खट्टर की बढ़त 21 फीसदी थी
महाराष्ट्र : देवेंद्र फडणवीस अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी अजित पवार से 27 फीसदी आगे थे
झारखण्ड : रघुवर दास को ओपिनियन पोल में हेमंत सोरेन पर 5 फीसदी की बढ़त हासिल थी.
अब 21 फीसदी की बढ़त लेकर भी खट्टर बहुमत पाने में नाकाम रहे. फडणवीस का प्रदर्शन उम्मीद से फीका रहा और झारखण्ड में रघुवर दास नकार दिए गये और बीजेपी बुरी तरह पराजित हुई.
आम तौर पर सीएम चेहरे के प्रश्न पर प्री पोल सर्वे में हमेशा सत्ता में रहने वाले का प्रदर्शन बेहतर होता है. नीतीश को जो बढ़त है वह रघुवर दास से भी छोटी है. सामान्य चुनाव में बमुश्किल 4 फीसदी के अंतर का मतलब शासक वर्ग के लिए स्पष्ट रूप से हार के समान होता है.
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लेकिन, बिहार चुनाव कई वजहों से जटिल है.
वे फैक्टर जिन पर रहेगी नजर
आगे जिन वजहों की चर्चा है उनसे अंतिम नतीजे तय होंगे और यहीं ध्यान देने की जरूरत है.
भ्रम में एनडीए वोटर
इस चुनाव की चाबी ‘उधेड़बुन वाले एनडीए वोटर्स’ के बीच है. मूल रूप से ये वो वोटर हैं जो एनडीए और खासकर बीजेपी का समर्थन करते हैं लेकिन वे नीतीश कुमार को सीएम के तौर पर लौटते देखना नहीं चाहते.
सर्वे के ये चार आंकड़े इसे बहुत स्पष्ट तरीके से व्यक्त करते हैं :
58% बीजेपी वोटरों मानते हैं कि नीतीश कुमार ने अच्छा काम किया है और उन्हें दोबारा मौका मिलना चाहिए. यह जेडीयू के 80 फीसदी वोटरों के मुकाबले बहुत कम है जो ऐसा ही महसूस करते हैं.
30 प्रतिशत बीजेपी के वोटर मानते हैं कि नीतीश कुमार ने हो सकता है कि अच्छे काम किए लेकिन अब दूसरे नेताओं को मौका मिलना चाहिए. 12 फीसदी जेडीयू के वोटर भी ऐसा ही सोचते हैं.
“करीब 37 फीसदी बीजेपी वोटर महसूस करते हैं कि नीतीश कुमार को सीएम नहीं होना चाहिए.”
बीजेपी के 7 फीसदी वोटर और जेडीयू के 4 फीसदी वोटरों ने कहा है कि नीतीश कुमार ने काम नहीं किया है. इस वजह से उन्हें दोबारा अवसर देने का सवाल नहीं उठता. कुल मिलाकर करीब 37 फीसदी बीजेपी वोटर नहीं चाहते कि नीतीश कुमार दोबारा लौटें.
बीजेपी के परंपरागत 23 फीसदी वोटरों ने कहा है कि वे ‘अन्य’ का चुनाव करेंगे और 6 फीसदी ने कहा है कि वे महागठबंधन को वोट देंगे. जेडीयू के वोटरों में यह आंकड़ा क्रमश: 20 प्रतिशत और 10 प्रतिशत है. इसका मतलब यह है कि एनडीए अपने कोर वोटरों का 30 प्रतिशत बचा पाने में विफल हो रहा है.
चिराग पासवान और एलजेपी फैक्टर
ऐसा लगता है कि ‘उधेड़बुन वाले एनडीए’ वोटरों का यह महत्वपूर्ण हिस्सा चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी की ओर मुड़ता दिख रहा है. बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक रहे सवर्णों के 12 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे इस चुनाव में एलजेपी को वोट देने की योजना बना रहे हैं.
अब पूरे प्रदेश में यह 12 फीसदी है. ऐसा लगता है कि ये सभी उन सीटों पर हैं जहां जेडीयू, HAM और VIP चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए प्रतीत होता है कि उन सीटों पर सवर्ण जातियों की एकजुटता एलजेपी उम्मीदवारों के साथ है, खासकर उन लोगों की जो बीजेपी या आरएसएस की पृष्ठभूमि से हैं. यह बढ़ सकती है.
जिन सीटों पर बीजेपी नहीं है, वहां पासवान के दुसाध समुदाय के 45 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे एलजेपी को वोट देने जा रहे हैं, 35 फीसदी ने कहा है कि वे महागठबंधन को वोट करेंगे और 15 फीसदी लोगों ने एनडीए को अपनी पसंद बताया है. जहां बीजेपी चुनाव लड़ रही है वहां इसी समुदाय के 47 प्रतिशत लोग एनडीए के साथ, 18 प्रतिशत महागठबंधन और 27 प्रतिशत एलजेपी के साथ हैं.
चूंकि एलजेपी कुछेक सीटों पर ही लड़ रही है जहां बीजेपी खड़ी है इसलिए यह वोट ऐसी सीटों पर ज्यादातर एनडीए के पक्ष में मुड़ जाएगा. बहरहाल, यह स्पष्ट है कि एलजेपी अपने उम्मीदवार देकर गैर बीजेपी एनडीए उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा रही है.
क्या महागठबंधन में भी समान रूप से भ्रम की स्थिति है?
एक तरफ ऐसा लगता है कि आरजेडी पूरी तरह से नियंत्रित तरीके से आगे बढ़ रही है.
83 फीसदी परंपरागत आरजेडी के वोटर कहते हैं कि वे महागठबंधन को वोट कर रहे हैं. बीजेपी, जेडीयू या कांग्रेस के मुकाबले वोटरों के बने रहने का यह आंकड़ा सबसे बड़ा है.
विधायक स्तर पर देखें तो आरजेडी विधायकों के लिए असंतोष सबसे कम है. 32 फीसदी लोगों ने जवाब दिया कि वे अपने वर्तमान आरजेडी विधायक से काफी हद तक संतुष्ट हैं जबकि 34 फीसदी का कहना था कि वे बहुत ज्यादा असंतुष्ट हैं. 2 प्रतिशत का फर्क है. समग्र रूप में यह अंतर 12 फीसदी का है. बीजेपी और कांग्रेस विधायकों के लिए यह 16 फीसदी और जेडीयू विधायकों के लिए 17 फीसदी है.
इससे पता चलता है कि दूसरी पार्टियों के मुकाबले आरजेडी विधायकों के प्रति असंतोष कम है और इससे बड़ी संख्या में आरजेडी विधायकों को अपनी सीटें बचाने में मदद मिलेगी.
बहरहाल, सर्वे का दावा है कि महागठबंधन में कांग्रेस कमजोर कड़ी है.
कांग्रेस के 46 फीसदी वोटरों ने कहा है कि वे ‘अन्य’ को वोट करने जा रहे हैं जबकि 7 फीसदी ने कहा है कि वे एनडीए को वोट करने जा रहे हैं. 47 फीसदी ने कहा है कि वे महागठबंधन को वोट देने जा रहे हैं.
बीजेपी वोटरों में अपने पाले में बने रहने की दर कम है. इनमें से कई नीतीश कुमार से नाराज हैं.
चूंकि बड़े हिस्से ने कहा है कि वे ‘अन्य’ को वोट देंगे और एनडीए को नहीं, शायद इसका मतलब यह हो सकता है कि सवर्ण जाति का एक हिस्सा और कांग्रेस के दलित वोटर शायद एलजेपी की ओर मुड़ें और मुसलमानों के वोटरों का एक हिस्सा AIMIM की ओर जो GDSF गठबंधन का हिस्सा है.
वो वोटर जिन्होंने नहीं लिया फैसला
CSDS सर्वे के मुताबिक 10 प्रतिशत वोटरों ने अपनी प्राथमिकताओं का खुलासा नहीं किया है और कहा है कि अब तक तय नहीं कर पाए हैं कि किसे वोट दें जबकि 14 प्रतिशत ने बताया है कि वे वोट करेंगे और अपना मन बदल सकते हैं.
चूंकि दो बड़े फ्रंट के बीच वोट शेयर का फासला केवल 6 फीसदी है इसलिए अनिर्णय वाले वोटरों में यह क्षमता है कि वह किसी भी ओर बाजी पलट सकते हैं. चाहे तो महागठबंधन के पक्ष में, या फिर एनडीए की बढ़त बढ़ा दे सकते हैं.
कोविड-19 फैक्टर
कोविड-19 भी अहम फैक्टर है जिसे सर्वे में शामिल नहीं किया गया है. यह संभव है कि वोटरों का एक तबका वायरस फैलने के डर से मतदान केंद्र तक जाए ही नहीं.
चूंकि आरजेडी और बीजेपी (केवल उन सीटों पर जहां बीजेपी चुनाव लड़ रही है) के वोटरों में प्रतिबद्धता का स्तर सबसे ऊंचा है, मतदान में संभावित कमी का असर इन सीटों पर अन्य सीटों के मुकाबले कम होगा.
सामान्य समझ कहती है कि शहरी इलाकों में जहां अमीर बीजेपी वोटर हैं और जहां जेडीयू या उसके सहयोगी चुनाव लड़ रहे हैं, वहां वोट नहीं करने वालों की तादाद सबसे ज्यादा होगी.
क्या हो सकता है आगे?
आने वाले हफ्तों में कुछ चीजें हो सकती हैं.
निश्चित रूप से अनिर्णय वाले मतदाता अंतिम रूप से मतदान के दिन एक ओर होंगे और वही निर्णायक साबित होंगे.
चूंकि पीएम मोदी के लिए सबसे अधिक समर्थन है, यह संभव है कि जब वे चुनाव अभियान को आगे बढ़ाएंगे तो एनडीए को थोड़ी बढ़त मिले. चूंकि ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार भी मोदी के साथ दिख सकते हैं तो संभव है कि वे उन बीजेपी वोटरों को अपनी ओर कर सकें जो अनिर्णय की स्थिति में है या फिर एलजेपी की ओर झुके दिख रहे हैं.
24 प्रतिशत वोटर ‘अनिर्णय’ की स्थिति में हैं. चूंकि एनडीए और महागठबंधन के बीच का फर्क केवल 6 फीसदी है. यह वोट किसी ओर भी पलड़ा झुका सकता है.
किसी हद तक यह महागठबंधन में भी ऐसा हो सकता है. वे उम्मीद कर सकते हैं कि कांग्रेस को वोटर जो दूर होते दिख रहे हैं, वे राहुल गांधी के चुनाव अभियान से जुड़ने के बाद वास्तव में लौट आएं.
आम तौर पर जैसे-जैसे मतदान का समय नजदीक आता है छोटी पार्टियों से बड़ी पार्टी की ओर मतदाताओं का रुझान बढ़ता है. बहरहाल यह भी सच है कि सर्वे अक्सर ‘अन्य’ को कमतर आंकते हैं और इस वजह से यह फैक्टर खारिज हो जाता है.
कुल मिलाकर यह चुनाव बिहार की राजनीति में बड़ा ट्रेंड मजबूत कर रहा है. निकट भविष्य में राजनीति के दो बड़े महारथियों बीजेपी और आरजेडी के बीच राजनीतिक रस्साकशी दिखेगी.