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नीतीश-तेजस्वी के साथ आने के बावजूद कुढ़नी कैसे जीत गई BJP?

तेजस्वी ने लालू प्रसाद के स्वास्थ्य के नाम पर इमोशनल कार्ड भी खेला लेकिन जीत का सेहरा BJP उम्मीदवार के सिर बंधा.

विष्णु नारायण
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Kurhani By Election Result</p></div>
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Kurhani By Election Result

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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8 दिसंबर का दिन हिमाचल प्रदेश और गुजरात के साथ हिंदी पट्टी के कई महत्वपूर्ण राज्यों के लिहाज से चुनावी परिणाम का दिन था. कहीं आम चुनाव हुए तो कहीं उपचुनाव हो रहे थे. बिहार के भीतर भी मुजफ्फरपुर जिले की कुढ़नी विधानसभा में उपचुनाव के परिणाम आए. परिणाम किसी के पक्ष में आने से पहले सुबह से दोपहर तक मामला काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा.

बीजेपी का साथ छोड़ने और महागठबंधन का हिस्सा बनने के बाद यह पहला मौका था, जब बीजेपी और जदयू के उम्मीदवार आमने-सामने थे. एक ओर जहां आरजेडी ने अपनी सीटिंग सीट जदयू को लड़ने के लिए दी. वहीं खुद सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने महागठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में साझा तौर पर चुनावी सभा भी की. तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद के स्वास्थ्य के नाम पर इमोशनल कार्ड भी खेला, लेकिन जीत का सेहरा बीजेपी उम्मीदवार के सिर बंधा.

बीजेपी प्रत्याशी की प्रचार गाड़ी

बीजेपी उम्मीदवार की जीत के बाद वैसे तो बीजेपी खेमे में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. बीजेपी समर्थक अबीर-गुलाल उड़ाने के साथ ही हर-हर मोदी के नारे लगाने लगे. विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी ने बीजेपी कार्यालय में मीडियाकर्मियों से रूबरू होते हुए कुढ़नी के परिणाम को नीतीश मुक्त बिहार की शुरुआत करार दिया. उन्होंने आगे कहा-

“बीजेपी की लड़ाई महागठबंधन के बैनर पर लड़ रहे अपराधियों से थी. उन माफियाओं से थी जो लालू-नीतीश की ओर से संरक्षित बालू और शराब माफिया थे. जनता ने उनकी एक नहीं सुनी और बिहार के हित में बीजेपी के उम्मीदवार को जिताया.”

वहीं जेडीयू की ओर से पहली बड़ी प्रतिक्रिया पार्टी के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा ने दी. उन्होंने कुढ़नी के परिणाम को लेकर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा-

क्या हार में क्या जीत में

किंचित नहीं भयभीत मैं।

कर्तव्य पथ पर जो मिल

यह भी सही वो भी सही।

जदयू प्रत्याशी - मनोज कुशवाहा

कुढ़नी के परिणाम से हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. पहली सीख- “जनता हमारे हिसाब से नहीं बल्कि हमें जनता के हिसाब से चलना पड़ेगा.” - अगर उपेन्द्र कुशवाहा के स्टेटस को डिकोड करें तो हम पाएंगे कि वे कह रहे कि बड़े नेताओं के साथ आ जाने भर से सारा वोट बैंक अचानक से शिफ्ट नहीं हो जाता.

तो वहीं राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने भी परिणाम के बाद मीडिया से रूबरू होते हुए कुछ ऐसी ही बातें जरा दूसरे तरीके से कहीं. उन्होंने कहा-

“नीतीश और तेजस्वी के साथ आने के बाद वो सारी चीजें जिन्हें मर्ज करना चाहिए. शायद यह उसका प्राथमिक चरण है. कुढ़नी उपचुनाव के नतीजे को हार और जीत में देखने की जरूरत नहीं. जो जीत गए हैं वे अधिक प्रसन्न न हों. देश को जात-पात और उन्माद में झोंकने वाली विध्वंसक ताकतों के साथ संघर्ष में अंततः हमें ही विजयी होना है.”

वैसे तो पिछले महीने भी बिहार की दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे. एक था गोपालगंज और दूसरा मोकामा. गोपालगंज बीजेपी जीती तो मोकामा आरजेडी के खाते में गई. दोनों सीटें तब भी हॉटमहॉट बन गई थीं. सुर्खियों में रही थीं. ऐसा इसलिए भी हुआ था क्योंकि नीतीश कुमार अब लालू प्रसाद एंड फैमिली के बजाय बीजेपी पर हमलावर हैं. बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की बात कह रहे हैं. हालांकि तब वे इन दोनों सीटों पर चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए थे. उनके जाने या न जाने को लेकर तरह-तरह की बातें तब भी हुईं थीं.

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कौन-कौन रहा उम्मीदवार?

बात अगर उम्मीदवारों की करें तो बीजेपी ने जहां साल 2015 में इसी सीट से जीत दर्ज करने वाले केदार प्रसाद गुप्ता को अपना उम्मीदवार बनाया था, वहीं जेडीयू ने साल 2005 से 2015 तक इस सीट पर विधायक और मंत्री रहे मनोज कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया था. उपचुनाव में मुख्य लड़ाई भी इन्हीं उम्मीदवारों के बीच रही.

वीआईपी की ओर से नीलाभ उम्मीदवार रहे. तो वहीं एआईएमआईएम ने गुलाम मोहम्मद गुलाम मुर्तजा को उम्मीदवार बनाया था. इनके अलावा 9 और उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन स्वतंत्र उम्मीदवार शेखर सहनी और संजय सहनी ही यहां अपनी थोड़ी-बहुत उपस्थिति दर्ज करा सके.

किसे कितने वोट मिले?

केदार प्रसाद गुप्ता को जहां कुल 76,722 वोट मिले, वहीं मनोज कुशवाहा को 73,073 वोट मिले. हार-जीत का अंतर रहा 3,649 वोट. तीसरे नंबर पर विकासशील इंसान पार्टी के नीलाभ रहे. उन्हें 10,000 वोट मिले. एआईएमआईएम और अन्य स्वतंत्र उम्मीदवार पांच हजार का आंकड़ा भी नहीं छू सके. हालांकि नोटा को जरूर 4,446 वोट मिले.

हार और जीत के फैक्टर-

वैसे तो किसी भी क्षेत्र में चुनावी हार-जीत के पीछे कई फैक्टर काम करते हैं. जैसे उम्मीदवार के चयन से लेकर क्षेत्र का जातीय और धार्मिक समीकरण. तो कई बार स्थानीय मुद्दे प्रधान हो जाते हैं. बात अगर कुढ़नी उपचुनाव के भीतर हावी मुद्दों की करें तो दलित-बहुजन वोटरों के बीच शराबबंदी जैसे मसले को लेकर सीएम नीतीश कुमार का खासा विरोध रहा.

उनका विरोध इस बात को लेकर भी रहा कि शराबबंदी के बावजूद चारों तरफ शराब का सेवन खुलेआम जारी है. शराब की जगह पर शुरू किया गया ‘नीरा’ का कार्यक्रम पूरी तरह फेल है और सरकार ताड़ी पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर तुली है. प्रशासन के लोग शराबबंदी के नाम पर उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं. संभ्रांत तबका तो सबकुछ करते हुए भी मामला मैनेज कर लेता है, वहीं दलित-बहुजन समाज इसकी भारी कीमत चुका रहा. नीतीश कुमार का कोर वोट कही जाने वाली महिलाओं ने तो उनकी सभा में आकर भी अपना विरोध तक दर्ज कराया था.

सीएम नीतीश कुमार की सभा में शराबबंदी नीति का विरोध करती दलित-बहुजन समाज की महिलाएं

कुढ़नी के परिणाम और हार-जीत पर स्थानीय पत्रकार चंद्रप्रकाश क्विंट से बातचीत में कहते हैं,

“महागठबंधन के उम्मीदवार का व्यक्तिगत आचार-व्यवहार उनके आड़े आया. आरजेडी का कोर वोटर उनकी पुरानी बातों को भुला नहीं पाया. साथ ही मुकेश सहनी फैक्टर भी महागठबंधन के पक्ष में कारगर नहीं रहा. जबकि उनके उम्मीदवार ‘नीलाभ’ ख़ुद भूमिहार बिरादरी से थे और शराबबंदी तो है ही है. दलित-बहुजन समाज नीतीश कुमार से खासा खफा है.”

बाद बाकी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुखिया व पूर्व कैबिनेट मंत्री मुकेश सहनी कुढ़नी में हार को भी अपनी जीत बताने की कोशिश में लगे हैं. कह रहे कि निषाद वोट उनके पास ही है और बीजेपी और जेडीयू की लड़ाई के बीच वीआईपी को 10 हजार वोट मिलना भी बड़ी बात है.

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