advertisement
बिहार की राजनीति में आज शक्ति प्रदर्शन, इमोशन और कॉम्पिटिशन का दिन रहा. एक तरफ आरजेडी अपनी टीम के सबसे बड़े 'खिलाड़ी' लालू यादव (Lalu Yadav) के साथ मैदान में उतरी तो दूसरी तरफ लोक जनशक्ति पार्टी अपने सबसे बड़े नेता राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की जयंती पर असली वारिस कौन वाला मैच खेल रही है.
एक तरफ लालू अपने छोटे बेटे तेजस्वी को अघोषित अपना अत्तराधिकारी बना रहे थे तो दूसरी तरफ पशुपति पारस एलजेपी के घोषित उत्तराधिकारी चिराग के खिलाफ ही हवा चला रहे.
चलिए बात शुरू करते हैं लालू परिवार से.
करीब तीन साल बाद अपनी पार्टी RJD के नेताओं और कार्यकर्ताओं से लालू यादव रूबरू हुए. मौका था पार्टी का 25वां स्थापना दिवस. लालू यादव इलाज की वजह से अपनी बेटी मीसा भार्ती के दिल्ली वाले सरकारी घर पर हैं. वहीं लालू के दोनों बेटे पटना में मोर्चा संभाले हुए हैं. लालू यादव ने एक बार फिर अपने चिरपरिचित अंदाज में जनता को संदेश और विरोधियों को घेरने की कोशिश की. लालू ने इस दौरान अपने राजनीतिक संघर्ष को भी याद किया और फिर अपने विरोधियों पर भी जमकर बरसे.
लालू यादव की सरकार पर जंगलराज का आरोप लगता रहा है, सीएम नीतीश कुमार से लेकर बीजेपी जंगलराज के नाम पर वोट मांगती रही है. फिर क्या था लालू ने भी उन्हीं आरोपों का जवाब देना शुरू किया. लालू ने कहा,
लालू ने केंद्र सरकार पर भी तंज कसा, लालू ने कहा, "कोरोना प्रलय जैसा है. लेकिन उससे बढ़कर महंगाई और बेरोजगारी कमर तोड़ रही है. अगर हमारी सरकार में पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ते तो लोग हमें चलने नहीं देते, लेकिन आज लोग मजबूर हैं. आज पेट्रोल का दाम घी को पीछे कर रहा है."
लालू यादव की छवि सेक्यूलर नेताओं की है. जिसने 90 के दशक में राम मंदिर के लिए निकली लाल कृष्ण आडवानी की रथ यात्रा बिहार में रोक दी थी. लालू ने एक बार फिर अपने मुसलमान वोटरों को अयोध्या का जिक्र कर संदेश देने की कोशिश की कि वो और उनकी पार्टी सेक्यूलरिजम पर पीछे नहीं हटेगी. लालू ने कहा,
जहां एक तरफ लालू अपने मुसलमान वोटर को यकीन दिला रहे थे कि वो उनके मसीहा हैं वहीं बेटा तेजस्वी आरजेडी को MY यानी मुसलमान-यादव की पार्टी के अलावा A टू Z की पार्टी बता रहे थे. तेजस्वी ने मंच से कहा,
तेजस्वी ने नीतीश और बीजेपी पर भी हमला बोला. महंगाई से लेकर एनडीए गठबंधन में तकरार की बात भी कही. तेजस्वी ने कहा, "विश्व की सबसे बड़ी पार्टी (BJP) के पास एक सीएम का चेहरा नहीं था. अब दोनों (JDU-BJP) के बीच झगड़ा हो रहा है."
अब भले ही तेजस्वी नीतीश कुमार और बीजेपी के गठबंधन पर सवाल उठाएं लेकिन खुद के परिवार में भी चेहरे और उत्तराधिकारी पर खटपट जारी है. इसकी एक झलक आज के कार्यक्रम में भी दिखी जब लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने जमकर अपनी भड़ास निकाली. तेज प्रताप ने कहा, "मैं जब भी मंच पर आता हूं तो पिताजी (Lalu Yadav speech) की तरह मनोरंजन करने का काम करता हूं. संगठन में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो संगठन को आगे जाने देना नहीं चाहते हैं. मैं नाम नहीं लेना चाहता हूं, लेकिन सच्चाई लोग सुनना नहीं चाहते हैं. हम इशारे में बहुत बात बोल गए हैं, समझने वाल समझ गए हैं."
लालू परिवार ने अपने इस कार्यक्रम में MY से A टू Z पर बात तक अपनी बात पहुंचानी चाही. इसलिए ही तो लालू यादव से लेकर तेजस्वी ने राम विलास पासवान को याद किया. अब राम विलास पासवान से प्रेम दिखाने से पिछड़े तबके के वोटरों के मन में कुछ जगह तो बन ही सकती है.
अब बात पासवान परिवार की. 5 जुलाई को एलजेपी के संस्थापक राम विलास पासवान की जयंती है. लेकिन उनका परिवार और पार्टी बिखर चुकी है. राम विलास के भाई चाचा पशुपति कुमार पारस ने एलजेपी के 5 सांसदों के साथ मिलकर चिराग पासवान को अलग कर दिया है. अब चिराग अपने पिता के विरासत और पार्टी को अपने पाले में रखने के लिए लड़ रहे हैं. इसी लड़ाई को जीतने के लिए या कहें खुद को मजबूत दिखाने के लिए चिराग पासवान ने 5 जुलाई से आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत की है.
चिराग ने आशीर्वाद यात्रा से पहले कहा,
जहां एक तरफ चिराग पिता की मौत और परिवार में फूट का इमोशनल एंगल निकाल कर जनता के बीच जा रहे हैं वहीं पशुपति पारस के पास भी कहने को भाई राम विलास के नाम के सिवा कोई सहारा नहीं है. पशुपति पारस भी पटना से लेकर हाजीपुर में राम विलास की जयंती समारोह मना रहे हैं.
चिराग पासवान ने राम विलास पासवान के पुराने क्षेत्र हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत की है. एलजेपी के लिए हाजीपुर संसदीय क्षेत्र पारंपरागत सीट रही है. रामविलास पासवान इस क्षेत्र का कई बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन फिलहाल यहां से चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस सांसद हैं. हाजीपुर जाने से पहले चिराग पटना पहुंचे थे. यहां उन्हें भीम राव आंबेडकर की मूर्ति पर माल्यार्पण करना था, लेकिन ऐसा न हो सका. जिसपर चिराग नाराज होकर वहीं धरने पर बैठ गए.
आंबेडकर के सहारे पिछड़े वोटरों को संदेश देना राजनीति में पुराना तरीका रहा है. हालांकि कुछ देर आंबेडकर मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर चिराग वैशाली के लिए रवाना हुए.
बताया जाता है कि चिराग की रैली में करीब 200 से ज्यादा गाड़ियां थीं. मतलब साफ है चिराग अपने चाचा और बीजेपी दोनों को अपनी ताकत का अंदाजा कराना चाहते हैं.
अब माना जा रहा है कि बीजेपी जनता का रुझान देखना चाहती है. जनता जिसके साथ होगी उससे ही दोस्ती में भलाई है.
भले ही बिहार चुनाव को अभी 4 साल का वक्त हो लेकिन बिहार में जिस तरह से अलग-अलग राजनीतिक दल और उसके साथियों के बीच अंदुरूनी कलह नजर आ रहा है, उससे गठबंधन, शक्ती प्रदर्शन और इमोशन का तड़का काम आ सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 05 Jul 2021,10:09 PM IST