मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बिहार: महागठबंधन में सीट बंटवारे ने बताया लालू हैं 'द बॉस', पप्पू-कन्हैया के अरमानों पर पानी

बिहार: महागठबंधन में सीट बंटवारे ने बताया लालू हैं 'द बॉस', पप्पू-कन्हैया के अरमानों पर पानी

Bihar Lok Sabha Elections: बिहार महागठबंधन में लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग के क्या मायने हैं?

मोहन कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर लगी मुहर, RJD के खाते में गई पूर्णिया और बेगूसराय सीट.</p></div>
i

बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर लगी मुहर, RJD के खाते में गई पूर्णिया और बेगूसराय सीट.

(फोटो: क्विंट हिंदी/ मोहन कुमार)

advertisement

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) के लिए बिहार महागठबंधन (Bihar Mahagathbandhan) में आखिरकार सीटों का बंटवारा हो गया है. कुल 40 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 26 सीटें आरजेडी को मिली हैं. कांग्रेस 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जबकि लेफ्ट पार्टियों को पांच सीटें दी गई हैं.

'26-9-5' का फॉर्मूला, लालू परिवार का अपरहैंड

जेडीयू के महागठबंधन से निकलने के बाद माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की सीटों में बढ़ोतरी होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पिछली बार 9 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली 'ग्रैंड ओल्ड पार्टी' को इस बार भी महागठबंधन में उतनी ही सीटें मिली हैं. दूसरी तरफ आरजेडी के खाते में 65 फीसदी सीटें गई हैं. लेफ्ट पार्टियों ने पिछली बार 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, उसे भी इस बार 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है.

RJD इन 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी: औरंगाबाद, गया, जमुई, नवादा, सारण, पाटलिपुत्र, बक्सर, उजियारपुर, जहानाबाद, दरभंगा, बांका, अररिया, मुंगेर, सीतामढ़ी, झंझारपुर, मधुबनी, सीवान, शिवहर, वैशाली, हाजीपुर, सुपौल, वाल्मिकीनगर, पूर्वी चंपारण, पूर्णिया, मधेपुरा, गोपालगंज.

पिछले बार के मुकाबले इस बार आरजेडी गया, जमुई, सुपौल, उजियारपुर, पूर्णिया, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, मुंगेर, वाल्मीकिनगर, औरंगाबाद जैसी 10 नए सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

कांग्रेस इन 9 सीटों पर लड़ेगी चुनाव: किशनगंज, कटिहार, समस्तीपुर, पटना साहिब, सासाराम, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, महाराजगंज.

महागठबंधन के तहत इस बार कांग्रेस को वाल्मीकिनगर, सुपौल, पूर्णिया और मुंगेर की जगह पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, महाराजगंज जैसी नई सीटें मिली हैं.
  • 2019 में महागठबंधन के तहत पश्चिमी चंपारण RLSP को मिला था. 2014 में RJD ने अपना उम्मीदवार उतारा था. 2009 में साधु यादव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था.

  • मुजफ्फरपुर से 2019 में महागठबंधन के तहत VIP मैदान में थी. 2014 और 2009 में कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा था.

  • भागलपुर से 2019 और 2014 में RJD ने चुनाव लड़ा था. 2014 में पार्टी को जीत मिली थी, जबकि पिछले बार जेडीयू प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा था.

  • महाराजगंज में भी पिछले दो चुनावों में आरजेडी ने अपना प्रत्याशी उतारा था. 2013 उपचुनाव में आरजेडी ने जीत दर्ज की थी. लेकिन एक साल बाद बीजेपी ने कब्जा जमा लिया था.

"कांग्रेस को जो सीटें मिली हैं, उनमें से कई सीटों पर अब win win situation नहीं रहेगी. कटिहार को छोड़ सकते हैं क्योंकि वहां तारिक अनवर बड़े नेता हैं. बेगूसराय और पूर्णिया से कांग्रेस जीत सकती थी. कन्हैया और पप्पू यादव के रहने से लड़ाई और टक्कर की हो सकती थी."
रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

CPIML (लिबरेशन) को 3 सीट- आरा, काराकाट, नालंदा, CPI को बेगूसराय और CPI (M) को खगड़िया की सीट मिली है.

क्विंट हिंदी से बातचीत में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं, "कांग्रेस 9 सीट पाकर ही संतुष्ट हो गई है और कह रही है कि हमारा सम्मान बच गया कि 9 सीटें मिल गई. कांग्रेस कटिहार की सीट बचाने में सफल रही. कन्हैया को अवसर नहीं मिला. औरंगाबाद सीट नहीं मिली. "

"लालू यादव ने इस बार अपना नफा-नुकसान और सामाजिक समीकरण देखते हुए सीटों का बंटवारा किया है. RJD लोकसभा का चुनाव लड़ रही है, लेकिन ध्यान विधानसभा चुनाव पर है."

पप्पू यादव 'तीनों' खाने चित

पप्पू यादव को सबसे बड़ा झटका लगा है. सीट शेयरिंग में पप्पू यादव 'तीनों' खाने चित हो गए हैं. पूर्णिया तो हाथ से फिसला ही सुपौल और मधेपुरा भी उनके हाथ से निकल गया है. बता दें कि इन तीनों सीट से पप्पू यादव या उनकी पत्नी चुनाव लड़ चुकी हैं.

हालांकि, पप्पू यादव पीछे हटते नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने इशारों-इशारों में चुनाव लड़ने की बात कही है. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, "दुनिया छोड़ दूंगा, पूर्णिया नहीं छोड़ूंगा."

"सीमांचल की जनता कांग्रेस के झंडा से प्यार करती है और सीमांचल में कांग्रेस का झंडा स्थापित करना मेरा पहला धर्म है. हर परिस्थिति में कांग्रेस के झंडे की जीत होगी. 4 तारीख को पूर्णिया की जनता की भावनाओं के अनुकूल कांग्रेस का झंडा पूर्णिया की धरती पर फहराया जाएगा. कांग्रेस का झंडा ही पूर्णिया में रहेगा और कांग्रेस का झंडा ही स्थापित होगा."

बता दें कि अभी हाल में पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी (Jan Adhikar Party) का कांग्रेस में विलय किया था. विलय से पहले उन्होंने लालू और तेजस्वी यादव से भी मुलाकात की थी. उम्मीद जताई जा रही थी कि पूर्णिया से पप्पू यादव कांग्रेस उम्मीदवार होंगे. लेकिन आरजेडी ने पहले ही बीमा भारती को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था.

वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय ने बताया कि लालू यादव ने पप्पू यादव को मधेपुरा से चुनाव लड़ने और अपनी पार्टी का RJD में विलय करने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन, पप्पू यादव ने ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया और कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया. इसके बाद से पूर्णिया सीट को लेकर पेंच फंसा था.

बता दें कि पप्पू यादव 1991, 1996 और 1999 में पूर्णिया, फिर 2004 और 2014 में मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

बिहार के 'लेनिनग्राद' से कन्हैया का पत्ता साफ!

बिहार के 'लेनिनग्राद' नाम से मशहूर बेगूसराय सीट CPI के खाते में गई है. 2019 में कन्हैया ने CPI के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था. 22.03 फीसदी वोटों के साथ वो दूसरे पायदान पर रहे थे. जबकि बीजेपी के गिरिराज सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी. उन्हें 56 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे.

2021 में कन्हैया CPI छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इस बार जोर-शोर से चर्चा थी कि इस सीट से कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार फिर ताल ठोकेंगे. लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है.

महागठबंधन के तहत CPI को एक सीट ही मिली है. बेगूसराय को कम्युनिस्टों का गढ़ कहा जाता है. दूसरी तरफ ये CPI की परंपरागत सीट भी रही है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक अवधेश राय यहां से महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे.

बेगूसराय में 7 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें से चार पर महागठबंधन का कब्जा है. तेघड़ा और बखरी में CPI के विधायक हैं. वहीं तीन सीट पर एनडीए के विधायक हैं.

कांग्रेस को सुपौल और औरंगाबाद भी नहीं मिला

साल 2008 में परिसीमन के बाद सुपौल संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में आया था. 2009 में यहां पहला लोकसभा चुनाव हुआ था. तब से अब तक इस सीट पर कांग्रेस पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन को अपना उम्मीदवार बनाती आई है. 2009 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 2014 में मोदी लहर के बावजूद उन्होंने जीत दर्ज की थी.

सुपौल से कांग्रेस बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले और 'युवा हल्ला बोल' के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम को टिकट दे सकती थी. लेकिन, अब आरजेडी यहां से अपना उम्मीदवार उतारेगी.

'बिहार का चितौड़गढ़' कही जाने वाली औरंगाबाद सीट भी आरजेडी के ही खाते में गयी है. राजपूत बाहुल्य इस सीट पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है. जानकारों की मानें तो इस बार कांग्रेस ने इस सीट को लेने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की.

वहीं मीरा कुमार के बेटे की सीट काराकाट पर कांग्रेस-आरजेडी में पेंच फंसा हुआ था. हालांकि, अब वो सीट CPIML (लिबरेशन) को मिल गई है. दूसरी तरफ मीरा कुमार ने इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. वो सासाराम से चुनाव में खड़ी नहीं होंगी.

तेजस्वी के लिए रास्ता बनाने की कोशिश?

महागठबंधन में जिस तरह से सीट शेयरिंग हुई है, इसके बाद कहा जा रहा है कि आरजेडी ने तेजस्वी यादव के लिए आगे का रास्ता तैयार करने की कोशिश की है. दूसरे इसे उन नेताओं को साइड लाइन करने के रूप में भी देखा जा रहा है, जो आगे चलकर तेजस्वी को चुनौती दे सकते हैं. बेगूसराय, पूर्णिया, सुपौल, काराकाट सीट कांग्रेस को नहीं देना सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है.

वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं, "यह साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि RJD ने कांग्रेस को पूरी तरह से बैकफुट पर धकेल दिया है. इसे RJD या फिर लालू की मनमानी कह लीजिए, ये सब इसलिए हो रहा क्योंकि तेजस्वी को आगे करना है."

वहीं अरुण पांडेय कहते हैं,

"लोकसभा चुनाव में लालू के पास खोने के लिए इसबार कुछ नहीं है. इस बार उनके पास शून्य से शिखर पर पहुंचने का मौका है. जो उन्हें मिलेगा वो बोनस ही होगा."

इसके साथ ही वो कहते हैं, "NDA के पास जो 39 सीटें हैं उसे रिटेन करना उसके लिए भी बड़ी चुनौती है. नीतीश के इधर आने से NDA की स्थिति थोड़ी सुधरी है. पिछड़ों की गोलबंदी टूटी है. लेकिन नीतीश की अब वैसी छवि नहीं रह गई है."

बहरहाल, अब सबकी निगाहें महागठबंधन के उम्मीदवारों पर टिकी है. कांग्रेस कन्हैया को अब कहां से टिकट देती है ये देखना होगा. वहीं पूर्णिया में किसका संकल्प पूरा होगा ये तो वक्त ही बताएगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT