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NDA में शामिल TDP, आंध्र में चंद्रबाबू-पवन कल्याण का BJP संग गठबंधन 'मजबूरी' या 'जरूरी'?

BJP TDP Alliance: चंद्रबाबू आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के लेकर 2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी से अलग हो गये थे.

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>NDA में शामिल होगी TDP? आंध्रा में जगन की जगह चंद्रबाबू क्यों BJP की पसंद? </p></div>
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NDA में शामिल होगी TDP? आंध्रा में जगन की जगह चंद्रबाबू क्यों BJP की पसंद?

(फाइल फोटो PTI/ अल्टर्ड बाय क्विंट हिंदी)

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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) से पहले केंद्र की सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी अपना कुनबा बढ़ाने में जुटी है. एनडीए के मिशन 400 प्लस को लेकर आए दिन नए साथी गठबंधन का हिस्सा बन रहे हैं. इस बीच, बीजेपी की एक पुरानी सहयोगी टीडीपी भी 'कमल' पर सवार हो गयी है.

टीडीपी के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू ने इसे "देश और आंध्र प्रदेश के लिए विन-विन स्थिति बताते हुए शनिवार, 9 मार्च को कहा कि उनकी पार्टी, बीजेपी और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी (जेएसपी) ने आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया है.

हालांकि, गठबंधन को लेकर कई सवाल हैं, जैसे-

  • BJP, TDP-JSP गठबंधन की चर्चा क्यों हो रही थी?

  • गठबंधन 'मजबूरी' या 'जरूरी'?

  • जगन की जगह चंद्रबाबू BJP की पसंद क्यों बने?

  • नंबर गेम में किसकी क्या स्थिति है?

  • सीट-शेयरिंग का क्या फॉर्मूला हो सकता है?

आइये इन सवालों के जवाब तलाशते हैं.

BJP, TDP-JSP गठबंधन की चर्चा क्यों हो रही थी?

पिछले करीब एक साल से लगातार मीडिया में ये खबर सामने आती रही हैं कि टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लगातार दिल्ली में बीजेपी नेताओं के संपर्क में हैं. वो लोकसभा और विधानसभा चुनाव को लेकर भगवा दल के साथ हाथ मिलाना चाहते हैं.

गुरुवार (7 मार्च को चंद्रबाबू नायडू का दिल्ली दौरा किया और इस दौरान उनकी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी चीफ अमित शाह से मुलाकात हुई.

दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के बीच सीट शेयरिंग को लेकर देर रात तक आखिरी दौर की बातचीत हुई. अब समझौते पर मुहर लगने की घोषणा करते हुए टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि यह गठबंधन राज्य में विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करेगा, जो लोकसभा चुनावों के साथ-साथ होने की उम्मीद है.

इसके अलावा खुद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्वीट करते हुए कहा कि मैं चंद्रबाबू नायडू और पवन कल्याण के एनडीए परिवार में शामिल होने के फैसले का तहे दिल से स्वागत करता हूं. माननीय पीएम नरेंद्र मोदी जी के गतिशील और दूरदर्शी नेतृत्व के तहत, बीजेपी, टीडीपी और जेएसपी देश की प्रगति और राज्य और आंध्र प्रदेश के लोगों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं.

गठबंधन 'मजबूरी' या 'जरूरी'?

दरअसल, गठबंधन करना बीजेपी, टीडीपी और जेएसपी तीनों के लिए मजबूरी या कहें जरूरी दोनों है. आंध्र प्रदेश में बीजेपी अभी तक अपने पांव पसार नहीं पाई है और उसे लोकसभा चुनाव में मिशन 370 के लक्ष्य को छूने के लिए दक्षिण के इस राज्य में अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी है.

वहीं, टीडीपी भी पिछले पांच वर्षों से आंध्र प्रदेश की सत्ता से बाहर है और उसका पिछले लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. इसके अलावा पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू पर जारी कथित भ्रष्टाचार के मामले भी पार्टी के लिए चिंताजनक बने हुए हैं.

राज्य में बीजेपी भले ही मजबूत नजर न आए लेकिन उसकी संगठनात्मक ताकत टीडीपी के लिए लाभदायक साबित हो सकती है. इसके अलावा, टीडीपी को बीजेपी के साथ जाने से मनौवैज्ञानिक बढ़त भी मिलेगी कि केंद्र उसके साथ है, जो उसको जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी से मुकाबला करने के लिए अहम है.

पवन कल्याण की जेएसपी भी अब तक प्रदेश में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है. ऐसे में कल्याण चाहते हैं कि उनकी पार्टी का आंध्र और तेलंगाना में भी कुछ कदम बढ़े. इसलिए वो पुरजोर कोशिश कर रहे थे कि बीजेपी-टीडीपी का गठबंधन हो.

जेपी नड्डा के साथ पवन कल्याण.

(फोटो: पवन कल्याण/X)

सूत्रों की मानें तो, आंध्र प्रदेश बीजेपी का नेतृत्व टीडीपी के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं था लेकिन पवन कल्याण ही, बीजेपी और टीडीपी को एक टेबल पर बैठाने में सफल हुए हैं. क्योंकि जेएसपी और टीडीपी का गठबंधन पहले से है, ऐसे में पवन कल्याण लगातार बीजेपी के साथ गठबंधन की वकालत कर रहे थे.

अमित शाह के साथ पवन कल्याण

(फोटो: पवन कल्याण/X)

जगन की जगह चंद्रबाबू BJP की पसंद क्यों बने?

बीजेपी और टीडीपी गठबंधन की चर्चा जब से शुरू हुई है, तब से ये सवाल लगातार उठ रहा है कि जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी का क्या होगा, जिसके संबंध बीजेपी के साथ अब तक सार्वजनिक तौर पर बेहतर रहे हैं.

आंध्र प्रदेश की सत्ता में आने के बाद से जगन अब तक नवीन पटनायक की राह पर चलते नजर आए हैं. वो न तो बीजेपी की आलोचना करते हैं और न ही अब तक विपक्षी गठबंधन 'INDI' ब्लॉक का हिस्सा बने हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी के साथ आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी.

(फोटो: जगन मोहन रेड्डी/X)

बीजेपी को पिछले पांच वर्षों में जब भी किसी बिल को लेकर राज्यसभा या फिर कहें किसी चुनाव में जगन की जरूरत पड़ी है, तो वो बिना किसी संदेह के भगवा पार्टी को समर्थन करते नजर आए हैं. लेकिन बावजूद इसके बीजेपी जगन की जगह चंद्रबाबू को चुना है. सवाल है कि आखिर क्यों?

दरअसल, भ्रष्टाचार के मामले में चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी दोनों एक ही नाव पर सवार हैं. दोनों पर कथित भष्टाचार के कई मामले लंबित हैं. चंद्रबाबू तो पिछले साल एक महीने से भी अधिक समय तक जेल में भी रह चुके हैं. लेकिन फिर भी बीजेपी ने उनके साथ गठबंधन किया. वजह है 'वोट' और पुराना साथ.

जानकारी के अनुसार, जगन मोहन रेड्डी की स्थिति आंध्र प्रदेश में मौजूदा समय में अच्छी नहीं है. पार्टी की आंतरिक गुटबाजी और कैडर दोनों लगातार कमजोर हुए हैं. राज्य की सत्ता में आने के बाद जगन मोहन रेड्डी ने पांच डिप्टी सीएम बनाए थे, जिसकी खूब चर्चा भी हुई.

जानकार बताते हैं कि पांच डिप्टी सीएम बनाने के बाद अब जगन की पार्टी में कई पॉवर सेंटर बन गये हैं, जिससे YSRCP कमजोर हुई है. इस बात को बीजेपी भली-भांति समझती भी है. पार्टी को लगता है कि वाईएसआरसीपी से हाथ मिलाने से भविष्य में बीजेपी को कई मोर्चों पर जूझना पड़ेगा.

वहीं, जगन मोहन के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर भी नजर आ रही है. इसके अलावा सीट शेयरिंग भी एक बड़ा मुद्दा है.

एक कार्यक्रम के दौरान जगन मोहन रेड्डी.

(फोटो: जगन मोहन रेड्डी/X)

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बीजेपी से जुड़े सूत्रों की मानें तो, "जगह के साथ जानें से भविष्य में पार्टी को नुकसान हो सकता था, जबकि टीडीपी को लेकर आंध्र में बेहतर माहौल है. पार्टी जानती है कि मजबूरी के तहत टीडीपी हमें ज्यादा सीटों पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने देगी जबकि वाईएसआरसीपी के साथ ऐसा नहीं होगा. अगर हम उनके साथ जाते हैं तो हमें कम सीटों पर समझौता करना होगा, जो पार्टी के विस्तार और टारगेट दोनों के लिए सही नहीं है."

इन सबके बीच, चंद्रबाबू नायड़ू का गिरता स्वास्थ्य भी एक वजह है, जो बीजेपी के पक्ष में जा रहा है. राजनीतिक जानकारों की मानें, चंद्रबाबू की स्थिति को देखकर लगता है कि ये उनका आखिरी चुनाव होगा. ऐसे में बीजेपी का भविष्य में आंध्र प्रदेश में पैर पसारना आसान हो जाएगा. क्योंकि राज्य की जनता के पास फिर बहुत राजनीतिक दलों का विकल्प भी नहीं बचा होगा. क्योंकि जिस तरह से जगन सियासी तौर पर कमजोर हो रहे हैं, वो वाईएसआरसीपी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.

बहन वाई एस शर्मिला रेड्डी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद जगन की स्थिति और भी कमजोर हो गई है.

वाई एस शर्मिला रेड्डी को कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश का अध्यक्ष बनाया है.

(फोटो: कांग्रेस)

वहीं, बीजेपी के टीडीपी के साथ जाने की वजह ये भी है कि दोनों पुराने साथी हैं. आंध्र प्रदेश (तेलंगाना बनने से पहले) में एनटी रामा राव के समय से ही बीजेपी, टीडीपी के साथ रही है. जिस वक्त बीजेपी का आंध्र में अस्तित्व भी नहीं था, उस वक्त एनटीआर भगवा दल के साथ गए थे. ऐसे में पुराने साथी के साथ आने से बीजेपी को ज्यादा फायदा नजर आ रहा है, जिसका लाभ बीजेपी को लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों में मिलने की उम्मीद है.

हाल के आए मीडिया सर्वे में भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि आंध्र प्रदेश में टीडीपी को लाभ मिल रहा है जबकि जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी को बड़ा नुकसान संभव है.

नंबर गेम में किसकी क्या स्थिति है?

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और टीडीपी साथ मिलकर लड़े थे, उस वक्त 40% से अधिक वोट शेयर के साथ टीडीपी ने राज्य की 25 सीटों में से 15 सीटें जीतीं थी जबकि बीजेपी 7% वोट शेयर के साथ 2 सीटें जीतीं थी. वहीं, वाईएसआरसीपी 45.7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 8 सीट जीतने में सफल हुई थी.

इसके पांच वर्ष बाद 2019 के आम चुनाव से पहले केंद्र सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को पूरा नहीं करने को लेकर चंद्रबाबू नायडू ने गठबंधन तोड़ दिया था.

India Votes के अनुसार, 2019 में आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 22 पर वाईएसआरसीपी और 3 पर चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को जीत मिली थी. इस दौरान दोनों दलों का वोट शेयर क्रमश: 49.9% और 40.2 प्रतिशत था. जबकि बीजेपी का वोट शेयर एक प्रतिशत के करीब था. यानी 2014 की तुलना में टीडीपी का वोट शेयर तो बना रहा लेकिन उसे सीटों का नुकसान हुआ जबकि बीजेपी का वोट शेयर और सीट दोनों घट गया.

वहीं, 2009 के लोकसभा चुनाव में जब आंध्र प्रदेश का बंटवारा नहीं हुआ था और तेलंगाना इसमें शामिल था, तो उस वक्त राज्य में लोकसभा की 42 सीट थी. तब कांग्रेस 39 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 33 सीट जीतने में सफल हुई थी जबकि टीडीपी को 6, टीआरएस को 2 और AIMIM को एक सीट मिली थी. उस वक्त बीजेपी का चुनाव में खाता भी नहीं खुला और पार्टी का वोट शेयर 3.8 प्रतिशत था. यहां गौर करने वाली बात यह है कि उस वक्त जगन मोहन कांग्रेस में ही थे.

अगर बात विधानसभा चुनाव की जाए तो 2009 में 294 सीटों में 156 पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. इसके बाद 2014 में बीजेपी, टीडीपी और जेएसपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, उस वक्त 175 सीट में से 106 सीट पर गठबंधन को जीत मिली, इसमें टीडीपी को 102 और बीजेपी को चार सीट पर जीत मिली, जिसके बाद चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बनें थे. इस चुनाव में वाईएसआरसीपी को 67 सीट पर जीत मिली थी.

इसी के साथ तेलंगाना के भी विधानसभा चुनाव हुए थे जिसमें टीडीपी 15 और बीजेपी 5 सीट जीती थे, जबकि 2019 विधानसभा चुनाव में 151 सीट पर वाईएसआरसीपी, 23 पर टीडीपी और एक पर जेएसपी को जीत मिली थी, बीजेपी का चुनाव में खाता भी नहीं खुला था.

सीट-शेयरिंग का क्या फॉर्मूला होगा ?

इंडियन एक्सप्रेस ने चंद्रबाबू नायडू के एक करीबी नेता के अनुसार बताया, "बीजेपी ने 7-8 लोकसभा सीटें और 15 विधानसभा सीटें मांगी हैं. हमने उन्हें 4 लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों की पेशकश की. इस संबंध में विचार विमर्श किया जाएगा."

टीडीपी के एक सूत्र ने कहा कि बीजेपी विशाखापत्तनम, अराकू, विजयवाड़ा, राजमुंदरी, राजमपेट, तिरूपति और हिंदूपुर लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है. “वे (बीजेपी) विधानसभा सीटों की संख्या कम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन लोकसभा सीटों पर जोर दे रहे हैं."

हालांकि,गठबंधन से सूत्रों की मानें तो समझौते के तहत टीडीपी 17, बीजेपी 6 और जेएसपी 2 लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ेगी

टीडीपी-जेएसपी गठबंधन ने पिछले महीने विधानसभा चुनावों के लिए 99 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी, जहां यह घोषणा की गई थी कि जेएसपी 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. 57 सीटों के लिए उम्मीदवारों को रोक दिया गया था क्योंकि दोनों दल बीजेपी के फैसले का इंतजार कर रहे थे.

पवन कल्याण और चेंद्रबाबू एक-दूसरे के साथ नजर आ रहे हैं.

(फोटो: TDP/X)

कुल मिलाकर देखें तो साफ है कि बीजेपी और टीडीपी का साथ मिलना जरूरी और मजबूरी दोनों है. 2014 में मिली सफलता के बाद दोनों एक बार फिर उसी प्रदर्शन को 2024 में दोहराना चाहते हैं. हालांकि, चुनाव नतीजों के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी की दोनों के साथ मिलकर लड़ने का क्या असर हुआ है.

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