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जिसकी चर्चा इतने समय से चल रही थी, वो आखिर हो ही गया. कांग्रेस विधायक दल की बैठक की घोषणा के 24 घंटे से भी कम समय बाद, 18 सितंबर को कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है.
48 विधायकों के कथित तौर पर पार्टी आलाकमान को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग करने के बाद से ही इस्तीफे कि अफवाहें आने लगी थीं. इसके चलते पंजाब के पार्टी प्रभारी हरीश रावत ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई.
पंजाब में कांग्रेस पर कैप्टन का बहुत कर्ज है. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कांग्रेस से उनके इस्तीफे से सिखों के बीच उन्हें काफी सम्मान मिला. हालांकि, कुछ साल बाद वो वापस कांग्रेस में लौट आए, लेकिन 1980 और 1990 के दशक के उस दाग से वो लगभग अछूते रहे, जिसने पंजाब में सिखों के बीच पार्टी की साख को काफी नुकसान पहुंचाया था.
कैप्टन की अप्रूवल रेटिंग उनके कार्यकाल के मुश्किल से दो साल में ही गिरने लगी. 2019 की शुरुआत में, CVoter ट्रैकर के मुताबिक, कैप्टन की अप्रूवल रेटिंग 19 फीसदी थी और 2021 की शुरुआत में ये गिरकर 9.8 फीसदी हो गई. लेटेस्ट ट्रैकर के मुताबिक, उनकी अप्रूवल रेटिंग अब नेगेटिव में है.
भ्रष्टाचार विरोधी सरकार का वादा कभी पूरा नहीं हुआ. ड्रग्स, रेत-खनन और केबल माफिया जो SAD-BJP शासन की एक विशेषता थी, कैप्टन के कार्यकाल में भी जारी रही. ये तब भी हुआ, जब कैप्टन ने गुटखा साहिब की शपथ ली कि वो ड्रग माफिया पर नकेल कसेंगे.
बरगारी में 2015 की बेअदबी की घटनाओं और बाद में महल कलां में प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की SIT रिपोर्ट को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद इस साल कैप्टन की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट हुई.
कैप्टन अमरिंदर पर नौकरी देने और बेरोजगारी भत्ता देने जैसे अपने अन्य चुनावी वादों को पूरा न करने का भी आरोप लगाया गया था. जमीनी हालात ये भी बताते हैं कि बुजुर्गों के लिए 1500 रुपये मासिक पेंशन के पात्र कई लोगों को या तो 750 रुपये मिल रहे थे या कुछ मामलों में तो कुछ भी नहीं मिल रहा था.
कैप्टन अमरिंदर के मुख्यमंत्री कार्यकाल को कई समूहों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है, जैसे सरकारी कर्मचारियों से लेकर पारा-टीचर्स, किसानों, आशा वर्कर्स, बेरोजगार युवाओं, दलित समूहों आदि.
हाल ही में आया कैप्टन का बयान कि किसानों का विरोध पंजाब की आर्थिक स्थिति और विकास को नुकसान पहुंचा रहा है, कैप्टन का किसानों के गुस्से से न जुड़ने का संकेत था.
कैप्टन के खिलाफ सबसे बड़ी शिकायतों में से एक थी कि उन तक पहुंच पाना मुश्किल है. उन्हें शायद ही कभी विधायकों से मिलते या जनता तक पहुंचते देखा गया और वो ज्यादातर मोहाली के पास अपने फार्महाउस से ही काम-काज संचालित करते थे.
कैप्टन को हमेशा से पंजाब कांग्रेस के भीतर गुटबाजी का सामना करना पड़ा है. इससे पहले उनके प्रतिद्वंद्वी राजिंदर कौर भट्टल और प्रताप सिंह बाजवा थें. लेकिन मौजूदा कार्यकाल में उनकी खींचतान मुख्य रूप से अमृतसर पूर्व से कांग्रेस विधायक और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू से रही है, जो 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए थे.
कैप्टन के कई पूर्व वफादारों ने भी उनका साथ छोड़ दिया. उदाहरण के लिए तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखजिंदर रंधावा और सुखबिंदर सरकारिया जैसे नेता - जिन्हें एक साथ ‘माझा एक्सप्रेस’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि वे इस क्षेत्र से आते हैं. माझा एक्सप्रेस ने कैप्टन को बाजवा के खिलाफ गुटीय संघर्ष जीतने में मदद की थी.
लेकिन इस बार उन्होंने भी कैप्टन का साथ छोड़ दिया क्योंकि उन्हें एहसास हो गया था कि अगर कैप्टन के साथ बने रहे तो वो हार सकते हैं. अब वो पंजाब कांग्रेस के सत्ता संघर्ष में सिद्धू के सबसे प्रबल समर्थक हैं.
कैप्टन की गिरती लोकप्रियता कांग्रेस आलाकमान के राज्य इकाइयों के प्रति अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय दृष्टिकोण के अनुरूप दिखती है. पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस नेतृत्व ने तेलंगाना में रेवंत रेड्डी, महाराष्ट्र में नाना पटोले और केरल में के सुधाकरन जैसे बेहद सक्रिय राज्य इकाई अध्यक्षों को नियुक्त किया है.
याद रहे कि कैप्टन के पास अभी भी अपने पीछे समर्थकों की फौज है. मतदाताओं के एक बड़े हिस्से द्वारा पहली पसंद न होने के बावजूद कैप्टन पुराने हिंदू मतदाताओं में लोकप्रिय हैं. ये वे वोटर्स हैं जो राज्य स्तर पर या तो बीजेपी या कांग्रेस को पसंद करते हैं और मुखर सिख नेताओं से सावधान रहते हैं. कैप्टन के पीछे हटने के बाद भी कांग्रेस इस तबके को कैसे अपने साथ बनाये रखती है, यह देखना अहम होगा.
दूसरा कि कैप्टन के पास अभी भी विधायकों और प्रशासन में वफादारों का एक हिस्सा साथ है. देखना होगा कि क्या उनका उत्तराधिकारी सभी गुटों को साथ लेकर पार्टी के अधूरे वादों को पूरा कर पाएगा.
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Published: 18 Sep 2021,06:54 PM IST