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देश की राजनीति में 'चाय पर चर्चा' के बाद 'पकौड़े पर बहस' शुरू हो चुकी है. सर्दियों के मौसम में गरमागरम पकौड़े किसे पसंद नहीं है, लेकिन इस राजनीतिक 'पकौड़े' पर बहस के बाद सर्दियों में संसद गरमा रही है. साथ ही सड़क पर भी इसकी गरमाहट देखने को मिल रही है.
सोमवार को राज्यसभा में बीजेपी अध्यक्ष ने अपने पहले भाषण में कहा कि 'पकौड़ा बेचना कोई शर्म की बात नहीं है, चाय वाला देश का प्रधानमंत्री बन गया, तो पकौड़े वाले की तीसरी पीढ़ी भी जब आएगी तो वो बेरोजगार नहीं होगी'. वहीं क्विंट से खास बातचीत में पी चिदंबरम ने कहा है कि पकौड़ा बेचना सम्मान का काम है पर वो नौकरी नहीं है, उसे जॉब नहीं कहा जा सकता.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम का जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा-मैंने चिदंबरम साहब का ट्वीट पढ़ा था कि मुद्रा बैंक के साथ किसी ने पकौड़े का ठेला लगा दिया, इसको रोजगार कहते हैं? हां मैं मानता हूं कि भीख मांगने से तो अच्छा है कि कोई मजदूरी कर रहा है. उसकी दूसरी पीढ़ी आगे आएगी तो उद्योगपति बनेगी. पकौड़े वाले की तुलना भिखारी से करना बेहद शर्मनाक बात है.
पकौड़े पर इस बहस को आगे बढ़ाते हुए चिदंबरम ने क्विंट से कहा, नौकरी की परिभाषा में पकौड़ा बेचना फिट नहीं होता, क्या ग्रेजुएट पकौड़ा बेचने में खुश है? पकौड़ा इसलिए बेच रहे हैं क्योंकि उनके पास नौकरी नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में नौकरी से जुड़े सवाल में पकौड़ा बेचने का जिक्र किया था. इस बयान के बाद से ही सोशल मीडिया और देश के कई इलाकों में राजनीतिक पार्टियों, छात्रों और लोगों ने विरोध किया. विरोध करने वालों का कहना है कि पकौड़ा बेचने को रोजगार नहीं कहा जा सकता है.
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