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संडे व्यू : हक दो बेखौफ जीवन का, मोदी को हराना नामुमकिन नहीं

पढ़ें नामचीन लेखकों पी चिदंबरम, टीएन नाइनन, करन थापर, रामचंद्र गुहा, तवलीन सिंह के विचारों का सार.

क्विंट हिंदी
पॉलिटिक्स
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<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू में पढ़ें नामचीन लेखकों के विचारों का सार</p></div>
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संडे व्यू में पढ़ें नामचीन लेखकों के विचारों का सार

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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बेखौफ जीने का दो हक

पी चिदंबरम (P Chidambaram) ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि बिलकिस बानो (Bilkis Bano) ने कम शब्दों में बड़ा सवाल उठाया है कि उन्हें बिना डर के जीने का अधिकार है. पुरुषों की भीड़ ने बिलकिस के साथ बलात्कार किया, परिवार के 7 लोगों को आंखों के सामने मार डाला, बेटी की जान ली. अब 20 साल बाद उन वहशी दरिंदों को जेल से रिहा कर दिया गया है. 10 लोगों के पैनल ने बलात्कारियों को संस्कारी माना. जेल से बाहर निकलने पर उनका सत्कार किया गया, टीका-चंदन और आरती की गयी.

चिदंबरम लिखते हैं कि पत्रकार खौफ में हैं. नौकरी का डर उन्हें सताता है. गलत आदेश को भी मानने को वे बाध्य रहते हैं. मीडिया मालिकों को विज्ञापन बंद होने का डर सताता रहता है. बैंकर बड़ा कर्ज देने के अनुरोधों पर फैसला करने के बजाए अपने रिटायर होने का इंतजार करते हैं. अधिकारी कितने खौफ में हैं, इसे समझना हो तो इस उदाहरण से समझें कि एक अधिकारी ने तारीफ की उम्मीद में कह दिया कि जिस प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है वह अर्थशास्त्र के हिसाब से ठीक नहीं है तो उसका तबादला कर दिया गया. आइएएस और आइपीएस अब बेइज्जती से बचने के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का विकल्प नहीं चुनते.

चिदंबरम लिखते हैं कि सांसद डरे हुए हैं. चाहकर भी वे विरोध नहीं रख पा रहे हैं. मंत्रियों ने अपने सचिवों के साथ तालमेल बना लिया है जिन्हें रोजाना पीएमओ या कैबिनेट सचिवालय से निर्देश मिलते हैं. कारोबारी और व्यापारी भी खौफ में हैं. नागरिकों को अपराध, भीड़ हिंसा, पुलिस ज्यादती और झूठे मुकदमों का खौफ सताता रहता है. अपने चयन को लेकर बेरोजगार छात्र सशंकित हैं. आम लोग महंगाई में जी रहे हैं, रोजगार छूट रहे हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है. 2017 से 2022 के बीच 2.10 करोड़ महिलाएं श्रम बल से बाहर हुई हैं. सभी खौफ में हैं.

मोदी को हराना नामुमकिन नहीं

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि गुलाम नबी आज़ाद के नाटकीय इस्तीफे के बाद कांग्रेस में होने जा रहे महत्वपूर्ण बदलाव शायद भारतीय लोकतंत्र के लिए अहम साबित होने वाले हैं. यह दो अहम तथ्यों पर आधारित हैं. एक यह कि कांग्रेस अपना अध्यक्ष चुनने जा रही है और कहा जा रहा है कि गांधी परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ेगा. ऐसे में मजबूत, विश्वसनीय और शायद लोकप्रिय राष्ट्रीय विपक्ष का उदय हो सकता है. दो मान्यताओं पर यकीन किया जा सकता है. कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से होगा और यह सबके लिए समान अवसर के साथ होगा. नये अध्यक्ष को यह अधिकार होगा कि वह स्वतंत्र होकर कांग्रेस में जरूरी बदलाव ला सके. गांधी परिवार उसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे. आज़ाद के इस्तीफे के बाद यही वो तरीका है जिससे कांग्रेस बच सकती है.

करन थापर लिखते हैं कि 2024 में बीजेपी को हराया जा सकता है. नयी कांग्रेस अपने नये अध्यक्ष के नेतृत्व में नतीजों को तय कर सकते हैं. इंडिया टुडे के हाल के सर्वे ‘मूड ऑफ द नेशन’ से इसका अंदाजा लगता है. इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर भारतीय जनता में गहरी चिंता झलकती है. हममें से ज्यादातर लोगों की यही चिंता है. 69 फीसदी लोग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता आर्थिक मोर्चे पर है.

57 फीसदी लोग मानते हैं कि स्थिति खराब हुई है. ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो मानते हैं कि स्थिति बेहतर हो पाएगी. 67 फीसदी लोग मानते हैं कि मोदी के आने के बाद से आर्थिक स्थिति बदहाल हुई है या फिर स्थिति में बदलाव नहीं आया है. केवल 28 फीसदी लोग मानते हैं कि आर्थिक हालात सुधरे हैं. इससे आगे बेरोजगारी के सवाल पर 73 फीसदी लोग मानते हैं कि स्थिति बहुत गंभीर हुई है या गंभीर हुई है. 60 फीसदी लोगों का मानना है कि उनके घरेलू हालात या तो खराब हुए हैं या उसमें कोई सुधार नहीं हुआ है. पूर्व शैफोलोजिस्ट योगेंद्र यादव कहते हैं कि संदेश स्पष्ट है- अर्थव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, अर्थव्यवस्था.

चिप निर्माण में आने को भारत ने कसी कमर

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि चिप निर्माण की वैश्विक होड़ में भारत भी शामिल हो रहा है. औद्योगिक नीति के क्षेत्र में यह भारत की बहुत पुरानी महत्वाकांक्षा है. मुक्त व्यापार का सिलसिला शुरू होने के बाद से सरकार निर्देशित नीतिगत हस्क्षेप का युग चला गया था लेकिन कोविड और यूक्रेन युद्ध के बाद इसकी वापसी होती दिख रही है. वैश्विक चिप आपूर्ति में आधे से अधिक का हिस्सेदार है ताइवान और अगर चीन उस पर हमला करता है तो यह विशेष स्थिति होगी.

नाइनन लिखते हैं कि अमेरिका ने चिप निर्माण क्षेत्र में 52 अरब डॉलर के प्रोत्साहन की घोषणा की है. यूरोपीय संघ पहले से की गयी पेशकश में 30 अरब डॉलर का इजाफा कर चुका है. चीन ने चिप निर्माण पर 15 अरब डॉलर की सब्सिडी देने की घोषणा की है. सैमसंग की नयी चिप फैक्टरियों में वह 200 अरब डॉलर का निवेश करने जा रहा है.

क्या भारत ऐसे में हाथ पर हाथ धरे बैठा रह सकता है? लेखक परस्पर निर्भरता पर जोर देते हैं. अमेरिका लॉजिक चिप डिजाइन में सबसे आगे है तो दक्षिण कोरिया मेमोरी चिप निर्माण में. इंटेल तथा अन्य कंपनियां वैफर फैब्रिकेशन ताइवना से आउटसोर्स करती हैं. नैनो तकनीक पर काम करते हुए बढ़त लेने की स्पर्धा चल रही है. चिप निर्माण में भारत भी अपनी भूमिका निभा सकता है. खासकर चिप की डिजाइन में भारत को महारत हासिल है. भारत सरकार का मकसद चिप और तैयार उत्पाद दोनों के आयात की स्थिति को बदलना है.

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‘न्यू इंडिया’ में गिरायी जाती है चुनी हुई सरकार

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि विधायकों की खरीद-फरोख्त के सबूत कभी नहीं मिला करते हैं लेकिन ऐसा करने की क्षमता उन्हीं राजनीतिक दलों के पास होती है जो सबसे ताकतवर होते हैं. यानी उसी दल के पास इतना पैसा होता है जो दिल्ली के तख्त पर आसीन होता है. कभी यह क्षमता केवल कांग्रेस के पास हुआ करती थी. इंदिरा गांधी के समय में कई बार राज्य सरकारों को गिराया गया था. खूब दल-बदल हुए थे. वहीं, जब इसे रोकने के लिए दलबदल कानून बना राजीव गांधी के जमाने में, जिनके पास प्रचंड बहुमत था.

तवलीन सिंह ने लिखा है कि महाराष्ट्र की सरकार गिराने के लिए विधायकों को देशाटन कराया गया. गुजरात के पांच सितारा होटल से असम तक और फिर गोवा के होटल तक उनकी आवभगत हुई ताकि जरूरत के वक्त उन्हें सीधे आसानी से मुंबई लाया जा सके. तब भी एक-एक विधायक को 20 करोड़ रुपये देने की चर्चा जोरों पर थी. महाराष्ट्र सरकार बन जाने के बाद सारा ध्यान दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार गिराने पर लग गया.

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री के घर भारत सरकार की एजेंसी ने छापे मारना शुरू किया. आरोप सामने आए कि सिसौदिया ने लिकर माफिया को फायदा पहुंचाया. बगैर सबूत के ही उपमुख्यमंत्री को मीडिया में दोषी ठहरा दिया गया. ‘न्यू इंडिया’ के वादे भुला दिए गये. महाराष्ट्र से पहले मध्यप्रदेश, और उससे पहले कर्नाटक की सरकारें बेवक्त गिराई गयीं. केजरीवाल सरकार गिराने की भरपूर कोशिशें भी उसी तर्ज पर जारी है.

क्रिकेट तो सफेद कपड़े, लाल गेंदों में है!

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि 2022 में क्रिकेट के तीन टेस्ट मैच देख लेने के बाद उन्हें ऐसा लगता है मानो उन्होंने क्रिकेट का भरपूर मजा ले लिया. वहीं, उन्होंने आईपीएल के एक मैच भी क्रिकेट के मैदान पर नहीं देखे और इसका कतई अफसोस भी नहीं. जब जरूरत महसूस हुई तो यू-ट्यूब पर कुछ झलकियां देख लीं. कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन का सदस्य होने के नाते उन्होंने मुफ्त में उन्हें मैच का आनन्द लेने का अधिकार है. 2008 में आईपीएल जब शुरू हुआ था तो उन्होंने शेन वार्न को गेंद डालते देखा था जब उन्होंने तीसरी गेंद पर महेंद्र सिंह धोनी को पवैलियन लौटाया था.

गुहा लिखते हैं कि उन्होंने लंदन में लॉर्ड्स के मैदान पर टेस्ट मैच का आनन्द इस साल जून के महीने में लिया. न्यूजीलैंड बनाम इंग्लैंड देखा. पहली बार उपनिवेशवादी इंग्लैंड के पक्ष में खड़ा दिखा. वजह थे जो रूट जिन्होंने नागपुर में अपना टेस्ट करियर शुरू किया था. जून के आखिरी में चिन्नास्वामी स्टेडियम में मुबई बनाम मध्यप्रदेश का लुत्फ उठाया.

मुंबई ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 374 रन बनाए. पद्माकर शिवालकर की शानदार गेंदबाजी की मदद से मध्यप्रदेश ने एक पारी के अंतर से मुंबई को हराया. कोच चंद्रकांत पंडित को खिलाड़ियों ने गोद में उठा लिया. लेखक ने चंद्रकांत पंडित की कप्तानी वाले मध्यप्रदेश को कर्नाटक के हाथों पराजित होते हुए भी कभी देखा था. इस बार मुंबई को छोड़कर किसी की भी जीत मनाना उन्हे पसंद था. जुलाई में एक बार फिर इंग्लैंड में इंग्लैंड बनाम दक्षिण अफ्रीका मैच का आनन्द उठाया. लेखक का मानना है कि लाल गेंद और सफेद शर्ट के साथ क्रिकेट ही वास्तव में क्रिकेट है. चाहे जब तक गेंद फेंको, चाहे जब तक बल्लेबाजी करो और चाहे जब तक कप्तानी और फिल्डिंग करो. इसी के बाच क्रिकेट का आनन्द है.

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