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कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (AAP), दोनों ने 8 जनवरी को सीट-बंटवारे की अपनी पहले दौर की बातचीत को "सकारात्मक" और "प्रोडक्टिव" बताया.
बैठक में कांग्रेस की ओर से मुकुल वासनिक, अशोक गहलोत, मोहन प्रकाश और सलमान खुर्शीद शामिल हुए, जबकि AAP की ओर से संदीप पाठक, आतिशी और सौरभ भारद्वाज मौजूद रहे.
बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक ने कहा, "हर चीज पर विस्तार से चर्चा हुई. हम साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे और बीजेपी को करारा जवाब देंगे."
यह 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने के INDIA गठबंधन के प्रयासों का हिस्सा है.
हालांकि, कई कारणों से दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति आसान नहीं होगा.
AAP सूत्रों का कहना है कि गठबंधन का दायरा पांच राज्यों को कवर करेगा:
पंजाब: 13 सीट
दिल्ली: 7 सीट
गुजरात: 26 सीट
गोवा: 2 सीट
हरियाणा: 10 सीट
इसके अलावा बातचीत में चंडीगढ़ लोकसभा सीट भी शामिल हो सकती है.
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्हें गुजरात में AAP को एक सीट देने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन गोवा और हरियाणा में उसे समायोजित (एडजस्ट) करना मुश्किल होगा.
हरियाणा के एक कांग्रेस नेता ने द क्विंट को बताया, "हरियाणा में उनकी क्या उपस्थिति है? उनके पास यहां एक विधानसभा सीट भी नहीं है."
इसके साथ ही कांग्रेस नेता ने कहा, "AAP, कांग्रेस के समर्थन से हरियाणा में प्लेयर बनना चाहती है."
कांग्रेस को लगता है कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह अपने दम पर हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को उखाड़ फेंकेगी और वह नहीं चाहती कि AAP चुनौती के रूप में उभरे.
दूसरा मुद्दा यह है कि सीट-बंटवारे का आधार क्या होना चाहिए. 2019 के लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन या फिर पिछले विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन?
अगर पहला आधार होगा, तो बातचीत में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा क्योंकि उसने पंजाब में 13 में से 8 सीटें जीतीं, गोवा में 2 में से 1 सीट जीती और दिल्ली में 7 में से 5 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही.
हालांकि, अगर बंटवारे का आधार विधानसभा चुनाव होता है तो AAP का पलड़ा भारी रहेगा क्योंकि उसने 2020 में दिल्ली और 2022 में पंजाब में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी.
बातचीत की जानकारी रखने वालों का कहना है कि वे ऐसा संतुलन बनाएंगे जो दोनों पक्षों को पारस्परिक रूप से स्वीकार्य हो.
कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब, दोनों इकाइयां AAP के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के खिलाफ है. उनका तर्क है कि AAP और कांग्रेस का आधार समान है और AAP के साथ गठबंधन करके, कांग्रेस AAP को मजबूत करेगी और खुद को कमजोर करेगी. वैचारिक रूप से भी, दोनों मोटे तौर पर मध्यमार्गी पार्टियां हैं जिनका जनकल्याण पर जोर है.
2022 के विधानसभा चुनावों में पंजाब में AAP और कांग्रेस के पास कुल वोट शेयर का लगभग 65 प्रतिशत था. कांग्रेस राज्य में मुख्य विपक्षी दल है और दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच जमीन पर तीखी प्रतिद्वंद्विता है.
अगर वो एक साथ आते हैं, तो यह संभव है कि इससे अकाली दल के लिए विपक्ष की जगह पर कब्जा करने का रास्ता खुल जाएगा. वैसे भी वह AAP और कांग्रेस, दोनों पर दिल्ली संचालित पार्टियां होने का आरोप लगाती रही है और दावा करती रही है कि वह एकमात्र विशुद्ध पंजाबी पार्टी है.
पंजाब में जमीनी स्तर पर AAP और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं और कैडरों के बीच भारी प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए, यह कहना मुश्किल है कि दोनों दलों के बीच वोट ट्रांसफर आसानी से होगा.
AAP और कांग्रेस लोकसभा चुनावों में पंजाब में दोस्ताना लड़ाई का जोखिम उठा सकती है. प्रदेश में सिख मतदाताओं की बीजेपी के प्रति ठंडी प्रतिक्रिया को देखते हुए साफ है कि पार्टी उतनी मजबूत स्थिति में नहीं है.
उसके पास 13 में से केवल 3 सीटों पर प्रतिस्पर्धी मौका है और ये भी अकालियों के साथ गठबंधन के बिना इतना आसान नहीं होगा.
इन बातों का मतलब यह नहीं है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की कोई गुंजाइश नहीं है.
विडंबना यह है कि चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने के लिए दोनों पार्टियों के लिए सबसे आसान राज्य दिल्ली है. भले ही दिल्ली कांग्रेस AAP को नापसंद करती हो.
ऐसा इसलिए है क्योंकि 2019 में बीजेपी ने सभी सात लोकसभा सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए, जिससे उसे अपराजेय बढ़त मिली. अगर AAP और कांग्रेस मिलकर भी चुनाव लड़ते तो भी बीजेपी को हरा नहीं पाते.
यही बात गुजरात के लिए भी सच है. बीजेपी फिलहाल अपराजेय दिख रही है, लेकिन शायद कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन और उनके पक्ष में एक छोटा सा झुकाव एक या दो सीटों को प्रतिस्पर्धी बना सकता है.
पंजाब में भी कुछ सीटों पर सामंजस्य की गुंजाइश है. उदाहरण के लिए, संगरूर और बठिंडा जैसी सीटों पर AAP स्पष्ट रूप से जमीन पर मजबूत है. यहां तक पटियाला में भी, जब कैप्टन अमरिन्दर सिंह और परनीत कौर भी कांग्रेस में नहीं हैं. दूसरी ओर, गुरदासपुर और होशियारपुर में कांग्रेस बीजेपी के लिए मजबूत चुनौती हो सकती है.
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