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कांग्रेस Vs बीजेपी: यूपी में कौन जीतेगा सोशल मीडिया की जंग?

चुनाव में भी बखूबी सोशल मीडिया इस्तेमाल होने लगा है, इसलिए कांग्रेस पार्टी ने तेजी से पैठ बनानी शुरू कर दी है

नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
Updated:
(फोटो: Quint Hindi)
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(फोटो: Quint Hindi)
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चुनावों की जंग में सोशल मीडिया अब एक बड़ा हथियार है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी, दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और बिहार में नीतीश-लालू ने अगर जीत का स्वाद चखा, तो उसमें तड़का फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सएप पर हुई जोर आजमाइश का भी था.

सोशल मीडिया पर कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने इस नए मोर्चे पर अब तक कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई थी. लेकिन अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों के लिए इस खेल का सबसे बड़ा खिलंदड़ प्रशांत किशोर कांग्रेस के साथ है और टीम पीके के भरोसे कांग्रेस, सोशल मीडिया के हथियार से विरोधियों को धूल चटाने की कवायद में जुटी है.

पीके का वॉर रूम

फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सएप के जरिए लड़ी जा रही इस जंग का वॉर रूम है लखनऊ की जॉपलिंग रोड पर बना एक दफ्तर, जिसमें प्रशांत किशोर की कंपनी आई-पैक (इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) की कोर टीम के 15 प्रोफेशनल्स 24 घंटे कांग्रेस पार्टी के संदेश लोगों तक पहुंचाने में जुटे रहते हैं. इस टीम में आईआईटी, जेएनयू, दिल्ली यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों में पढ़े अलग-अलग बैकग्राउंड के लड़के-लड़कियां हैं, जिनकी जिम्मेदारियों में शामिल है:

  • आंकड़े जुटाना
  • रिसर्च करना
  • नेताओं के भाषणों के लिए सटीक मुद्दे खोजना
  • आने वाले दिनों में चुनाव घोषणा-पत्र पर काम करना
  • और राहुल गांधी की ‘किसान यात्रा’ से लेकर शीला दीक्षित के ‘27 साल यूपी बेहाल’अभियान का सोशल मीडिया पर धुआंधार प्रचार करना

आभासी दुनिया की चुनावी जंग

29 जुलाई को कांग्रेस पार्टी के ‘यूपी उद्घोष’ कार्यक्रम के साथ इस टीम ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी यानी यूपीसीसी का सोशल मीडिया दफ्तर अपने हाथ में लिया. उसके बाद से इंटरनेट की आभासी दुनिया में कांग्रेस पार्टी ने तेजी से पैठ बनानी शुरू की है.

आई-पैक की टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने क्विंट हिंदी को बताया,

सोशल मीडिया के मोर्चे पर हमारी पहली लड़ाई बीजेपी के साथ है, जिसमें फिलहाल हमारा प्रदर्शन बेहतर है. फेसबुक पर बीजेपी के पेज ‘उत्तर देगा उत्तर प्रदेश’ के करीब 6 लाख लाइक्स हैं, लेकिन कांग्रेस के पेज ‘27 साल यूपी बेहाल’ के लाइक्स 7 लाख का आंकड़ा पार कर चुके हैं. फेसबुक पर हमारी रीच फिलहाल एक मिलियन है, जिसे आने वाले दिनों में हम दो मिलियन करना चाहते हैं.
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर. (फोटो: The Quint)

यूपीसीसी का ट्विटर हैंडल भी करीब 14 हजार फॉलोअर्स बना चुका है. इस हैंडल पर कांग्रेस के प्रचार अभियान से जुड़ी तमाम खबरें दिनभर अपडेट होती हैं. लेकिन आई-पैक टीम के मुताबिक सबसे मजबूत और यकीनी माध्यम वॉट्सएप है. वॉट्सएप पर यूपीसीसी से जुड़े डेढ़ हजार से ज्यादा ग्रुप सक्रिय हैं और इस जरिये भेजा जाने वाला हर संदेश एक साथ सवा लाख मोबाइल फोन पर गिरता है.

लखनऊ पश्चिम से कांग्रेस का टिकट पाने की कोशिश कर रहे जीशान हैदर के मुताबिक,

वॉट्सएप का सबसे बड़ा फायदा ये है कि गांव-देहात के अंदरूनी इलाकों तक इसकी पहुंच है. राहुल गांधी की किसान यात्रा के दौरान भीड़ जुटाने में वॉट्सएप का खूब इस्तेमाल किया गया.

इसके अलावा ‘हम हैं कांग्रेस’ नाम का एक मोबाइल एेप भी है, जो फिलहाल सिर्फ एंड्रॉयड प्लेटफॉर्म पर ही है.

लोगों का बदलता रवैया

आई-पैक टीम के मुताबिक, सोशल मीडिया पर लोगों का रवैया तेजी से बदल रहा है. पहले मोदी-माया-मुलायम की लानत-मलानत करते संदेशों को ज्यादा लाइक्स मिलते थे. लेकिन अब राहुल-सोनिया के संदेश, प्रचार अभियान की खबरें और लोगों से रायशुमारी जैसी चीजें भी अच्छे नतीजे दे रही हैं.

खास बात ये है कि फेसबुक, ट्विटर पर गाली मिले या ताली, सोशल मीडिया की दुनिया में उसे उपलब्धि ही माना जाता है. मकसद है येन-केन-प्रकारेण चर्चा में बने रहना.

आसान नहीं जंग

वैसे दिलचस्प बात है कि 2014 लोकसभा चुनावों के वक्त प्रशांत किशोर बीजेपी के साथ थे. अब वे भले ही कांग्रेस के पेच कस रहे हों, लेकिन सोशल मीडिया पर बीजेपी की आक्रामकता जगजाहिर है. लिहाजा टीम पीके और कांग्रेस के लिए इस मोर्चे पर बीजेपी से पंजा लड़ाना आसान नहीं होगा.

यूपीसीसी के दफ्तर में ही ‘इंदिरा गांधी के जमाने के’ एक नेता ने हमसे ये भी कहा:

यूपी जैसे सूबे के पिछड़े इलाकों में जहां लोग बिजली-पानी-सड़क की बुनियादी लड़ाई से जूझते हैं, वहां भला ये सोशल मीडिया नाम की चिड़िया क्या गुल खिला पाएगी?

लेकिन हालिया नतीजे साबित कर चुके हैं कि चुनावों में इश्तेहारों से ज्यादा इंटरनेट का और लाउडस्पीकरों से ज्यादा ‘लाइक्स’ का जलवा रहा है. लिहाजा सत्ता की ओर जा रही सड़क पर सोशल मीडिया की सवारी करनी ही पड़ेगी, ये बात तमाम पार्टियां समझ चुकी हैं.

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Published: 27 Sep 2016,03:42 PM IST

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