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दिल्ली पैक्ट: भारत-पाक में अल्पसंख्यकों को बचाने की एक ईमानदार पहल

जवाहरलाल नेहरू ने पैक्ट से पाक के हिंदुओं को बचाने और भारत के अल्पसंख्यकों को बराबरी का अधिकार देने की कोशिश की थी

सुदीप्त शर्मा
पॉलिटिक्स
Published:
जवाहर लाल नेहरू के साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली  (बीच में) और सरदार वल्लभभाई पटेल. यह फोटो दिल्ली पैक्ट पर चर्चा के दौरान गवर्नमेंट हाउस दिल्ली की है
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जवाहर लाल नेहरू के साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली (बीच में) और सरदार वल्लभभाई पटेल. यह फोटो दिल्ली पैक्ट पर चर्चा के दौरान गवर्नमेंट हाउस दिल्ली की है
फोटो :pinterest

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अप्रैल का गर्म महीना, साल 1950. जगह : दिल्ली में गवर्नमेंट हाउस.

भारत-पाकिस्तान में एक समझौता होने जा रहा था. यह समझौता बंटवारे के बाद हुए दंगों का नतीजा था. दिल्ली पैक्ट नाम के इस समझौते का विरोध करते हुए नेहरू सरकार के उद्योगमंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस्तीफा दे चुके थे.

वही श्यामा प्रसाद, जिन्होंने जनसंघ बनाया. इसी जनसंघ में अटल-आडवाणी ने राजनीति का ककहरा सीखा. यही जनसंघ, जनता पार्टी से होते हुए भारतीय जनता पार्टी बना.

चार साल पहले जवाहरलाल की सरकार में वित्तमंत्री रहे लियाकत अली अब पाकिस्तान नाम के अलग मुल्क के वजीर-ए-आजम बन चुके थे. दोनों ने दिल्ली पैक्ट में किन शर्तों पर समझौता किया, उसके पहले आपको कुछ जानना जरूरी है...

दंगा-दंश...

1947 में देश का बंटवारा हो गया. बंटवारा उन्माद के माहौल में हुआ, मजहबी उन्माद. खूब दंगा-फसाद शुरू हुआ. पाकिस्तान में सिखों, हिंदुओं के साथ हिंसा हुई, तो दूसरी तरफ भारत में मुस्लिम विरोधी दंगे हुए.

दिल्ली के पुराने किले को मुस्लिम कैंप के तौर पर स्थापित किया गया था. इस दौरान वहां हजारों की संख्या में शरणार्थी ठहरे. दंगों में जान बचाने लोग इस कैंप में आकर रहते थे.फोटो: AP
ट्रेनों में भर-भरकर लाशें भेजी गईं. बिलकुल वैसे ही जैसे, अनाज की बोरियां भरी जाती हैं. अलग-अलग आंकड़ों के मुताबिक, दंगों में 2 लाख से 20 लाख तक जानें गईं. जिन घरों में बाप-दादा मरे थे, जहां खुद का बचपन बीता, वह घर अब कुछ लोगों के लिए पराए हो चुके थे. उन्हें अब ‘अपने देश’ जाना था, अपना देश जो लकीर की दूसरी तरफ था.
सिंध के पार्टीशन की खबर को दिखाते अखबार की खबर(फोटो: AP)

1951 की पाकिस्तानी जनगणना के मुताबिक, करीब 72 लाख लोग पाकिस्तान में हिंदुस्तान से आए. ज्यादातर मुस्लिम. तकरीबन 73 लाख लोग पाकिस्तान से विस्थापित होकर हिंदुस्‍तान आए. ज्यादातर हिंदू और सिख.

इन विस्थापित प्रवासियों की स्थिति बेहद बदतर थी. उससे भी ज्यादा खतरे में वो अल्पसंख्यक थे, जिन्होंने बंटवारा होने के बाद भी अपने पुरखों की जमीन न छोड़ने का फैसला किया था.

फिर दिल्ली पैक्ट...

अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा और बंटवारे के बाद की स्थितियों से निपटने के लिए जवाहरलाल और लियाकत अली दिल्ली में मिलते हैं. दोनों के बीच जो समझौता हुआ, उसे ही दिल्ली पैक्ट के नाम से जाना गया. इस पैक्ट के जरिए दोनों नेता युद्ध की स्थितियों से भी बचने की कोशिश करते हैं.

बंटवारे में लगभग 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए. यह दुनिया के सबसे बड़े विस्थापनों में से एक था. उस वक्त ट्रेन से सफर करते लोग

समझौते के मुताबिक:

  • प्रवासियों को ट्रांजिट के दौरान सुरक्षा दी जाएगी. वे अपनी बची हुई प्रॉपर्टी को बेचने के लिए सुरक्षित वापस आ सकते हैं.
  • जिन औरतों का अपहरण किया गया है, उन्हें वापस परिवार के पास भेजा जाएगा. अवैध तरीके से कब्जाई गई अल्पसंख्यकों की प्रॉपर्टी उन्हें लौटाई जाएगी.
  • जबरदस्ती धर्म परिवर्तन अवैध होगा, अल्पसंख्यकों को बराबरी और सुरक्षा के अधिकार दिए जाएंगे. दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ किसी भी तरह का प्रोपगेंडा नहीं चलाने दिया जाएगा.
  • दोनों देश, युद्ध को भड़ाकाने वाले और किसी देश की अखंडता पर सवाल खड़ा करने वाले प्रोपगेंडा को बढ़ावा नहीं देंगे. (उपखंड c धारा 8)

अल्पसंख्यकों के हितों से जुड़ी ऐसी ही कई बातें करार में शामिल थीं.

फोटो: श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बयानों से पैक्ट के उपखंड c की धारा 8 का उल्लंघ तय था. नेहरू ने वल्लभभाई पटेल को मामले में लेटर लिखा. वल्लभभाई ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के आड़े आने की बात कही. इसके बाद ही संविधान संशोधन से ‘पड़ोसी देशों के साथ मित्रवत संबंध’ का प्रतिबंध लाया गया. 


श्यामा प्रसाद मुखर्जी का इस्तीफा...

श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदू महासभा के नेता थे. वे पैक्ट की शर्तों का खुलकर विरोध कर रहे थे. उनका कहना था कि पैक्ट, भारत की तरफ से मुस्लिम तुष्टिकरण की एक कोशिश है. साथ ही पाकिस्तान में हिंदुओं को ज्यादा खतरा है. उन्हें इससे कुछ फायदा नहीं होने वाला.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सबसे बाएं), जवाहरलाल नेहरू (सबसे दाएं), पीछे खड़े हैं गोविंद वल्लभ पंत (हंसते हुए) और बाबू जगजीवन राम ( सबसे ज्यादा समय तक मंत्री रहे)Wikimedia Commons

मुखर्जी अखंड भारत की बात जोर-शोर से उठा रहे थे. यह करार के तीसरे खंड की धारा 8 का उल्लंघन था. यह प्रावधान दोनों देशों में किसी भी ऐसे प्रोपगेंडा को बैन करती है, जिससे युद्ध की आशंका हो. अखंड भारत के लिए पाकिस्तान से युद्ध जैसी बातें भी खुलकर कही जा रही थीं. नेहरू और पटेल, मुखर्जी के इस रुझान से काफी खफा थे.

इसी माहौल में संविधान के मूल अधिकारों में दिए ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आजादी’ पर, ‘विदेशी राज्यों के साथ मित्रवत संबंध’ (Friendly relation with foreign countries) का प्रतिबंध लगाया गया. यह पहले संविधान संशोधन के जरिए किया गया.

हालांकि इसका बहुत ज्यादा उपयोग नहीं हुआ. यह प्रतिबंध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आजादी पर लगाए गए प्रतिबंधों में से एक है.

आखिर में पैक्ट होने के दो दिन पहले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पंडित नेहरू की नीतियों को गलत बताते हुए कहा कि वक्त उन्हें उनकी गलतियां समझाएगा. एक साल के भीतर ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली की हत्या हो गई और आज भी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल बना हुआ है.

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