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3 मार्च को दिल्ली पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आम आदमी पार्टी से निलंबित काउंसलर ताहिर हुसैन को लेकर जो कहा और बाद में इस मामले पर उसकी जो 'सफाई' आई, उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं. मसलन, क्या वाकई 24-25 फरवरी की रात दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन को रेक्स्यू नहीं कराया था?
ताहिर के मामले पर दिल्ली पुलिस गोलमोल क्यों बोल रही है? क्या इस मामले में पुलिस से कोई लापरवाही हुई है? चलिए इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश में सबसे पहले 3 मार्च के घटनाक्रम पर आते हैं.
3 मार्च को दिल्ली पुलिस की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब एसीपी अजित कुमार सिंगला से पूछा गया कि क्या ताहिर को आपने रेस्क्यू कराया था? तो उन्होंने जवाब दिया,
इसके बाद एसीपी सिंगला से पूछा गया- जब आप ताहिर के घर गए थे उसे बचाने के लिए, तो कितनी भीड़ थी वहां पर? इस पर एसीपी सिंगला ने कहा,
इस बाद उन्होंने कहा, ''हम लोग अंदर नहीं गए. हमारे कुछ पुलिस वाले सरसरी तौर पर देखने के लिए गए थे. तब इसको विश्वास हुआ, तब ये नीचे आ गया. बिना पुलिस के ये आ नहीं रहा था.''
इसके बाद न्यूज एजेंसी एनआई ने ट्वीट कर एसीपी सिंगला के हवाले से कहा,
इस ट्वीट को आधार बनाकर 'दिल्ली पुलिस द्वारा ताहिर का रेस्क्यू किए जाने की खबरें' सामने आने लगीं. इस बीच डीसीपी नॉर्थ ईस्ट दिल्ली ने इस मामले पर ट्वीट कर कहा, ''मीडिया के एक हिस्से ने रिपोर्ट किया है कि ताहिर हुसैन को दिल्ली पुलिस ने रेस्क्यू किया था. तथ्य ये हैं कि 24/25 फरवरी 2020 की दरम्यानी रात कुछ लोगों ने चांद बाग में तैनात पुलिस को सूचना दी थी कि ताहिर हु्सैन फंसे हुए हैं क्योंकि भीड़ ने उनके घर को घेर लिया है. पुलिस ने इसे गलत पाया और ताहिर हुसैन अपने घर पर मौजूद पाए गए थे.''
इसके साथ ही डीसीपी ने अपने ट्वीट में कहा कि (इंटेलिजेंस ब्यूरो स्टाफर) अंकित शर्मा की बॉडी मिलने के बाद ताहिर को आरोपी बनाया गया, उनके घर की तलाशी ली गई और वह फरार पाए गए.
डीसीपी के इस ट्वीट के बाद सवाल उठा कि भले ही एसीपी सिंगला ने अपने बयान में 'रेस्क्यू' टर्म का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन उन्होंने शिकायत करने वाली भीड़ को ताहिर को सौंपने की बात तो कही ही थी, तो फिर क्या ये रेक्स्यू नहीं ?
एनडीटीवी के साथ बातचीत में ताहिर ने कहा था कि 24 फरवरी को दोपहर 1:30 बजे से पत्थरबाजी की शुरुआत हुई थी, लगभग 1 घंटे के बाद लोग दरवाजा तोड़कर (उनकी बिल्डिंग के) अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे.
ताहिर ने कहा,
ताहिर का दावा है कि उन्होंने पुलिस से कहा था कि बिल्डिंग दोनों तरफ से टारगेट पर है और अनुरोध किया था कि इसे खाली नहीं छोड़ना, इसकी सिक्योरिटी जरूरी है.
ताहिर ने कहा, ''पुलिस ने पूरी बिल्डिंग की तलाशी ली...मैंने 24 तारीख को 11:30 बजे ही अपनी बिल्डिंग की तलाशी देने के बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया था...मैं रात में वहां से निकला था.''
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ''25 फरवरी को सुबह 8:30 बजे मैं बिल्डिंग के पास गया, लेकिन सामने की तरफ से बहुत ज्यादा हूटिंग होने लगी, मुझे लगा कि यहां रहना ठीक नहीं है और मैं वहां से वापस आ गया.''
26-27 फरवरी के आसपास मीडिया में एक तरफ ताहिर का ये दावा चल रहा था तो दूसरी तरफ कई पत्रकारों की वो रिपोर्ट्स चल रही थीं, जिनमें दावा किया जा रहा था कि ताहिर की बिल्डिंग से हिंसा में इस्तेमाल किए जाने वाली कुछ चीजें (जैसे पेट्रोल बम और ईंट पत्थर) मिली हैं. कई पत्रकारों ने अपने हाथों में इन चीजों को दिखाकर रिपोर्टिंग की.
ऐसे में सवाल उठता है कि ये चीजें कब ताहिर की बिल्डिंग में पहुंचीं? दरअसल 24-25 फरवरी की घटना को लेकर तो खुद एसपी सिंगला ने माना है कि कुछ पुलिसकर्मी 'सरसरी तौर पर देखने के लिए' वहां गए थे. ताहिर का भी दावा है कि उन्होंने 24-25 फरवरी की रात को अपनी बिल्डिंग पुलिस के हवाले कर दी थी. तो क्या उस वक्त पुलिस को ताहिर की बिल्डिंग में ये चीजें नहीं दिखीं?
क्या ताहिर का ये दावा सही है कि 25 फरवरी को पुलिस उनकी बिल्डिंग से हट गई? अगर ये दावा सच नहीं है तो पुलिस को बताना चाहिए कि उसके वहां रहते हुए पत्रकारों ने हिंसा में इस्तेमाल की जाने वाली चीजें अपने हाथ में लेकर कैसे रिपोर्टिंग की? पुलिस को बताना चाहिए कि जब कोई भी ताहिर की बिल्डिंग में घुस जा रहा था तो क्या वहां सबूतों से छेड़छाड़ का खतरा नहीं था?
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